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जानिए कैसे रुद्राक्ष धारण करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा

रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है यही वजह है जिसके चलते सनातन धर्म में रुद्राक्ष का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है. रुद्राक्ष मनुष्य को हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. मान्यता है कि भगवान शिव के आंसू से रुद्राक्ष पैदा हुआ था. यही वजह है जिसके चलते रुद्राक्ष को पहनने या रुद्राक्ष के विशेष प्रयोग करने से विशेष फल मिलता है. इसके साथ ही अकाल मृत्यु और शत्रु बाधा से भी रुद्राक्ष रक्षा करता है.

जानिए कैसे रुद्राक्ष धारण करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा
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Published : Jul 30, 2019, 10:47 AM IST

देहरादून: देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है रुद्राक्ष धारण करना. शस्त्रों के अनुसार सावन के माह में शिव स्वरूप रुद्राक्ष की पूजा मोक्षदायिनी बताई गई हैं. जी हां रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है यही वजह है जिसके चलते सनातन धर्म में रूद्राक्ष का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है. रुद्राक्ष मनुष्य को हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. सभी संकटों को दूर करने वाले रुद्राक्ष का महत्व और रुद्राक्ष धारण करने से किस तरह बाधाएं दूर होती है और सावन महीने में रुद्राक्ष का क्या विशेष महत्व है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

जानिए कैसे रुद्राक्ष धारण करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा ?

रुद्राक्ष का वृक्ष भारत, नेपाल समेत कई देशों के हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है. रुद्राक्ष को रुद्र का अक्ष यानी भगवान शंकर का आंसू कहा जाता है. रुद्राक्ष इस धरती पर एकमात्र ऐसी वस्तु है जिसे मंत्र जाप और ग्रहों को नियंत्रण करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. रुद्राक्ष के पेड़ से उत्तपन्न होने वाले फल की गुठली ही रुद्राक्ष होती है, जिसका विशेष औषधीय और आध्यात्मिक महत्व है. मान्यता है कि भगवान शिव के आंसू से रुद्राक्ष पैदा हुआ था. यही वजह है जिसके चलते रुद्राक्ष को पहनने या रुद्राक्ष के विशेष प्रयोग करने से विशेष फल मिलता है. इसके साथ ही अकाल मृत्यु और शत्रु बाधा से भी रुद्राक्ष रक्षा करता है.

ये भी पढ़ें: एक थी 'टिहरी', 'जलसमाधि' से चुकाई विकास और आधुनिकता की कीमत

रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यता

रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यताओं की माने तो रुद्राक्ष भगवान शंकर का अंश है. इसलिए इसे साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है इसके साथ ही रुद्राक्ष को सुख-सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया गया है. भगवान भोले की पूजा के दौरान खास तौर पर शिव भक्तों को रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं. मान्यता है कि रुद्राक्ष अपने आकार और रूप के मुताबिक अलग-अलग प्रभाव और फल देता है, धर्म के नजरिए से देखें तो हर रूद्राक्ष, पाप नाशक और शिव के साथ सत्य को भी खुश करने वाला माना गया है.


धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि सावन महीने में रुद्राक्ष अत्यधिक प्रभावशील होता है. सावन के महीना को भगवान शंकर का माह माना गया है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने लंबे अंतराल तक अपनी आंखों को बंद किया हुआ था और उसके बाद समाज कल्याण के लिए जब अपनी आंखों को खोला तो भगवान शंकर की आंखों से आंसू धरती पर गिरे थे. जिन्हें रूद्र का अक्ष (रुद्राक्ष) कहते हैं यानी शंकर का आंसू माना जाता है. माना जाता है कि भगवान शंकर ने समाज के कल्याण के लिए रुद्राक्ष को संसार में जन्म दिया.

ये भी पढ़ें: टिहरी सड़क हादसा: ऑल वेदर रोड का निर्माण कर रही संस्था के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज

रूद्राक्ष का महत्व

धर्माचार्य आचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष का महत्व तो हमेशा से ही रहा है लेकिन रुद्राक्ष से जब हम जप करते हैं तब रुद्राक्ष उंगलियों में एक्यूप्रेशर का कार्य करता है. साथ ही हाथों में बनी लकीरों को पलटने में रुद्राक्ष का एक बड़ा महत्व है इसके साथ ही हृदय की बीमारी के लिए रुद्राक्ष औषधि का काम करता है. साथ ही रुद्राक्ष की भस्म को खाया भी जाता है और लगाया भी जाता है. वहीं धर्माचार्य ने बताया कि जो मनुष्य मस्तिष्क में चंदन का टीका, कंठ में रुद्राक्ष की माला ग्रहण करता है, साथ ही ओम नमः शिवाय जपता है, उसे शिव पुराण में शिव कहा गया है.

