जयपुर. प्रदेश के करीब 25 हजार प्रबोधक पदोन्नति, पेंशन, पदनाम परिवर्तन और वेतन विसंगति जैसी मांगों को लेकर आंदोलन के लिए सोमवार को सड़क पर उतरे. वहीं, विधानसभा का घेराव करने जा रहे प्रबोधकों को 22 गोदाम के पास रोक दिया गया. इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि प्रबोधक और शिक्षक की एक जैसी सेवाएं होने के बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. लोक जुंबिश, पैरा टीचर, मदरसा पैरा टीचर और शिक्षाकर्मी के रूप में कार्यरत प्रदेश के 25000 बीएसटीसी, बीएड कर्मचारियों को 2008 में थर्ड ग्रेड टीचर के बराबर नियमित किया गया था.
प्रबोधक शिक्षक संघ के महामंत्री संजय कौशिक ने बताया कि 2008 से पहले प्रबोधकों को जो सेवाएं दी गई हैं, उन्हें प्रबोधक सेवा में जोड़ा जाए. उन्होंने इसके पीछे की वजहों को साफ करते हुए कहा कि किसी भी प्रबोधक की सेवाएं यदि 2008 से जोड़ते हैं तो राजकीय सेवा के 25 वर्ष पूरे नहीं होते हैं. यही कारण है कि पूरी पेंशन नहीं बन पा रही है. ऐसे में 95 प्रतिशत प्रबोधक पूरी पेंशन नहीं पा सकेंगे. उन्होंने आगे सरकार से निवेदन करते हुए कहा कि केंद्र के समान पेंशन योग्य सेवा को 25 वर्ष से घटाकर 20 वर्ष किया जाए और 2008 से पूर्व की सेवाओं को प्रबोधक सेवा में जोड़ा जाए. उन्होंने कहा कि 14 जून, 2021 को वर्तमान गहलोत सरकार ने 5000 वरिष्ठ प्रबोधक पद दिए थे, जो वरिष्ठ अध्यापक के समकक्ष है. लेकिन शिक्षा विभाग ने उन्हें अब तक लागू नहीं किया है.
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उन्होंने शिकायत करते हुए कहा कि दुनिया में ऐसी पहली पदोन्नति है कि सीएम की घोषणा के बाद भी थर्ड ग्रेड के प्रबोधक को वरिष्ठ प्रबोधक नाम दे दिया गया. लेकिन ग्रेड थर्ड ही रखा गया. उल्टा उनका डिमोशन कर दिया गया. वरिष्ठ अध्यापक बनाते हुए मिडिल स्कूल का हेडमास्टर बनाया जाना था या फिर सेकेंडरी सेटअप में विषय अध्यापक बनाया जाना था. उसके स्थान पर उन्हें प्राइमरी में लगा दिया गया. प्रबोधकों ने बताया कि इसके अलावा वेतन विसंगति एक प्रमुख मांग है. जिससे सभी प्रबोधक जूझ रहे हैं. हर प्रबोधक को प्रतिमाह 5000 से 8000 रुपए का नुकसान हो रहा है. यही वजह है कि राज्य सरकार की ओर से पूर्व में गठित सामंत कमेटी और खेमराज कमेटी को वार्ता करते हुए डॉक्यूमेंट के माध्यम से समझाया गया था. लेकिन सरकार इन दोनों ही कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर रही है.
वहीं, पदोन्नति के बाद पदनाम परिवर्तन की भी प्रबोधकों ने मांग रखते हुए कहा कि जब वरिष्ठ प्रबोधक बनाया गया तो उनका पद नाम परिवर्तन करते हुए वरिष्ठ प्रबोधक को वरिष्ठ अध्यापक और प्रबोधक को अध्यापक पदनाम कर दिया जाए. ताकि 25 हजार प्रबंधकों को भविष्य में किसी तरह की समस्या न हो. साथ ही महिला प्रबोधक नीलम माहेश्वरी ने बताया कि प्रबोधक नाम से हीन दृष्टि से देखा जाता है. जबकि प्रबोधकों ने गांव-ढाणी तक जाकर 1992 से शिक्षा की अलख जगानी शुरू की थी. उन्होंने कहा कि दुर्गम क्षेत्रों में भी जाकर बच्चों को पढ़ाया गया. बावजूद इसके 2008 से पहले की पुरानी सेवाओं को सरकार मानने को तैयार नहीं है. मांग यही है कि 2008 में जब सरकार ने नियमित किया उससे पहले की सेवाओं को प्रबोधक सेवा में जोड़ा जाए. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रबोधक के साथ सौतेला व्यवहार होता है, सरकार पदोन्नति के बजाय डिमोशन दे रही है.
प्रबोधकों के अनुसार प्रबोधक शिक्षक का पर्यायवाची शब्द है. जिस तरह शिक्षक छात्रों को ज्ञान देता है, समाज को शिक्षित करता है, उसी तरह प्रबोधक बोध कराने का काम करता है. चूंकि सरकार को 35 हजार लोगों को नियमित करना था, लेकिन केंद्र की किसी गाइडलाइन की बाधा आने के चलते नया नाम देते हुए वसुंधरा सरकार ने 2008 में पंचायती राज प्रबोधक सेवा अधिनियम 2008 को विधानसभा में लाकर 25 हजार बीएसटीसी बीएड को नियमित किया था. हालांकि, शिक्षक और प्रबोधक दोनों ही समकक्ष पद है. जिसमें काम और वेतन को लेकर कोई अंतर नहीं है.