जयपुर. 'समय बड़ा बलवान' मुहावरे का सही उदाहरण अगर किसी को देखना हो तो राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में चल रही बयानबाजी को देखना चाहिए. राजस्थान में 25 सितंबर को कांग्रेस आलाकमान न तो विधायक दल की बैठक करवा सका, न ही एक लाइन का प्रस्ताव पास हुआ. बल्कि नाराज गहलोत गुट के विधायकों ने इस्तीफे देने से कांग्रेस आलाकमान जरूर दबाव में आ गया.
इस घटना के बाद गहलोत और पायलट गुट के विधायक जमकर एक दूसरे पर बयानबाजी करने लगे. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस आलाकमान को 29 सितंबर को सर्कुलर जारी कर सभी नेताओं को राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर बयानबाजी नहीं करने को लेकर गाइडलाइन देनी पड़ी. इसके बाद भी एक नेता की बयानबाजी जारी रही और वह थे मुख्यमंत्री गहलोत. उन्होंने दो अक्टूबर को पर्यवेक्षकों को यह सीख दी थी कि उनको उनके औरा (कद) के अनुसार काम करना चाहिए. यह भी कहा कि पहली बार ऐसा हुआ है कि विधायक उस मुख्यमंत्री के साथ हैं जो हटने वाला है. जब 17 अक्टूबर को कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव थे तो गहलोत ने युवाओं के बहाने पायलट को सब्र रखने की हिदायत दी थी. उन्होंने कहा था कि अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो फिर ठोकर खाएंगे.
जब गहलोत यह बयान दे रहे थे तो पायलट 2023 में विधानसभा चुनाव कैसे जीतें, इसे लेकर अपनी बात कहते दिखाई दिए. लेकिन 2 नवंबर को समय बदला और जो पायलट अब तक चुप थे उन्होंने भी अपनी चुप्पी तोड़ी. पायलट ने प्रधानमंत्री की ओर से की गई मुख्यमंत्री गहलोत के लिए तारीफ को गुलाम नबी आजाद के साथ जोड़ (Pilot statement on PM praising Gehlot) दिया. साथ ही पायलट ने उन तीनों नेताओं पर तुरंत कार्रवाई की मांग कि, जिन्हें कांग्रेस आलाकमान ने कारण बताओ नोटिस दिए थे. इस बार जब सचिन पायलट ने आक्रामक होकर जवाब देना शुरू किया तो गहलोत बैकफुट पर चले गए. गहलोत 29 सितंबर को एआईसीसी की ओर से जारी हुई गाइडलाइन का हवाला देते हुए मिलकर 2023 चुनाव जीतने की बात करते दिखाई दिए.
जानिए कैसे दोनों नेताओं के बदले अंदाज :
- 29 सितम्बर : राजस्थान में हो रही बयानबाजी के चलते (Rajasthan Political Crisis) एआईसीसी संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सर्कुलर जारी कर मंत्रियों, विधायकों और नेताओं को चुप रहने की गाइडलाइन जारी की.
- 2 अक्टूबर : गाइडलाइन जारी होने के 3 दिन बाद 2 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह कहा कि पर्यवेक्षक तो आलाकमान का ही चेहरा होते हैं, हम यह मानते हैं. पर्यवेक्षकों को भी उसी औरा के अनुसार काम करना चाहिए. गहलोत ने 2 अक्टूबर को यहां तक कह दिया कि जब भी किसी मुख्यमंत्री को हटाकर दूसरे नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाना होता है, तो विधायक बनने वाले मुख्यमंत्री के साथ चले जाते हैं. राजस्थान में ऐसा नहीं हो रहा है तो हर किसी को देखना चाहिए कि उसका कारण क्या है.
- 17 अक्टूबर : राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए वोटिंग चल रही थी, तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गांधी परिवार और उनके रिश्ते को तर्क से परे बताया. इसके आगे उन्होंने पार्टी के युवा नेताओं के बहाने सचिन पायलट को सब्र रखने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि अगर जल्दबाजी करेंगे तो उन्हें भी ठोकर खानी पड़ेगी. गाइडलाइन के बावजूद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बयानबाजी कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट चुप्पी साधे रहे.
जब पायलट हुए आक्रमण तो गहलोत को याद आई गाइडलाइन : सचिन पायलट ने अचानक (Pilot breaking silence) 2 नवंबर को चुप्पी तोड़ी और गहलोत की तुलना गुलाम नबी आजाद से कर दी, जिनकी तारीफ भी प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में उसी तरह की थी जैसी मुख्यमंत्री की गई. पायलट महेश जोशी, शांति धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ पर भी आक्रामक हुए और कांग्रेस आलाकमान से उन पर कार्रवाई करने की मांग की.
पायलट ने कांग्रेस आलाकमान से राजस्थान में जिसे जो पद देना है, उसका फैसला भी जल्द करने की बात कह दी. पायलट के आक्रामक होने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सुर बदल गए. उन्होंने पायलट के बयान के बाद गाइडलाइन का हवाला दिया जो कांग्रेस आलाकमान की ओर से बयानबाजी नहीं करने के लिए जारी की गई थी.