दो तरह का होता है रुद्राक्ष

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष की एक अन्य प्रजाति भी है जिसे भद्राक्ष कहते हैं. आमतौर पर बाजारों में जो मिलता है वह रूद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है, रुद्राक्ष की उत्पादन शक्ति बहुत कम होती है. यही वजह है कि रुद्राक्ष की तरह दिखने वाला रुद्राक्ष रुद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है. लम्बे समय के अंतराल पर रुद्राक्ष का वृक्ष बड़ा होता है. जिसके चलते रुद्राक्ष का उत्पादन बेहद कम होता है.

रुद्राक्ष का शिव लिंग

देहरादून स्थित प्राचीन मंदिरों में से एक टपकेश्वर मंदिर में मात्र रुद्राक्ष से बनी हुई शिव लिंग मौजूद है. 5 हजार 1 सौ 51 रुद्राक्षों से बनी शिवलिंग में विभिन्न मुखी रुद्राक्ष को बुना गया है. टपकेश्वर मंदिर के महंत हरी गिरी ने बताया कि देशभर में मात्र एक ही रुद्राक्ष से बनी शिवलिंग है जो देहरादून के टपकेश्वर मंदिर में स्थित है.
एक से लेकर 21 मुखी तक होते हैं रुद्राक्ष....

. भगवान शिव का रूप है एक मुखी रुद्राक्ष.
. श्री गौरी शंकर का स्वरूप है दो मुखी रुद्राक्ष.
. तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप है.
.चार मुखी रुद्राक्ष है साक्षात् ब्रह्म देव का है प्रतीक.
. पंचमुखी रुद्राक्ष है पंच तत्वों का प्रतीक.
. छह मुखी रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का रूप.
. सात मुखी रूद्राक्ष है भगवान अनंत का रूप.
. आठ मुखी रुद्राक्ष है भैरव का रूप.
. नौ मुखी रुद्राक्ष मां दुर्गा का है स्वरूप.
. दस मुखी रुद्राक्ष है जीवन के दस तत्व को प्रभावित करती है.
. ग्यारह मुखी रूद्राक्ष, भगवान विष्णु का है रूप.
. बारह मुखी रुद्राक्ष 12 ज्योतिर्लिंगों का है प्रतीक.
. तेरह मुखी रुद्राक्ष है इंद्रदेव का रूप.
. चौदह मुखी रूद्राक्ष स्वयं बजरंगबली का है स्वरूप.
. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष लौकिक पंच तत्वों का है प्रतीक.
. सोलह मुखी रुद्राक्ष, व्यापार में विघ्न बाधाओं को करता है दूर.
. सत्तरह मुखी रुद्राक्ष न्यायालय की बाधाओं को करता है दूर.
. अठ्ठारह मुखी रुद्राक्ष जीवन में भक्ति को करता है प्रभावित.
. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष अचानक घटने वाली दुर्घटना से बचाता है.
. बीस मुखी रुद्राक्ष इंद्रियों के कवच के रूप में करती हैं काम.
. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष स्वयं रुद्र का है स्वरूप.

तीन तरह के है विशेष रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष को शिव और सजक्ति का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से सर्वसिद्धिदायक, मोक्ष प्राप्ति और दंपत्ति जीवन में सुख शांति प्राप्त होती है.

गणेश रुद्राक्ष

गणेश रुद्राक्ष को भगवन गणेश का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है.

ये भी पढ़ें:जल्द बदलेगी नवोदय विद्यालयों की तस्वीर, मौजूद होंगी राष्ट्रीय स्तर की हर सुविधाएं


गौरीपाठ रुद्राक्ष

गौरीपाठ रुद्राक्ष को त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से त्रिदेव यानि ब्रम्हा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है.

विभिन्न रुद्राक्षों की मालाओं को धारण करने के तरीके और महत्व


. 12 दानों से बने रुद्राक्ष को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.

. 15 दानों से बने रुद्राक्ष की माला जप, मंत्र-तंत्र और सिद्धि जैसे कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है.

