जयपुर. उदयपुर जिले के मावली में 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी जघन्य हत्या, शव के साथ दरिंदगी और बॉडी के टुकड़े करके फेंकने का मामला सामने आने के बाद प्रदेश में कम उम्र की बेटियों की सुरक्षा पर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं. एक तरफ इस घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है, तो दूसरी तरफ बेटियों के साथ ज्यादती की घटनाओं के लगातार बढ़ते आंकड़े ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
आंकड़ों की बात करें, तो राजस्थान में कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की पिछले साल जारी हुई रिपोर्ट बताती है कि दुष्कर्म मामलों में राजस्थान देश में पहले नंबर पर है. राजस्थान में 2021 में दुष्कर्म के कुल 6337 मामले दर्ज हुए. बात अगर नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामलों की करें, तो 2020 से अप्रैल 2022 तक रेप के 13890 मामले दर्ज हुए.
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इनमें से 11307 मामले नाबालिग बच्चियों के साथ ज्यादती के हैं. जबकि इस अवधि में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दरिंदगी के 170 मामले सामने आए हैं. राजस्थान विधानसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, जनवरी 2019 से जनवरी 2022 तक नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के 5793 मामले प्रदेशभर में थानों में दर्ज हुए हैं. इन तीन सालों में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के 6628 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.
राजस्थान में 56 पॉक्सो कोर्ट, सजा 129 को ही : सरकार ने विधानसभा में जो आंकड़ा रखा है, उसके अनुसार बीते तीन साल (जनवरी-19 से जनवरी-2022) में कम उम्र की बच्चियों के साथ दरिंदगी के मामलों में 129 दोषियों को ही सजा हो पाई है. इनमें से भी महज 8 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है. लेकिन फांसी दी नहीं गई है. इनमें से ज्यादातर मामले हाईकोर्ट में पेंडिंग हैं. प्रदेश में कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई के लिए 56 पॉक्सो कोर्ट हैं. लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया के चलते बहुत कम मामलों में सजा हो पाई है.
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2013 में किया गया था फांसी की सजा का प्रावधानः बता दें कि साल 2013 में नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में सरकार ने फांसी की सजा का प्रावधान किया था. दरअसल, 3 फरवरी 2013 को सरकार क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस लाई थी. इसके तहत आईपीसी की धारा 181 और 182 को बदलकर ऐसा प्रावधान किया गया था कि दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा मिल सके.
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रिपोर्ट आने के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज, सीएम गहलोत को देनी पड़ी थी सफाईः प्रदेश में कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के आंकड़ों को लेकर NCRB की रिपोर्ट आने के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी जोर-शोर से हुई थी. इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं ने सरकार को घेरते हुए बेटियों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था. तब खुद सीएम अशोक गहलोत को सफाई देनी पड़ी थी. हालांकि, सरकार और पुलिस ने तब यह दलील दी थी कि राजस्थान में अनिवार्य प्राथमिकी के नियम के चलते आंकड़े बढ़ रहे हैं. जांच में कई मामले झूठे भी पाए जा रहे हैं.