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जन्माष्टमी विशेषः श्री कृष्ण सिखाते है जीवन जीने का सही मार्ग - krishana janmashtami special

देशभर में जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसे मनाने के पीछे कई कथाएं छिपी हुई है. श्रीकृष्ण का जीवन हमें कुछ ना कुछ सीख प्रदान करता है. जाने कुछ ऐसी ही भगवान के जीवन से जुड़ी बातें...

श्रीकृष्ण विशेष न्यूज, राजस्थान न्यूज, जयपुर राजस्थान न्यूज
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Published : Aug 24, 2019, 10:12 AM IST

जयपुर. श्रीमद्भागवत के अनुसार द्वारका में जब श्रीकृष्ण ने अपना देह-विसर्जत कर रहे थे. उस समय उन्होंने अर्जुन को अपने पास बुलवाकर कहा 'हे अर्जुन मेरी इच्छा है कि तुम द्वारकावासियों को अपने सुरक्षाकवच में हस्तिनापुर लेकर जाओ.' उसके बाद अर्जुन राजमहल की स्त्रियों और प्रजा सहित हस्तिनापुर के लिए चल गए थे.

सकारात्मक उर्जा का भंडार है वासुदेव पुत्र
कृष्ण शब्द अपने आप में ही इतनी सकारात्मक ऊर्जा से बना है कि जीवन में जब कृष्ण शब्द अनुपस्थित होता है. तब व्यक्ति निस्तेज होकर अपने पराभव को प्राप्त होता है. कृष्ण, जीवन के प्रत्येक आयाम को समग्रता से स्वीकार करते हैं. इसलिए वह दुख के महासागर में भी नाचते-गाते मग्न नजर आते थे.

हर रंग में रंगे हैं मोहन
कृष्ण ने अपने जीवन के सभी रंगों को अपनाया था. वह लोगों के प्रेम से प्रेम करते थे. उसी प्रेम की पराकाष्ठा थी कि रासलीला को भी उन्होंने दिव्य रुप दे दिया. इतना ही नहीं संन्यास जैसे गंभीर विषय को भी समरसता देने का कार्य कर सकते हैं. सनातन संस्कृति में कृष्ण को पूर्ण अवतार मानते हुए परमपुरुष कहा गया है. कृष्ण के व्यक्तित्व में पुरातनपंथी मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है. कृष्ण सदैव कर्म के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं. इसलिए दूसरों को भी कर्मफल की चिंता से मुक्ति का संदेश देते हैं.

पढ़ें - स्पेशल स्टोरी: राजसमंद के श्री द्वारकाधीश मंदिर में कुछ इस तरह से मनाई जाएगी कृष्ण जन्माष्टमी

चेतना को जगाने का उत्सव है कृष्ण जन्मोत्सव
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा हैं ‘मैं अव्यक्त हूं, अजन्मा हूं.' इसलिए जन्माष्टमी का उत्सव स्वयं के भीतर भी कृष्णजन्मोत्सव मनाने का ढंग यानी कृष्ण-चेतना को जगाने का उत्सव है. जब साधना से हमारे 6 विकार यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर और अहंकार जड़मूल से नष्ट हो जाते हैं. तब हमारे भीतर कृष्ण का वास होगा. श्रीकृष्ण की समस्त लीलाएं हमारा मार्गदर्शन करती हुई जीवन की कठिनाईयों से सामंजस्य स्थापित करना सिखाती हैं.

अर्जुन के सदैव मार्गदर्शक रहे
एक बार जब अर्जुन का कारवां जब जंगल से गुजर रहा थे. तब डाकुओं ने हमला कर दिया था और अंत:पुर की स्त्रियों के आभूषण लूट लिए थे. तब अर्जुन ने बिना समय गंवाए अपने धनुष गांडीव की ओर हाथ बढ़ाया. किंतु यह क्या! वह गांडीव जिसकी टंकार से कौरवों के खेमे में हाहाकार मच जाता था. आज इतना भारी हो गया कि उसे उठाना तो दूर, महाभारत का विजेता सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर, धनुष की कमान पर प्रत्यंचा भी नहीं चढ़ा पाए और अर्जुन विवश होकर अपने काफिले को लुटता हुआ देख रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे वही अर्जुन है, जिसने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भीष्म पितामह सहित अजेय योद्धाओं को परास्त किया था. तब अर्जुन को कृष्ण के शब्द याद आए. "हे पार्थ! तुम तो केवल निमित्त मात्र हो, इस संसार में जो कुछ घटित होता है, वह परमपुरुष की इच्छा से होता है.

पढ़ें- भारत सहित पूरी दुनिया में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम

अद्भूत लीलाओं के स्वामी है श्रीकृष्ण
जब घमंड, छल-छद्म व कदाचार के प्रतीक बन गए इंद्र से गोकुल की प्रजा दुखी हो गई और कृष्ण ने पूरे ब्रजमंडल में इंद्र की पूजा पर रोक लगा दी थी. तब इंद्र ने नदियों के तटबंध तोड़कर ब्रज में जल-प्रलय उत्पन्न कर दिया. ऐसे में कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत पर विस्थापित कर उनकी रक्षा की थी.

