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नवरात्र शुभारंभ के साथ आश्विन शुक्ल पक्ष की मातामाह श्राद्ध 17 अक्टूबर को...

इस बार मातामह श्राद्ध यानी नानी-नाना का श्राद्ध करने की तिथि शनिवार को है. इस दिन धर्मग्रंथों के अनुसार एक पुत्री अपने पिता और एक नाती अपने नाना को तर्पण के रूप में करता है. इस श्राद्ध को सुख-शांति का प्रतीक माना गया है.

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Published : Oct 16, 2020, 6:07 PM IST

Matamah Shraddha, राजस्थान हिंदी न्यूज
मातामह श्राद्ध कल

जयपुर. इस बार श्राद्ध पक्ष के बाद आश्विन अधिकमास शुरू होने के कारण मातामह श्राद्ध यानी नानी-नाना का श्राद्ध नहीं निकाला जा सका. शास्त्रों की परंपरा के अनुसार हर साल पहले नवरात्रि को यह श्राद्ध निकाला जाता है, लेकिन अब पुरुषोत्तम मास समाप्त होने पर निज आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शनिवार को निकाला जाएगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ. राजेश शर्मा के अनुसार मातामह एक ऐसा श्राद्ध है, जो एक पुत्री अपने पिता और एक नाती अपने नाना को तर्पण के रूप में करता है. इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना गया है. जिसमें कई धर्म का ग्रंथ महिलाओं को श्राद्ध का अधिकार देते हैं, जो कि शनिवार को है. इस दिन परिजनों की स्मृति में तर्पण और श्राद्ध कर्म की तिथि अनुसार करने की परंपरा है लेकिन कई बार तिथि पता नहीं होने या दिवंगत के परिवार में संतान ना होने सहित कई समस्याएं होती हैं तो इस स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है.

यह भी पढ़ें. SPECIAL: हाथ धुलने का लें संकल्प, ताकि सुरक्षित रहें हम...

इसी प्रकार यह माना जाता है कि मातामह का श्राद्ध सुख शांति और संपन्नता की निशानी है. इसमें यह बात गौर करने लायक है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपने बेटी के घर का पानी भी नहीं पीता और इसे वर्जित माना गया है लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दौहित्र करता है. हालांकि, यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें हैं. अगर यह पूरी ना हो तो यह श्राद्ध नहीं किया जा सकता है.

जयपुर. इस बार श्राद्ध पक्ष के बाद आश्विन अधिकमास शुरू होने के कारण मातामह श्राद्ध यानी नानी-नाना का श्राद्ध नहीं निकाला जा सका. शास्त्रों की परंपरा के अनुसार हर साल पहले नवरात्रि को यह श्राद्ध निकाला जाता है, लेकिन अब पुरुषोत्तम मास समाप्त होने पर निज आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शनिवार को निकाला जाएगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ. राजेश शर्मा के अनुसार मातामह एक ऐसा श्राद्ध है, जो एक पुत्री अपने पिता और एक नाती अपने नाना को तर्पण के रूप में करता है. इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना गया है. जिसमें कई धर्म का ग्रंथ महिलाओं को श्राद्ध का अधिकार देते हैं, जो कि शनिवार को है. इस दिन परिजनों की स्मृति में तर्पण और श्राद्ध कर्म की तिथि अनुसार करने की परंपरा है लेकिन कई बार तिथि पता नहीं होने या दिवंगत के परिवार में संतान ना होने सहित कई समस्याएं होती हैं तो इस स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है.

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