जयपुर. राजस्थान में सियासी बयानबाजी और राजनीतिक दलों के अंतर द्वंद्व के बीच जहां कांग्रेस में इन दोनों ऑल इज वेल दिख रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के भीतर सियासी उबाल पक्ष विपक्ष के बीच की बयानबाजी में तब्दील हो चुका है. इस बयानबाजी की वजह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका को माना जा रहा है. प्रमुख राजनेताओं के बीच इन दिनों बयानों में राजे केंद्र बनती जा रही हैं.
कार्यक्रमों से वसुंधरा राजे की दूरी : बीते दिनों भारतीय जनता पार्टी की ओर से जयपुर में नहीं सहेगा राजस्थान के स्लोगन पर सचिवालय घेराव की रणनीति बनाई गई थी. प्रदेश स्तर के इस कार्यक्रम को लेकर पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से लेकर प्रदेश के नेताओं ने कई दावे किए थे, लेकिन कार्यक्रम के बाद इन दावों के बीच पार्टी के अंदर खींचतान को लेकर चर्चा ज्यादा हुई. राजनीतिक पंडितों ने माना कि भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश संगठन में कार्यक्रमों से वसुंधरा राजे की दूरी यह इशारा कर रही है कि सब कुछ ठीक नहीं है.
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राजे के बिना 'राज' मुमकिन नहीं : पार्टी के अंदर ही इसके बाद कई तरह की चर्चाओं का दौर शुरू हो गया. जहां एक तरफ यह समझा जाने लगा कि इस बार विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे को आगे रखकर इलेक्शन में नहीं उतरा जाएगा, लिहाजा पीएम मोदी खुद एक के बाद एक दौरे करते हुए रैलियां करते नजर आ रहे हैं. वहीं, राजे की भूमिका को महत्व देने वाले धड़े का मानना है कि उन्हें साइडलाइन किए जाने की खबरें बेबुनियादी हैं. राजे के बिना राजस्थान में बीजेपी का राज मुमकिन नहीं है. हालांकि भाजपा के इन दोनों दलों को लेकर खुलकर बयान सामने नहीं आए हैं, पर पार्टी के अंदर की चर्चाओं में यह मुद्दा जोरों पर है. खास बात यह है कि पार्टी के बाहर इस विषय पर खुलकर चर्चा हो रही है.
राजे की दूरी का नुकसान तो नहीं ! : चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. एक से डेढ़ महीने बाद आचार संहिता लग जाएगी, लेकिन बीजेपी ने वसुंधरा राजे की भूमिका को तय नहीं किया. ऐसे पार्टी का एक बड़ा धड़ा अभी भी संगठन के काम काज से दूर है. बीजेपी में भले ही सामने कुछ नहीं दिख रहा हो, लेकिन अंदर बड़ा उबाल चल रहा है. राजे की भूमिका को लेकर बीजेपी में चल रहे इस असमंसज के चलते ही बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच चुनाव माहौल को वो गति नहीं दे पा रही जो चुनावी साल में होनी चाहिए.
असमंजस में बीजेपी : कांग्रेस चुनाव समिति और स्क्रीनिंग कमेटी घोषित कर चुकी है, जबकि बीजेपी में सिर्फ चुनाव प्रभारी ही नियुक्त किए हैं. राजनीति के जानकारों का मानना है कि हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली बीजेपी राजस्थान को लेकर जिस तरह से असमंजस की स्थति से गुजर रही है, उसका प्रदेश बीजेपी को हर दिन नुकसान भी हो रहा है. इस बात के मायने यूं समझे जा सकते हैं कि हाल ही में जयपुर में सरकार के खिलाफ जिन दावों को लेकर घेराव की रणनीति बनाई गई थी, कसौटी पर वे तमाम दावे पूरे होते हुए नजर नहीं आए.
बड़े प्रदर्शन से क्यों दूर राजे : चुनावी साल में प्रदेश बीजेपी ने 'नहीं सहेगा राजस्थान' अभियान की बड़े स्तर पर शुरुआत की. खुद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसका आगाज किया. 1 अगस्त को पार्टी ने बड़े स्तर पर बड़े स्तर पर प्रदर्शन किया, लेकिन इससे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दूर रहीं, जबकि मंच पर राजे की कुर्सी रिजर्व रखी गई थी. हालांकि कुछ पार्टी के नेताओं का यह भी मानना है कि मंच पर लगे पोस्टर से वसुंधरा राजे की फोटो नदारद थी. ऐसे में राजे ने प्रदर्शन में आने का निर्णय बदला. प्रदर्शन से 2 दिन पहले फिर नड्डा जयपुर आए थे और उन्होंने चुनाव की तैयारियों के साथ ही इस प्रदर्शन के बारे में भी फीडबैक लिया था. राजे की गैरमौजूदगी पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने सफाई दी कि कुछ नेता पारिवारिक कारण से प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पाए.
कांग्रेस-बीजेपी आमने सामने : वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर कांग्रेस ने भी अपने अंदाज में मुद्दा बनाया है. कानून व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बनाकर गहलोत सरकार को घेर रही बीजेपी के नेताओं पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सीधा हमला बोलते हुए राजे के समर्थन में दिखे. गहलोत ने कहा कि बीजेपी एक नहीं बल्कि चार-पांच मुख्यमंत्री के दावेदार बन कर घूम रहे हैं. जबकि जो वास्तविक सीएम की दावेदार हैं, उसे तो घर में बिठा रखा है. प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी वसुंधरा राजे को कांग्रेस के लिए चुनौती बताया. सरकार के इस बयान पर बीजेपी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने जवाब दिया. उन्होंने कहा कि सीएम गहलोत अपने घर की आग को बुझाने का काम करें, बीजेपी की चिंता नहीं करें.