जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में जल संरक्षण से जुड़े मामले में करीब डेढ़ साल बाद भी जवाब पेश नहीं करने पर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई है. अदालत ने सरकार पर 50 हजार का हर्जाना लगाते हुए आठ सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं. न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और नरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश स्वप्रेरित प्रसंज्ञान में महेश पारीक की ओर से दायर प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि डेढ़ साल बीतने के बाद भी सरकार प्रार्थना पत्र पर जवाब नहीं दे रही है. साथ ही सरकार सोमवार को फिर से जवाब के लिए समय मांगी है. पानी जैसे जनहित के मुद्दे पर सरकार गंभीरता भी नहीं दिखा रही है. ऐसे में सरकार पर 50 हजार का हर्जाना लगाया जाता है.
अधिवक्ता प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि प्रार्थी ने दिसंबर 2017 में प्रार्थना पत्र पेश किया था. इसमें कहा गया था कि जल प्रबंधन अधिनियम, 2012 बनने के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है. वहीं साल 2010 की जल नीति भी अब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं हुई है. समय के साथ इस नीति में बदलाव की भी जरूरत है. गुजरात और महाराष्ट्र की जल नीति राजस्थान से बेहतर है.
मामले में हाईकोर्ट ने 12 जनवरी 2018 को राज्य सरकार से जवाब पेश करने को कहा था. इसके बाद कई सुनवाई होने के बावजूद अब तक राज सरकार की ओर से जवाब पेश नहीं किया गया. इस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार 50 हजार का हर्जाना लगा दिया है. सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि ट्रीटेड पानी का उपयोग पार्क और कृषि के लिए नहीं हो रहा है, जिससे एसटीपी प्लांट का उद्देश्य ही विफल हो रहा है.