जयपुर. भारतीय सेना ने देश को एक से बढ़कर एक नायाब जनरल दिए हैं .कई जनरल ने युद्ध में अपनी बेहतरीन रणनीति के कारण अमिट छाप छोड़ी तो कई अपने जवानों से कंधा से कंधा मिलाकर रणक्षेत्र में नेतृत्व करते दिखाई दिए. भारतीय सेना ने एक ऐसे ही अधिकारी को उनकी जन्म शताब्दी पर ख़ास सम्मान से नवाजने का निर्णय लिया है.
यह राजस्थान के वह वीर सपूत है जिन्होंने न केवल पुर्तगालियों से गोवा को आजादी दिलाई बल्कि बांग्लादेश को आजाद कराने में भी बड़ी भूमिका निभाई. यही नहीं बांग्लादेश सरकार ने उनके योगदान के लिए उन्हें विदेशी मित्र के सम्मान से नवाजा. वो और कोई नहीं बल्कि योद्धा लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ही हैं. जिनकी इसी साल जन्म शताब्दी है और भारतीय सेना इसे बड़े स्तर पर मनाने का ऐलान कर चुकी है.
दरअसल, लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को गोवा और बांग्लादेश के लोग आज भी बड़े सम्मान के साथ याद करते हैं. कारण इन दोनों की आजादी में लेफ्टिनेंट सगत सिंह की बड़ी भूमिका रही है. बांग्लादेश सरकार ने तो बकायदा उनके परिजनों को वहां बुलाकर अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया.
आज लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के प्रतिमा का अनावरण जयपुर में आर्मी कैंपस के पास किया गया साथ ही एक मार्ग का नाम भी जनरल सगत सिंह के नाम पर रखा गया .इस दौरान शप्त शक्ति कमांड के कमांडर चेरिश मेटसन ने राजस्थान के मुख्य सचिव डी बी गुप्ता के सामने ही कहा कि पाठ्यक्रम में जितना लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को पढ़ाया जाना चाहिए उन्हें उतना नहीं पढ़ाया गया है और ना ही उन्हें भरपूर सम्मान दिया गया है.
इस दौरान कार्यक्रम में मौजूद राजस्थान के मुख्य सचिव डी बी गुप्ता ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राजस्थान के ही वीर योद्धा थे और उन्हें राजस्थान के पाठ्यक्रम में शामिल करवाया जाना चाहिए. इसके लिए उन्होंने कहा कि आर्मी उन्हें इस बारे में लिखकर दें ताकि शिक्षा विभाग से बात करके वह लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के पाठ्यक्रम को वह शामिल करवाएं. वहीं आर्मी कमांडर ने यह कहा कि जिस सम्मान के वह अधिकारी थे उतना सम्मान उन्हें नहीं मिला है. और जो अवार्ड उन्हें मिलने चाहिए थे वह भी उन्हें नहीं मिले. जनरल सगत सिंह के बेटे ने कहा कि उनके पिता को भारत रत्न दिया जाना चाहिए. यह केवल उनकी मांग नहीं बल्कि आर्मी के अधिकारियों की भी मांग है.
एक नज़र डाल लेते हैं वीर योद्धा जनरल सगत सिंह की कहानी पर
राजस्थान के चुरू जिले के कुसुम देसर गांव में 14 जुलाई 1919 को जन्मे सगत सिंह 1950 में भारतीय सेना में शामिल हुए. नायब सूबेदार के पद से बीकानेर गंगा रिसाला में लेफ्टिनेंट के रूप में कमिश्नर हुए, फिर उन्होंने दूसरा विश्व युद्ध भी लड़ा. 1955 में पहले भारतीय अधिकारी थे जिन्हें गोरखा राइफल की कमान दी गई उस वक्त गोरखा राइफल में उनसे पहले सिर्फ ब्रिटिश अधिकारी ही तैनात होते थे.
ऐसा माना जाता है कि गोरखा भारतीय अधिकारी का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल सगत सिंह ने सभी का दिल जीत लिया. साल1961 में ब्रिगेडियर सगत सिंह ने प्रसिद्ध 50 पैरा की कमान हाथ में ली उस समय वह पैरा जंपिंग करना तक नहीं जानते थे. पैरा जंप करने वाले अधिकारी की वाह पर ही लगाए जाते थे इसके बिना सैनिक सम्मान नहीं देते थे. ऐसे में 40 साल से अधिक उम्र होने के बावजूद उन्होंने पैरा जंपिंग का कोर्स पूरा किया इस बीच वह मौका भी आया जब गोवा को पुर्तगाल के कब्जे से मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना के तीनों सेना वायुसेना और नौसेना ने मिलकर संयुक्त ऑपरेशन चलाया गोवा मुक्ति के लिए 1961 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय में 50 पैरा को सहयोगी की भूमिका में चुना गया और इसी के चलते आगे बढ़े. 18 सितंबर को 50 पैरा को गोवा में उतारा गया.
19 दिसंबर को उनकी बटालियन गोवा के निकट पहुंच गई बाहर रखने के बाद उनके जवानों ने तैरकर नदी को पार किया और शहर में प्रवेश किया. और उन्होंने अचानक धावा बोलकर पुर्तगाल के सैनिकों सहित करीब 6 लोगों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया. इसके साथ ही गोवा पर 451 साल से चल रहा पुर्तगाल शासन समाप्त हुआ और वह भारत का हिस्सा बन गया. इसके बाद जब आगरा में सिविल ड्रेस में सिंह होटल में खाना खाने गए तो उन्हें होटल के कुछ विदेशी उन्हें मोस्ट वांटेड होने के बारे में भी जानकारी दी.
सगत सिंह का जलवा एक बार फिर साल 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने के अभियान के दौरान देखने को मिला. सभी मानते हैं कि अगर उस समय भारतीय सेना पाकिस्तान में रह रहे आम लोगों के लिए पाकिस्तान के खिलाफ खड़ी ना होती तो शायद बांग्लादेश आजाद ना होता. उनके निर्देश में सेना ने मेघना नदी को पार कर ढाका पर कब्जा किया जिससे पाकिस्तान सेना की लड़ाई करने की क्षमता ही टूट गई और उन्होंने हथियार डाल दिए.
उसके बाद पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ समर्पण किया. इस तरह 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का जन्म हुआ. आज इतने सालों बाद भी बंगलादेश के लोग जनरल सिंह का नाम नहीं भूलते और बकायदा बांग्लादेश की सरकार ने सगत सिंह के परिजनों को बुलाकर उनके इस योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया था.