. 16 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को हाथों में धारण करना चाहिए.

. 26 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को सर पर धारण नहीं करना चाहिए.

. 32 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने से धन, संपत्ति एवं आय की वृद्धि होती है.

. 50 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को गले में धारण करना शुभ होता है.

. 100 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

. 108 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है.

. 108, 50 और 27 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने या फिर जाप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

देहरादून: देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है रुद्राक्ष धारण करना. शस्त्रों के अनुसार सावन के माह में शिव स्वरूप रुद्राक्ष की पूजा मोक्षदायिनी बताई गई हैं. जी हां रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है यही वजह है जिसके चलते सनातन धर्म में रूद्राक्ष का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है. रुद्राक्ष मनुष्य को हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. सभी संकटों को दूर करने वाले रुद्राक्ष का महत्व और रुद्राक्ष धारण करने से किस तरह बाधाएं दूर होती है और सावन महीने में रुद्राक्ष का क्या विशेष महत्व है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

जानिए कैसे रुद्राक्ष धारण करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा ?

रुद्राक्ष का वृक्ष भारत, नेपाल समेत कई देशों के हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है. रुद्राक्ष को रुद्र का अक्ष यानी भगवान शंकर का आंसू कहा जाता है. रुद्राक्ष इस धरती पर एकमात्र ऐसी वस्तु है जिसे मंत्र जाप और ग्रहों को नियंत्रण करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. रुद्राक्ष के पेड़ से उत्तपन्न होने वाले फल की गुठली ही रुद्राक्ष होती है, जिसका विशेष औषधीय और आध्यात्मिक महत्व है. मान्यता है कि भगवान शिव के आंसू से रुद्राक्ष पैदा हुआ था. यही वजह है जिसके चलते रुद्राक्ष को पहनने या रुद्राक्ष के विशेष प्रयोग करने से विशेष फल मिलता है. इसके साथ ही अकाल मृत्यु और शत्रु बाधा से भी रुद्राक्ष रक्षा करता है.

ये भी पढ़ें: एक थी 'टिहरी', 'जलसमाधि' से चुकाई विकास और आधुनिकता की कीमत

रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यता

रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यताओं की माने तो रुद्राक्ष भगवान शंकर का अंश है. इसलिए इसे साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है इसके साथ ही रुद्राक्ष को सुख-सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया गया है. भगवान भोले की पूजा के दौरान खास तौर पर शिव भक्तों को रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं. मान्यता है कि रुद्राक्ष अपने आकार और रूप के मुताबिक अलग-अलग प्रभाव और फल देता है, धर्म के नजरिए से देखें तो हर रूद्राक्ष, पाप नाशक और शिव के साथ सत्य को भी खुश करने वाला माना गया है.


धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि सावन महीने में रुद्राक्ष अत्यधिक प्रभावशील होता है. सावन के महीना को भगवान शंकर का माह माना गया है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने लंबे अंतराल तक अपनी आंखों को बंद किया हुआ था और उसके बाद समाज कल्याण के लिए जब अपनी आंखों को खोला तो भगवान शंकर की आंखों से आंसू धरती पर गिरे थे. जिन्हें रूद्र का अक्ष (रुद्राक्ष) कहते हैं यानी शंकर का आंसू माना जाता है. माना जाता है कि भगवान शंकर ने समाज के कल्याण के लिए रुद्राक्ष को संसार में जन्म दिया.

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रूद्राक्ष का महत्व

धर्माचार्य आचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष का महत्व तो हमेशा से ही रहा है लेकिन रुद्राक्ष से जब हम जप करते हैं तब रुद्राक्ष उंगलियों में एक्यूप्रेशर का कार्य करता है. साथ ही हाथों में बनी लकीरों को पलटने में रुद्राक्ष का एक बड़ा महत्व है इसके साथ ही हृदय की बीमारी के लिए रुद्राक्ष औषधि का काम करता है. साथ ही रुद्राक्ष की भस्म को खाया भी जाता है और लगाया भी जाता है. वहीं धर्माचार्य ने बताया कि जो मनुष्य मस्तिष्क में चंदन का टीका, कंठ में रुद्राक्ष की माला ग्रहण करता है, साथ ही ओम नमः शिवाय जपता है, उसे शिव पुराण में शिव कहा गया है.