जयपुर. श्रीमद्भागवत के अनुसार द्वारका में जब श्रीकृष्ण ने अपना देह-विसर्जत कर रहे थे. उस समय उन्होंने अर्जुन को अपने पास बुलवाकर कहा 'हे अर्जुन मेरी इच्छा है कि तुम द्वारकावासियों को अपने सुरक्षाकवच में हस्तिनापुर लेकर जाओ.' उसके बाद अर्जुन राजमहल की स्त्रियों और प्रजा सहित हस्तिनापुर के लिए चल गए थे.

सकारात्मक उर्जा का भंडार है वासुदेव पुत्र
कृष्ण शब्द अपने आप में ही इतनी सकारात्मक ऊर्जा से बना है कि जीवन में जब कृष्ण शब्द अनुपस्थित होता है. तब व्यक्ति निस्तेज होकर अपने पराभव को प्राप्त होता है. कृष्ण, जीवन के प्रत्येक आयाम को समग्रता से स्वीकार करते हैं. इसलिए वह दुख के महासागर में भी नाचते-गाते मग्न नजर आते थे.

हर रंग में रंगे हैं मोहन
कृष्ण ने अपने जीवन के सभी रंगों को अपनाया था. वह लोगों के प्रेम से प्रेम करते थे. उसी प्रेम की पराकाष्ठा थी कि रासलीला को भी उन्होंने दिव्य रुप दे दिया. इतना ही नहीं संन्यास जैसे गंभीर विषय को भी समरसता देने का कार्य कर सकते हैं. सनातन संस्कृति में कृष्ण को पूर्ण अवतार मानते हुए परमपुरुष कहा गया है. कृष्ण के व्यक्तित्व में पुरातनपंथी मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है. कृष्ण सदैव कर्म के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं. इसलिए दूसरों को भी कर्मफल की चिंता से मुक्ति का संदेश देते हैं.

पढ़ें - स्पेशल स्टोरी: राजसमंद के श्री द्वारकाधीश मंदिर में कुछ इस तरह से मनाई जाएगी कृष्ण जन्माष्टमी

चेतना को जगाने का उत्सव है कृष्ण जन्मोत्सव
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा हैं ‘मैं अव्यक्त हूं, अजन्मा हूं.' इसलिए जन्माष्टमी का उत्सव स्वयं के भीतर भी कृष्णजन्मोत्सव मनाने का ढंग यानी कृष्ण-चेतना को जगाने का उत्सव है. जब साधना से हमारे 6 विकार यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर और अहंकार जड़मूल से नष्ट हो जाते हैं. तब हमारे भीतर कृष्ण का वास होगा. श्रीकृष्ण की समस्त लीलाएं हमारा मार्गदर्शन करती हुई जीवन की कठिनाईयों से सामंजस्य स्थापित करना सिखाती हैं.

अर्जुन के सदैव मार्गदर्शक रहे
एक बार जब अर्जुन का कारवां जब जंगल से गुजर रहा थे. तब डाकुओं ने हमला कर दिया था और अंत:पुर की स्त्रियों के आभूषण लूट लिए थे. तब अर्जुन ने बिना समय गंवाए अपने धनुष गांडीव की ओर हाथ बढ़ाया. किंतु यह क्या! वह गांडीव जिसकी टंकार से कौरवों के खेमे में हाहाकार मच जाता था. आज इतना भारी हो गया कि उसे उठाना तो दूर, महाभारत का विजेता सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर, धनुष की कमान पर प्रत्यंचा भी नहीं चढ़ा पाए और अर्जुन विवश होकर अपने काफिले को लुटता हुआ देख रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे वही अर्जुन है, जिसने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भीष्म पितामह सहित अजेय योद्धाओं को परास्त किया था. तब अर्जुन को कृष्ण के शब्द याद आए. "हे पार्थ! तुम तो केवल निमित्त मात्र हो, इस संसार में जो कुछ घटित होता है, वह परमपुरुष की इच्छा से होता है.

पढ़ें- भारत सहित पूरी दुनिया में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम

अद्भूत लीलाओं के स्वामी है श्रीकृष्ण
जब घमंड, छल-छद्म व कदाचार के प्रतीक बन गए इंद्र से गोकुल की प्रजा दुखी हो गई और कृष्ण ने पूरे ब्रजमंडल में इंद्र की पूजा पर रोक लगा दी थी. तब इंद्र ने नदियों के तटबंध तोड़कर ब्रज में जल-प्रलय उत्पन्न कर दिया. ऐसे में कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत पर विस्थापित कर उनकी रक्षा की थी.

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