जयपुर. राजस्थान के बांसवाड़ा जिले स्थित मानगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 नवम्बर को जनसभा को संबोधित (PM Modi will hold meeting in Mangarh) करेंगे. यह सभा आदिवासियों के प्रमुख तीर्थ स्थल मानगढ़ धाम में होगी. मानगढ़ धाम को लेकर सियासी गलियारों में खासी चर्चा है. उम्मीद भी मख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री के दौरे की घोषणा के साथ ही मानगढ़ धाम के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिये जाने की मांग की है. ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि क्यों इस जगह का ऐतिहासिक महत्व (unique history of Mangarh Dham) आज भी लोगों के लिए अहम है. क्यों इस जगह को वागड़ के ट्राइबल बेल्ट में तीर्थ स्थान का दर्जा दिया गया है.
यह है मानगढ़ धाम का इतिहास
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट करने से पहले पत्र भी लिख चुके हैं. गहलोत ने अपने स्मरण पत्र में प्रधानमंत्री को दो बार पत्र लिखकर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है. इस पत्र में गहलोत ने लिखा था कि साल 1913 में मानगढ़ में गोविन्द गुरू के नेतृत्व में जमा हुए वनवासियों पर ब्रिटिश सेना ने अंधाधुंध फायरिंग की थी. इस फायरिंग में 1500 से अधिक वनवासियों ने बलिदान दिया था. गोविन्द गुरु के योगदान और आदिवासियों के बलिदान को दुनिया तक पहुंचाने के लिये यहां जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय बनाया है. लिहाजा सीएम गहलोत ने जनजातीय आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र (Tribal Society of Mangarh) के इस महत्वपूर्ण स्थल को प्राचीन स्मारक, पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत इसे ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्मारक की घोषणा की मांग की है.
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इस जगह को राजस्थान का जलियांवाला बाग के नाम से भी जाना जाता है. जहां जलियांवाला बाग में एक हजार लोगों के जनरल डायर की गोली के नाम से मारे जाने की बात सामने आती है. वहीं मानगढ़ में 1500 जनजातीय लोगों पर ब्रिटनी हुकूमत ने पूरी तैयारी के साथ फायरिंग की थी. इस नरसंहार को स्वीकार करने में सरकारों ने भी बहुत समय लगा दिया. यहां स्मारक से लेकर पैनोरमा और संग्राहलय बीते दो दशक में ही बने हैं. इसके पहले यहां 8 दशक तक कुछ खास काम नहीं हुआ. राजस्थान सरकार ने नरसंहार में मारे गए सैकड़ों लोगों की याद में 27 मई, 1999 को शहीद स्मारक बनवाया था.
इतिहास के जानकार बताते हैं कि डूंगरपुर के बांसिया (वेड़सा) गांव के बंजारा परिवार में जन्मे गोविंद गुरु ने 1880 में लोगों को जागरूक करने के लिए आंदोलन चलाया था. उन्होंने जनजातीय समुदाय में व्याप्त बुराइयों और दुराचार के खात्मे के लिये 1903 में संप सभा की स्थापना की थी. इस दौरान मानगढ़ की पहाड़ी पर लगातार यज्ञ अनुष्ठान का आयोजन किया जाने लगा जिसमें वागड़ से बड़ी संख्या में आदिवासी लोग शामिल होने लगे.
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कहते हैं कि गुरु गोविंद की मुहिम का असर कुछ सालों में इतना रहा कि उनके आंदोलन से चोरी तक की घटनाएं भी बंद हो गई और शराब पीने वालों की तादाद कम होने से राजस्व घट गया था. गोविंद गुरु ने लोगों को समझाया कि धूणी में पूजा करें, शराब-मास नहीं खाएं और स्वच्छ रहें. जनजागृति की यह मुहिम देसी रियासतों को राजस्व के नजरिये से रास नहीं आई, लिहाजा उन्होंने यह कहा कि गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासी अलग स्टेट यानी भील राज्य की मांग कर रहे हैंं. लिहाजा रजवाड़ों ने अंग्रेजी हुकूमत से इनके आंदोलन की शिकायत की.