दो तरह का होता है रुद्राक्ष

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष की एक अन्य प्रजाति भी है जिसे भद्राक्ष कहते हैं. आमतौर पर बाजारों में जो मिलता है वह रूद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है, रुद्राक्ष की उत्पादन शक्ति बहुत कम होती है. यही वजह है कि रुद्राक्ष की तरह दिखने वाला रुद्राक्ष रुद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है. लम्बे समय के अंतराल पर रुद्राक्ष का वृक्ष बड़ा होता है. जिसके चलते रुद्राक्ष का उत्पादन बेहद कम होता है.

रुद्राक्ष का शिव लिंग

देहरादून स्थित प्राचीन मंदिरों में से एक टपकेश्वर मंदिर में मात्र रुद्राक्ष से बनी हुई शिव लिंग मौजूद है. 5 हजार 1 सौ 51 रुद्राक्षों से बनी शिवलिंग में विभिन्न मुखी रुद्राक्ष को बुना गया है. टपकेश्वर मंदिर के महंत हरी गिरी ने बताया कि देशभर में मात्र एक ही रुद्राक्ष से बनी शिवलिंग है जो देहरादून के टपकेश्वर मंदिर में स्थित है.
एक से लेकर 21 मुखी तक होते हैं रुद्राक्ष....

. भगवान शिव का रूप है एक मुखी रुद्राक्ष.
. श्री गौरी शंकर का स्वरूप है दो मुखी रुद्राक्ष.
. तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप है.
.चार मुखी रुद्राक्ष है साक्षात् ब्रह्म देव का है प्रतीक.
. पंचमुखी रुद्राक्ष है पंच तत्वों का प्रतीक.
. छह मुखी रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का रूप.
. सात मुखी रूद्राक्ष है भगवान अनंत का रूप.
. आठ मुखी रुद्राक्ष है भैरव का रूप.
. नौ मुखी रुद्राक्ष मां दुर्गा का है स्वरूप.
. दस मुखी रुद्राक्ष है जीवन के दस तत्व को प्रभावित करती है.
. ग्यारह मुखी रूद्राक्ष, भगवान विष्णु का है रूप.
. बारह मुखी रुद्राक्ष 12 ज्योतिर्लिंगों का है प्रतीक.
. तेरह मुखी रुद्राक्ष है इंद्रदेव का रूप.
. चौदह मुखी रूद्राक्ष स्वयं बजरंगबली का है स्वरूप.
. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष लौकिक पंच तत्वों का है प्रतीक.
. सोलह मुखी रुद्राक्ष, व्यापार में विघ्न बाधाओं को करता है दूर.
. सत्तरह मुखी रुद्राक्ष न्यायालय की बाधाओं को करता है दूर.
. अठ्ठारह मुखी रुद्राक्ष जीवन में भक्ति को करता है प्रभावित.
. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष अचानक घटने वाली दुर्घटना से बचाता है.
. बीस मुखी रुद्राक्ष इंद्रियों के कवच के रूप में करती हैं काम.
. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष स्वयं रुद्र का है स्वरूप.

तीन तरह के है विशेष रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष को शिव और सजक्ति का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से सर्वसिद्धिदायक, मोक्ष प्राप्ति और दंपत्ति जीवन में सुख शांति प्राप्त होती है.

गणेश रुद्राक्ष

गणेश रुद्राक्ष को भगवन गणेश का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है.

ये भी पढ़ें:जल्द बदलेगी नवोदय विद्यालयों की तस्वीर, मौजूद होंगी राष्ट्रीय स्तर की हर सुविधाएं


गौरीपाठ रुद्राक्ष

गौरीपाठ रुद्राक्ष को त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से त्रिदेव यानि ब्रम्हा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है.

विभिन्न रुद्राक्षों की मालाओं को धारण करने के तरीके और महत्व


. 12 दानों से बने रुद्राक्ष को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.

. 15 दानों से बने रुद्राक्ष की माला जप, मंत्र-तंत्र और सिद्धि जैसे कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है.

. 16 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को हाथों में धारण करना चाहिए.

. 26 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को सर पर धारण नहीं करना चाहिए.

. 32 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने से धन, संपत्ति एवं आय की वृद्धि होती है.

. 50 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को गले में धारण करना शुभ होता है.

. 100 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

. 108 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है.

