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जौहर प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया तो उच्च शिक्षा में जोड़ा गया

स्कूली पाठ्यक्रम को लेकर लगातार हो रहे बदलाव में जहां जौहर और सती प्रथा को पाठ्यक्रम से हटाया गया. वहीं उच्च शिक्षा की 'राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास' किताब में इसका चैप्टर जोड़ा गया.

प्रतिकात्मक फोटो
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Published : May 17, 2019, 10:20 PM IST

जयपुर. प्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रम को लेकर लगातार बदलाव हो रहा है. लेकिन अब नया बदलाव उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में देखने को मिला है. जहां एक ओर जौहर और सती प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया गया. वहीं दूसरी ओर उच्च शिक्षा की 'राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास' किताब में इसका चैप्टर जोड़ा गया है.

जौहर प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया तो उच्च शिक्षा में जोड़ा गया

राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित किताब में जौहर और सती प्रथा के बारे में विस्तार में जानकारी दी गई है. इतना ही नहीं राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष खुद उच्च शिक्षा मंत्री भवंर सिंह भाटी हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि एक ही सरकार के दो मंत्री विद्यार्थियों को अलग-अलग तथ्य से रूबरू करवाएंगे. वहीं विवाद यह खड़ा होता है की किस तथ्य को सही माना जाए और किसको गलत.

राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास के पृष्ठ 64 में जौहर का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है. इसमें लिखा गया है कि सती की भांति एक और प्रथा थी, जिसे जौहर कहते हैं. इस प्रथा के आधार पर सामूहिक रूप से स्त्रियां उस समय अपने को अग्नि में भस्म कर देती थीं.

आक्रमण के समय उनके पतियों के युद्ध से दोबारा लौटने की कोई आस नहीं रहती थी. न उनका दुर्ग दुश्मनों के हाथ से बचना संभव होता था. ऐसे में स्त्रियां, बच्चे और बूढ़े अपने आपको तथा दुर्ग की सम्पूर्ण संपत्ति को अग्नि में जलाकर भस्म हो जाते थे. ऐसा करने का अभिप्राय धर्म और आत्म-सम्मान की राह से जिससे शत्रु के द्वारा बंदी बनाए जाने की अवस्था में उन्हें अनैतिक का आचरण न करना पड़े.

जयपुर. प्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रम को लेकर लगातार बदलाव हो रहा है. लेकिन अब नया बदलाव उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में देखने को मिला है. जहां एक ओर जौहर और सती प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया गया. वहीं दूसरी ओर उच्च शिक्षा की 'राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास' किताब में इसका चैप्टर जोड़ा गया है.

जौहर प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया तो उच्च शिक्षा में जोड़ा गया

राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित किताब में जौहर और सती प्रथा के बारे में विस्तार में जानकारी दी गई है. इतना ही नहीं राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष खुद उच्च शिक्षा मंत्री भवंर सिंह भाटी हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि एक ही सरकार के दो मंत्री विद्यार्थियों को अलग-अलग तथ्य से रूबरू करवाएंगे. वहीं विवाद यह खड़ा होता है की किस तथ्य को सही माना जाए और किसको गलत.

राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास के पृष्ठ 64 में जौहर का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है. इसमें लिखा गया है कि सती की भांति एक और प्रथा थी, जिसे जौहर कहते हैं. इस प्रथा के आधार पर सामूहिक रूप से स्त्रियां उस समय अपने को अग्नि में भस्म कर देती थीं.

आक्रमण के समय उनके पतियों के युद्ध से दोबारा लौटने की कोई आस नहीं रहती थी. न उनका दुर्ग दुश्मनों के हाथ से बचना संभव होता था. ऐसे में स्त्रियां, बच्चे और बूढ़े अपने आपको तथा दुर्ग की सम्पूर्ण संपत्ति को अग्नि में जलाकर भस्म हो जाते थे. ऐसा करने का अभिप्राय धर्म और आत्म-सम्मान की राह से जिससे शत्रु के द्वारा बंदी बनाए जाने की अवस्था में उन्हें अनैतिक का आचरण न करना पड़े.

Intro:नोट- इसको फ़ोटो पर ही चलाये।

जयपुर- प्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रम को लेकर लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है लेकिन अब नया बदलाव उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में देखने को मिला है। जहां एक ओर जौहर और सती प्रथा को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाया गया तो वही दूसरी ओर उच्च शिक्षा की "राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास" किताब में इसका चैप्टर जोड़ा गया है। राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित किताब में जौहर और सती प्रथा के बारे में विस्तार में जानकारी दी गयी है। इतना ही नहीं राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष खुद उच्च शिक्षा मंत्री भवंर सिंह भाटी है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि एक ही सरकार के दो मंत्री विद्यार्थियों को अलग अलग तथ्य से रूबरू करवाएंगे। ऐसे में अब बड़ा विवाद यह खड़ा होता है कि किस तथ्य को सही माना जाए और किसको गलत।


Body:राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास के पृष्ठ 64 में जौहर का विस्तार विवरण किया गया है। जिसमें लिखा है सती की भांति एक और प्रथा थी जिसे जौहर कहते है। इस प्रथा के आधार पर सामूहिक रूप से स्त्रियां उस समय अपने को अग्नि में भस्म कर देती थी। आक्रमण के समय उनके पतियों के युद्ध से पुनः लौटने की कोई आस नहीं रहती थी और न उनका दुर्ग दुश्मनों के हाथ से बचना संभव होता था। ऐसे में स्त्रियां, बच्चे व बूढ़े अपने आपको तथा दुर्ग की सम्पूर्ण संपत्ति को अग्नि में झलकर भस्म हो जाते थे। ऐसा करने का अभिप्राय धर्म एवं आत्म सम्मान की राह से जिससे शत्रु के द्वारा बंदी बनाए जाने की अवस्था में उन्हें अनैतिक का आचरण ना करना पड़े।


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