17 नवंबर 1913 को मानगढ़ की पहाड़ी पर नरसंहार
मानगढ़ पर यज्ञ के लिए लोगों का कई दिन से आना जारी था. इस बीच ब्रिटिश सरकार ने गोविंद गुरु से मानगढ़ पहाड़ी ख़ाली करने के लिए कहा. वार्ता विफल होने पर स्थानीय रियासतों की फौज और अंग्रेजों के असलहे-बारूद के दम पर पहाड़ी का नक्शा बनाकर खच्चरों की मदद से गोला-बारूद और तोप मानगढ़ पहाड़ी पर पहुंचाई गई. मेजर हैमिल्टन और उनके तीन अफ़सरों ने सुबह 6.30 बजे हथियारबंद फ़ौज के साथ मानगढ़ पहाड़ी को तीन ओर से घेर लिया और सुबह आठ बज कर दस मिनट पर गोलीबारी शुरु कर दी. करीब दो घंटे फायरिंग चली. पहाड़ी की ऊंचाई से एक के बाद एक शव गिरते गए और 1500 के करीब आदिवासियों की जनजागृति की मुहिम को नरसंहार में तब्दील कर दिया गया. आज भी देश के सबसे बड़े नरसंहार को इतिहास में हाशिये पर रखा गया है.
मानगढ़ का संदेश आदिवासी पट्टी में
मानगढ़ धाम राजस्थान-गुजरात बॉर्डर पर बांसवाड़ा के आनंदपुरी के पास एक पहाड़ी पर है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करीब 10 साल पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मानगढ़ धाम आये थे. इस दौरान उन्होंने वन महोत्सव के मौके पर गोविंद गुरू स्मृति वन का लोकार्पण किया था. मोदी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि मानगढ़ धाम पर गोविंद गुरु के नेतृत्व में आजादी की अलख जगा रहे डेढ़ हजार से ज्यादा भक्तों पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाई थीं. उन्होंने तब इसे जलियांवाला बाग हत्याकांड से बड़ा नरसंहार बताया था.
पीएम मोदी इस बार मानगढ़ में अपनी सभा के जरिए तीन राज्यों के चुनावी समीकरणों को साधेंगे. साथ ही यहां से देशभर के आदिवासी समाज को बड़ा मैसेज भी देंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनसभा में राजस्थान समेत तीन राज्यों जिनमें गुजरात और मध्यप्रदेश से करीब 1 लाख आदिवासी पहुंचेंगे. इसके राजनीतिक मायने कहते हैं कि इन राज्यों की करीब 99 आदिवासी सीटों को जनसभा और सम्मेलन से साधा जाएगा. इनमें से राजस्थान की 25, गुजरात की 27 और मध्यप्रदेश की 47 ST रिजर्व विधानसभाओं में सीधा पैगाम जाएगा.
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इस कार्यक्रम में तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष भी बुलाए गए हैं. इस जनसभा के जरिये अनुसूचित क्षेत्र में शामिल प्रदेश के 8 जिलों बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ के अलावा राजसमंद , उदयपुर , चित्तौड़गढ़, सिरोही और पाली की विधानसभा सीटों को साधा जाएगा. अगर राजस्थान में इन आदिवासी बाहुल्य जिलों में दलीय स्थिति पर नजर डालें तो बांसवाड़ा की 5 में से 2 ही सीटों पर बीजेपी के विधायक काबिज हैं. वहीं डूंगरपुर की 4 में से 1 ही सीट बीजेपी के पास है. इसी तरह प्रतापगढ़ में दोनों बीजेपी के हाथ से निकल गईं हैं. हालांकि उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सिरोही और में बीजेपी मजबूत दिखती है.
गहलोत ने यह लिखा ट्वीट में
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ट्वीट आया है जिसमें सीएम ने लिखा है कि एक नवंबर को प्रधानमंत्री बांसवाड़ा आ रहे हैं, जहां मानगढ़ धाम के दौरे पर पीएम से फिर से निवेदन करना चाहूंगा कि इसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए. मानगढ़ धाम का भारत की आजादी की लड़ाई में ऐतिहासिक महत्व है. गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासी भाई-बहनों का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान है. अनेकों आदिवासियों ने बलिदान दिया है. उन्होंने लगातार प्रधानमंत्री से मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग की है.