. 108, 50 और 27 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने या फिर जाप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

Intro:क्या आप जानते देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका हैं रुद्राक्ष। जी हां अगर नही तो हम आपको बताते हैं कि रुद्राक्ष धारण करने से कैसे आपकी सभी बाधाए दूर हो जाएंगी। शस्त्रों में सावन माह में शिव स्वरूप रुद्राक्ष की पूजा मोक्षदायिनी बतायी गई हैं, रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है यही वजह है कि सनातन धर्म में रूद्राक्ष का बहुत महत्व माना जाता है। रूद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। रुद्राक्ष के धारण करने से हर तरह की बाधाएं टल जाती है। सभी संकटो को दूर करने वाले रूद्राक्ष का महत्व और रुद्राक्ष धारण करने से किस तरह की बाधाएं दूर हो जाती है इसके साथ ही सावन महीने में रूद्राक्ष का क्यो है विशेष महत्व ? देखिए ईटीवी भारत की खाश रिपोर्ट.....


Body:...................क्या है रुद्राक्ष.............

रूद्राक्ष का वृक्ष भारत, नेपाल समेत कई देशों के हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है रुद्राक्ष जिसे रुद्र का अक्ष यानी भगवान शंकर का आंसू कहा जाता है। रुद्राक्ष इस धरती पर एकलौती ऐसी बस्तु है जिसको मंत्र जाप और ग्रहों को नियंत्रण करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।रुद्राक्ष एक फल की गुठली है जिसका विशेष औषधीय और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष पैदा हुआ था। यही वजह है कि रुद्राक्ष को पहनने या रुद्राक्ष के विशेष प्रयोग करने से विशेष फल मिलता है। इसके साथ ही अकाल मृत्यु और शत्रु बाधा से भी रुद्राक्ष रक्षा करता है। 

...............रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यता..........

रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यताओं की माने तो रूद्राक्ष भगवान शंकर का अंश है इसलिए इसे साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है इसके साथ ही रुद्राक्ष को सुख-सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया गया है और भगवान भोले की पूजा के दौरान खास तौर पर शिव भक्तों को रुद्राक्ष की माला धारण करना चाहिए। मान्यता है कि रुद्राक्ष अपने आकार और रूप के मुताबिक अलग-अलग प्रभाव और फल देता है, धर्म के नजरिए से देखें तो हर रूद्राक्ष, पापनाश और शिव के साथ सत्य को भी खुश करने वाला माना गया है।

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि सावन महीने में रुद्राक्ष अत्यधिक प्रभावित होता है क्योंकि सावन महीना भगवान शंकर का माना गया है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने लंबे अंतराल तक अपनी आंखों को बंद किया हुआ था और उसके बाद समाज कल्याण के लिए जब अपनी आंखों को खोला तो भगवान शंकर की आंखों से आसू धरती पर गिरे थे जिसे ही रूद्र का अक्ष (रुद्राक्ष) कहते हैं यानी शंकर का आसु। माना जाता है कि भगवान शंकर समाज के कल्याण के लिए ही रुद्राक्ष को संसार में जन्म दिया। 

...................रूद्राक्ष का महत्व...........

धर्माचार्य आचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष का महत्व तो हमेशा से ही रहा है लेकिन रुद्राक्ष से जब हम जप करते हैं तब रुद्राक्ष उंगलियों में एक्यूप्रेशर करता है साथ ही हाथों में बनी लकीरों को पलटने में रुद्राक्ष का एक बड़ा महत्व है इसके साथ ही हृदय की बीमारी के लिए रुद्राक्ष एक बहुत बड़ी औषधि के रूप में है। इसके साथ ही रुद्राक्ष की भस्म को खाया भी जाता है और लगाया भी जाता है। साथ ही धर्माचार्य ने बताया कि जिसके मस्तिष्क में चंदन और कंठ में रुद्राक्ष की माला है और ओम नमः शिवाय जपता है उसे संसार में और शिव पुराण में शिव कहा गया है।

...............दो तरह का होता है रुद्राक्ष............

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि रुद्राक्ष एक अन्य प्रजाति भी है जिसे भद्राक्ष कहते हैं। और जो आमतौर पर बाजारों में मिलता है वह रूद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है क्योंकि रूद्राक्ष की उत्पादन शक्ति बहुत कम होती है यही वजह है कि रुद्राक्ष की तरह दिखने वाला ही रूद्राक्ष नहीं बल्कि भद्राक्ष होता है। रुद्राक्ष बड़ी कठिनाई और बड़े समय के बाद रुद्राक्ष का वृक्ष बड़ा होता है। इसलिए रुद्राक्ष का उत्पादन बेहद ही कम होता है।


............रुद्राक्ष का शिव लिंग..........

