जयपुर. राजस्थान के चुनावी रण में इस बार सियासी दांव-पेच के साथ चुनावी गानों का शोर नेताओं और उनके समर्थकों के सिर चढ़कर बोल रहा है. किसी दौर में नारे और स्लोगन आमजन के बीच नेता और पार्टी की छवि बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखते थे, लेकिन इस बार चुनावी शोर में वो रिवाज पुराना पड़ चुका है. अब पार्टियां और प्रत्याशी गानों के जरिए वोटर्स के बीच अपनी छवि चमकाने की जुगत में लगे हैं. इसका सीधा तौर पर फायदा गीतकारों, स्टूडियो संचालकों, वीडियो एडिटर और स्थानीय सिंगर्स को मिल रहा है. पार्टियों और नेताओं में चुनावी गानों का क्रेज बढ़ना इनके लिए रोजगार का जरिया बना है.
इन गानों के प्रमोशन के लिए डिजिटल मार्केटिंग से जुड़े लोगों को भी फायदा मिल रहा है. इस बार आलम यह है कि भाजपा हो, कांग्रेस हो या रालोपा, जयपुर की किसी सीट से चुनाव लड़ रहा प्रत्याशी हो या सुदूर जिले की किसी विधानसभा सीट पर ताल ठोक रहा उम्मीदवार, हर कोई अपने गानों के दम पर जनता का मूड बदलने की जुगत लगा रहा है. जयपुर की सिविल लाइंस से चुनाव लड़ रहे मंत्री प्रताप सिंह से लेकर नागौर सीट से दम भर रहे हरेंद्र मिर्धा तक के लिए चुनावी गाने लिख चुके जयपुर के साहित्यकार नरेंद्र पारीक का कहना है कि राजनीतिक पार्टी हो या किसी भी दल का प्रत्याशी, सबके चुनाव-प्रचार में इस बार चुनावी गानों की अहम भूमिका है. उनका मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर किसी सीट पर पहली बार चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी तक सभी के इस दौर में गाने बज रहे हैं और इसके सहारे अपने समर्थकों में उत्साह भरने और जनता के बीच छवि मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है.
लंबी रिसर्च के बाद तैयार होता है गाना : साहित्यकार नरेंद्र पारीक बताते हैं कि जब किसी नेता पर गाना बनाना होता है तो उसके राजनीतिक सफर पर रिसर्च किया जाता है. पहले चुनाव लड़ चुके प्रत्याशी के विकास कार्यों को भी गाने तैयार करते समय ध्यान में रखा जाता है. अगर कोई पहली बार चुनाव लड़ रहा है तो उसकी ओर से जनता के बीच किए जा रहे वादों और दावों को भी इसमें शामिल किया जाता है.
धुन और भाषा में स्थानीयता की झलक : किसी प्रत्याशी के लिए गाना तैयार करते समय ध्यान रखने वाली जो सबसे जरूरी बात होती है, वह है धुन और भाषा में स्थानीयता का पुट. जयपुर की किसी सीट से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के गाने की शब्दावली और धुन अलग होगी. शेखावाटी, मारवाड़ या अन्य इलाके के प्रत्याशी पर बनने वाले गानों की धुन और शब्दावली में वहां की स्थानीय भाषा और शब्दावली का जोर रहता है, ताकि वोटर्स अपने आप को कनेक्ट कर सके.
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रोजगार का बन रहे हैं नया जरिया : नेताओं के चुनावी गाने जहां एक तरफ उनके समर्थकों में उत्साह भर रहे हैं और जनता में उनका प्रचार नए तरीके से कर रहे हैं. वहीं, संगीत और साहित्य की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रहे हैं. गीतकार गाने के बोल लिखता है. उसके बाद स्टूडियो में उसकी धुन तैयार होती है. बोल और धुन फाइनल होने के बाद सिंगर उसे लयबद्ध तरीके से रिकॉर्ड करता है. इसके बाद वीडियो एडिटिंग पर काम होता है. तब जाकर नेताओं का गाना उनके समर्थकों के सोशल मीडिया अकाउंट पर धूम मचाता दिखता है. इन सभी के लिए चुनाव में रोजगार के नए रास्ते भी इससे खुले हैं. इसके अलावा डिजीटल मार्केटिंग से जुड़े लोगों को भी इन गानों के प्रमोशन से आय हो रही है.
इन नेताओं के गाने बटोर रहे हैं लोकप्रियता : राजस्थान के चुनाव को लेकर जो गाने जनता में बीच लोकप्रिय हो रहे हैं, उनमें पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर बने गाने भी हैं. इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल, मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, भाजपा नेता किरोड़ीलाल मीणा जैसे नेताओं पर बने गाने सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हो रहे हैं.