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धौलपुर में मुस्लिम समाज के धर्म गुरुओं को बुलाकर प्रशासन ने ताजियों पर लगाई रोक

धौलपुर में कोरोना के कारण मोहर्रम का त्योहार साधारण तरीके से मनाया जाएगा. इस बार जिला प्रशासन ने ताजिये घर में रखने के आदेश दिए हैं. पहली बार इस मौके पर ना कोई सजावट की गई और ना ही कोई अखाड़ेबाजी की गई.

राजस्थान न्यूज, Dholpur news
प्रशासन ने ताजियों पर लगाई रोक
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Published : Aug 30, 2020, 9:56 AM IST

धौलपुर. कोरोना वायरस का साया व्यापार के अलावा आस्था पर भी देखा जा रहा है. कोविड-19 संक्रमण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. कोरोना केसों की संख्या में भारी इजाफा देखा जा रहा है. धौलपुर जिले में कोरोना वायरस के चलते मोहर्रम की नवी तारीख को ताजिये घरों के अंदर ही रखे जाएंगे और ताजियों का जूलूस भी नहीं निकाला जाएगा.

प्रशासन ने ताजिया निकालने पर लगाई रोक

जिला प्रशासन ने कोरोना वायरस के चलते इस बार मोहर्रम के त्योहार पर घरों के अंदर ही ताजिये रखने के आदेश दिए हैं. साथ ही जिला प्रशासन ने दसवीं की तारीख पर ताजिये के निकलने वाले जूलूस, अखाड़ा सहित अन्य कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है. सोमवार की रात तीन बजे से सुबह 6 बजे तक दस ताजिये धौलपुर के अंदर सुपर्दे खाक करें जाएंगे. एक ताजिये के साथ तीन आदमी चलेंगे और जो ताजिये बन गए हैं, वो एक बड़ी गाड़ी में ले जाएंगे और उनको सुपुर्दे खाक किया जाएगा.

यह भी पढ़ें. धौलपुर: हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत भाजपा नेताओं ने किया कांग्रेस सरकार पर तीखा प्रहार

बता दें कि पैगम्बर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत हुसैन और उनके योद्धाओं की शहादत की याद में मनाये जाने वाला मोहर्रम की नवीं तारीख को राजस्थान के धौलपुर जिले में कत्ल की रात मनाई जाती थी. इस मौके पर महिला मेहंदी रचा कर और ताजियों के सेहरा बांध कर जगह-जगह ताजिये रखे जाते थे. मुस्लिम इलाको में रातभर अखाड़े चलते थे. जिसमेंं पटेबाजी का प्रदर्शन कर मातम मनाया जाता था और अकीकत मंद अंगारों पर चल कर और तलवारों से मातम मनाते थे. नवी तारीख को मनाया जाने वाले इस त्योहार की पूर्व संध्या पर जिला मुख्यालय पर ताजिये जुलूस के रूप में निकाले जाते थे, जो बाद मे अपने मुकाम पर आकर रूक जाते थे. इन ताजियों को जुलुस के रूप में ढोल और ताशों की मातमी धुन के साथ दसवीं तारीख को करबला मे दफनाया जाता था. जिले भर में करीब दो हजार ताजिये रखे जाते थे. जिसमें आठ ताजिये हिन्दू समाज के लोग अपने घरों में रखते थे.

यह भी पढ़ें. धौलपुर: NH-3 पर एक अज्ञात वाहन ने युवक को कुचला, दर्दनाक मौत

वहीं मुस्लिम इलाकों में जगह-जगह रोशनी और सजावट सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे. इस बार कोरोना के चलते उन पर पाबंदी लगा दी गई हैं. पहली बार बिना चहल-पहल के घरों के अंदर ही ताजिये रखें गए. ना कोई सजावट की गई और ना ही कोई अखाड़ेबाजी की गई.

धौलपुर. कोरोना वायरस का साया व्यापार के अलावा आस्था पर भी देखा जा रहा है. कोविड-19 संक्रमण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. कोरोना केसों की संख्या में भारी इजाफा देखा जा रहा है. धौलपुर जिले में कोरोना वायरस के चलते मोहर्रम की नवी तारीख को ताजिये घरों के अंदर ही रखे जाएंगे और ताजियों का जूलूस भी नहीं निकाला जाएगा.

प्रशासन ने ताजिया निकालने पर लगाई रोक

जिला प्रशासन ने कोरोना वायरस के चलते इस बार मोहर्रम के त्योहार पर घरों के अंदर ही ताजिये रखने के आदेश दिए हैं. साथ ही जिला प्रशासन ने दसवीं की तारीख पर ताजिये के निकलने वाले जूलूस, अखाड़ा सहित अन्य कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है. सोमवार की रात तीन बजे से सुबह 6 बजे तक दस ताजिये धौलपुर के अंदर सुपर्दे खाक करें जाएंगे. एक ताजिये के साथ तीन आदमी चलेंगे और जो ताजिये बन गए हैं, वो एक बड़ी गाड़ी में ले जाएंगे और उनको सुपुर्दे खाक किया जाएगा.

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बता दें कि पैगम्बर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत हुसैन और उनके योद्धाओं की शहादत की याद में मनाये जाने वाला मोहर्रम की नवीं तारीख को राजस्थान के धौलपुर जिले में कत्ल की रात मनाई जाती थी. इस मौके पर महिला मेहंदी रचा कर और ताजियों के सेहरा बांध कर जगह-जगह ताजिये रखे जाते थे. मुस्लिम इलाको में रातभर अखाड़े चलते थे. जिसमेंं पटेबाजी का प्रदर्शन कर मातम मनाया जाता था और अकीकत मंद अंगारों पर चल कर और तलवारों से मातम मनाते थे. नवी तारीख को मनाया जाने वाले इस त्योहार की पूर्व संध्या पर जिला मुख्यालय पर ताजिये जुलूस के रूप में निकाले जाते थे, जो बाद मे अपने मुकाम पर आकर रूक जाते थे. इन ताजियों को जुलुस के रूप में ढोल और ताशों की मातमी धुन के साथ दसवीं तारीख को करबला मे दफनाया जाता था. जिले भर में करीब दो हजार ताजिये रखे जाते थे. जिसमें आठ ताजिये हिन्दू समाज के लोग अपने घरों में रखते थे.

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वहीं मुस्लिम इलाकों में जगह-जगह रोशनी और सजावट सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे. इस बार कोरोना के चलते उन पर पाबंदी लगा दी गई हैं. पहली बार बिना चहल-पहल के घरों के अंदर ही ताजिये रखें गए. ना कोई सजावट की गई और ना ही कोई अखाड़ेबाजी की गई.

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