देहरादून स्थित प्राचीन मंदिरों में से एक टपकेश्वर मंदिर में मात्र रुद्राक्ष से बनी हुई शिव लिंग मौजूद है। 5 हज़ार 1 सौ 51 रुद्राक्षो से बनी शिवलिंग में विभिन्न मुखी रुद्राक्ष को बुना गया है। टपकेश्वर मंदिर के महंत हरी गिरी ने बताया कि देशभर में मात्र एक ही रुद्राक्ष बनी हुई शिवलिंग देहरादून टपकेश्वर मंदिर में मौजूद है।


एक से लेकर 21 मुखी तक होते हैं रुद्राक्ष....

- भगवान शिव का रूप है एक मुखी रुद्राक्ष।
- श्री गौरी शंकर का स्वरूप है दो मुखी रुद्राक्ष।
- तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप है।
- चार मुखी रुद्राक्ष है साक्षात् ब्रह्म देव का है प्रतीक।
- पंचमुखी रुद्राक्ष है पंच तत्वों का प्रतीक।
- छह मुखी रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का रूप।
- सात मुखी रूद्राक्ष है भगवान अनंत का रूप।
- आठ मुखी रुद्राक्ष है भैरव का रूप।
- नौ मुखी रुद्राक्ष मां दुर्गा का है स्वरूप।
- दस मुखी रुद्राक्ष है जीवन के दस तत्व को प्रभावित करती है।
- ग्यारह मुखी रूद्राक्ष, भगवान विष्णु का है रूप।
- बारह मुखी रुद्राक्ष 12 ज्योतिर्लिंगों का है प्रतीक।
- तेरह मुखी रुद्राक्ष है इंद्रदेव का रूप।
- चौदह मुखी रूद्राक्ष स्वयं बजरंगबली का है स्वरूप।
- पंद्रह मुखी रुद्राक्ष लौकिक पंच तत्वों का है प्रतीक।
- सोलह मुखी रुद्राक्ष, व्यापार में विघ्न बाधाओं को करता है दूर।
- सत्तरह मुखी रुद्राक्ष न्यायालय की बाधाओं को करता है दूर।
- अठ्ठारह मुखी रुद्राक्ष जीवन में भक्ति को करता है प्रभावित।
- उन्नीस मुखी रुद्राक्ष अचानक घटने वाली दुर्घटना से बचाता है।
- बीस मुखी रुद्राक्ष इंद्रियों के कवच के रूप में करती हैं काम।
- इक्कीस मुखी रुद्राक्ष स्वयं रुद्र का है स्वरूप।


..................तीन तरह के है विशेष रुद्राक्ष.................. 


गौरी शंकर रुद्राक्ष - गौरी शंकर रुद्राक्ष को शिव और सजक्ति का स्वरुप माना गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से सर्वसिद्धिदायक, मोक्ष प्राप्ति के साथ साथ दंपत्ति जीवन में सुख शांति लाता है। 

गणेश रुद्राक्ष - गणेश रुद्राक्ष को भगवन गणेश का स्वरुप माना गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि के साथ ही विद्या प्रदान करने वाला होता है।  

गौरीपाठ रुद्राक्ष - गौरीपाठ रुद्राक्ष को त्रिदेवो का स्वरुप माना गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से त्रिदेवो यानि ब्रम्हा विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होता है। 


...................रुद्राक्ष की मालाओं का महत्व............


- 12 दानों से बने रुद्राक्ष को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है।

- 15 दानों से बने रुद्राक्ष की माला जप, मंत्र-तंत्र और सिद्धि जैसे कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है।

- 16 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को हाथों में धारण करना चाहिए।

- 26 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को सर पर धारण नहीं करना चाहिए।

- 32 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने से धन, संपत्ति एवं आय की वृद्धि होती है।

- 50 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को गले में धारण करना शुभ होता है।

- 100 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

- 108 दानों से बने रुद्राक्ष की माला धारण करने से समस्त कार्य में सफलता मिलती है।

- 108, 50 और 27 दानों से बने रुद्राक्ष की माला को धारण करने या फिर जाप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।





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