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राजस्थान में जातीय समीकरण के आधार पर उतारे प्रत्याशी, बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड तो कांग्रेस के 14 मुस्लिम कैंडिडेट

Rajasthan Caste Politics, राजस्थान के रण में राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरण के आधार पर प्रत्याशी उतारे थे. बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड चला तो कांग्रेस के 14 मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में थे.

Rajasthan Caste Politics
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 29, 2023, 12:57 PM IST

जयपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सभी जातियों ने राजधानी में शक्ति प्रदर्शन कर राजनीतिक दलों से ज्यादा से ज्यादा टिकट मांगे थे. इसी आधार पर प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस ने जातीय समीकरण को साधने का काम करते हुए उम्मीदवारों को टिकट दिए. यही नहीं, कई सामान्य वर्ग की सीटों पर भी दूसरे वर्ग के उम्मीदवारों को उतारा. बीजेपी और कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में जिस तरह जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया, उसकी तुलना में क्या जातियों ने उन्हें समर्थन दिया. देखिए ये रिपोर्ट...

राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रण में जातीय समीकरण साधना जरूरी होता है. इसीलिए प्रदेश की विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस पर ध्यान भी रखा. विशेषकर एसटी की आरक्षित 25 सीटों की तुलना में बीजेपी ने 30 जबकि कांग्रेस ने 33 सीटों पर एसटी वर्ग से आने वाले प्रत्याशियों को मौका दिया. इसी तरह दोनों ही राजनीतिक दलों ने जाट प्रत्याशियों पर भी बढ़-चढ़कर दांव खेला.

पढ़ें : कोटा में मतदाताओं को फोन कर पूछ रहे किसको दिया वोट, गुप्त मतदान की उड़ा रहे हैं धज्जियां !

हालांकि, जहां कांग्रेस ने 14 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा, वहीं बीजेपी ने पूरी तरह हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए बालमुकुंद आचार्य, महंत बालकनाथ, ओटाराम देवासी और महंत प्रताप पुरी जैसे साधु-संतों को चुनावी मैदान में उतारा और एक भी सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट को मौका नहीं दिया. हालांकि, विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी ने टोंक से यूनुस खान को सचिन पायलट के वर्सेस में जरूर आजमाया था, लेकिन इस बार यूनुस खान को भी साइड लाइन किया.

Rajasthan Caste Politics
चुनाव में जातीय समीकरण

वहीं, संसद में महिलाओं को 33 फीसदी भागीदारी देने के पक्ष में रहे दोनों ही राजनीतिक दलों ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने में रूचि नहीं दिखाई. कांग्रेस ने जहां 27 तो बीजेपी ने 20 महिला प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि नारी वंदन अधिनियम बनने के दौरान इन्हीं राजनीतिक दलों ने राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की जोरदार वकालत की थी. बहरहाल, मतदान संपन्न हो चुका है. 3 दिसंबर को इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा. ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि बीजेपी और कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में जिस तरह जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया, उसकी तुलना में जातियों ने उन्हें कितना समर्थन दिया.

जयपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सभी जातियों ने राजधानी में शक्ति प्रदर्शन कर राजनीतिक दलों से ज्यादा से ज्यादा टिकट मांगे थे. इसी आधार पर प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस ने जातीय समीकरण को साधने का काम करते हुए उम्मीदवारों को टिकट दिए. यही नहीं, कई सामान्य वर्ग की सीटों पर भी दूसरे वर्ग के उम्मीदवारों को उतारा. बीजेपी और कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में जिस तरह जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया, उसकी तुलना में क्या जातियों ने उन्हें समर्थन दिया. देखिए ये रिपोर्ट...

राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रण में जातीय समीकरण साधना जरूरी होता है. इसीलिए प्रदेश की विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस पर ध्यान भी रखा. विशेषकर एसटी की आरक्षित 25 सीटों की तुलना में बीजेपी ने 30 जबकि कांग्रेस ने 33 सीटों पर एसटी वर्ग से आने वाले प्रत्याशियों को मौका दिया. इसी तरह दोनों ही राजनीतिक दलों ने जाट प्रत्याशियों पर भी बढ़-चढ़कर दांव खेला.

पढ़ें : कोटा में मतदाताओं को फोन कर पूछ रहे किसको दिया वोट, गुप्त मतदान की उड़ा रहे हैं धज्जियां !

हालांकि, जहां कांग्रेस ने 14 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा, वहीं बीजेपी ने पूरी तरह हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए बालमुकुंद आचार्य, महंत बालकनाथ, ओटाराम देवासी और महंत प्रताप पुरी जैसे साधु-संतों को चुनावी मैदान में उतारा और एक भी सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट को मौका नहीं दिया. हालांकि, विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी ने टोंक से यूनुस खान को सचिन पायलट के वर्सेस में जरूर आजमाया था, लेकिन इस बार यूनुस खान को भी साइड लाइन किया.

Rajasthan Caste Politics
चुनाव में जातीय समीकरण

वहीं, संसद में महिलाओं को 33 फीसदी भागीदारी देने के पक्ष में रहे दोनों ही राजनीतिक दलों ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने में रूचि नहीं दिखाई. कांग्रेस ने जहां 27 तो बीजेपी ने 20 महिला प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि नारी वंदन अधिनियम बनने के दौरान इन्हीं राजनीतिक दलों ने राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की जोरदार वकालत की थी. बहरहाल, मतदान संपन्न हो चुका है. 3 दिसंबर को इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा. ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि बीजेपी और कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में जिस तरह जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया, उसकी तुलना में जातियों ने उन्हें कितना समर्थन दिया.

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