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Special: स्कूल बंद हुआ तो गुरुजी ने खोली कचौरी और फल-सब्जी की दुकानें, परिवार का पेट पालने के लिए उठाया कदम

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Published : Dec 10, 2020, 8:12 PM IST

कोरोना काल में शिक्षकों का हाल बेहाल है. वे शिक्षक जो कभी स्कूलों में शिक्षा की अलख जगा रहे थे, अब सड़कों पर पकौड़ा-कचौरी और फल-सब्जी बेचने को मजबूर हैं. कुछ समय पहले ज्ञानदान करने वाले गुरुजी आजकल बेरोजगारी के कारण पकौड़ा-कचौरी, फल-सब्जी आदि बेचकर गुजारा करने को मजबूर हैं.

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बेरोजगारी से तंग शिक्षक...

हनुमानगढ़. कोरोना काल में गुरुजी के हाल बेहाल है. गुरुजी जो कभी स्कूलों में शिक्षा की अलख जगा रहे थे, अब सड़कों पर पकौड़ा-कचौरी और फल-सब्जी बेचने को मजबूर है. कुछ समय पहले ज्ञानदान करने वाले गुरुजी आजकल बेरोजगारी से तंग होकर पकौड़ा-कचौरी, फल-सब्जी तो कोई बिस्किट-भुजिया बेचकर घर चला रहे हैं, क्योंकि लंबे समय से विद्यालय, महाविद्यालय व कोचिंग सेंटर बंद हैं. ऐसे में अल्पवेतन पर विद्यादान करने वाले निजी स्कूलों के शिक्षकों के समक्ष बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है.

कोरोना काल में गुरुजी के हाल बेहाल है...

पकौड़े बेच रहे शिक्षक

हनुमानगढ जिले में कोरोना के कारण निजी शिक्षकों की हालत खस्ता हो गई है. परिवार का पेट भरने के लिए निजी शिक्षक सब्जी की दुकान, कचौरी-पकौड़े की दुकानें व रेहड़ी आदि लगाने लग गए. कभी बच्चों के शोरगुल और चहचहाहट से गुलजार रहने वाले स्कूलों के कमरे अब वीरान पड़े है. ऐसे में निजी विद्यालयों के संचालकों ने भी सब्जी बेचने, ऑटो चलाने आदि काम घंधे शुरू कर दिए हैं. शिक्षक इन कार्याें से विद्यार्थियों को यह संदेश भी दे रहे हैं कि मेहनत व ईमानदारी से रोटी कमाने में कोई शर्म नहीं है और कोई कार्य छोटा-बड़ा नहीं होता. शिक्षकों का कहना है कि केंद्र सरकार का 20 हजार करोड़ का पैकेज हो या राज्य सरकार द्वारा जरूरतमंदों को वितरित किये गए राशन व अन्य सामग्री, निजी स्कूलों के शिक्षकों को कुछ भी नहीं मिला.

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सब्जी बेचने को मजबूर शिक्षक...

यह भी पढ़ें: स्पेशल: लहसुन के अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में हाड़ौती के किसान, दोगुने रकबे में की थी बुवाई

गुजर बसर के लिए चला रहे ऑटो रिक्शा

हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी मनोज परिहार MA, Bed हैं और निजी विद्यालय में अध्यापन कार्य करवा रहे थे. लॉकडाउन से पहले तक सब कुछ ठीक था, लेकिन अप्रेल माह से निजी विद्यालय से जवाब मिल गया. इसके बाद अब ऑटो रिक्शा चलाने लगे, क्योंकि परिवार का पेट तो भरना ही है. M.com, Bed तक पढ़ाई कर अध्यापन का कार्य कर रहे सन्नी कुमार भी अपने पिता की बिस्कुट, भुजिया व राशन की दुकान संभाल रहे हैं.

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गुजर बसर के लिए चला रहे ऑटो रिक्शा...

पिछले 2 दशकों से शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन करने वाले स्कूल संचालक अमरजीत शाक्य का कहना है कि कोरोना काल में शिक्षक शिक्षा मंत्री व राज्य सरकार के सिस्टम से खासा खफा है और अब मन बना चुके हैं कि वे अब शिक्षा के क्षेत्र में तो वापिसी नहीं करेंगे. शिक्षा के क्षेत्र में कई होनहार बच्चों को समाज व देश के लिए तैयार कर चुके स्कूल संचालक विजय सिंह चौहान ने सरकार से मांग की है कि जिले में करीब 15 करोड़ आरटीई का बकाया भुगतान है. सरकार कम से कम वो तो उन्हें उपलब्ध करवाए, ताकि वे भविष्य में इस शिक्षण कार्य से जुड़े रहे.

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बंद पड़ी स्कूल...

इसी तरह हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय के जंक्शन क्षेत्र के गांधीनगर स्थित निजी विद्यालय की अध्यापिका सोनिया गोरा ने अपने कुशल गृहिणी के गुणों को लॉकडाउन के संकट से उबरने का आधार बनाया. वे सेंवई, पापड़ बनाकर विक्रय करती हैं. साथ ही विद्यालय बंद होने के बाद बचे समय का सदुपयोग करने हुए कुछ आर्थिक संबल के लिए घर में ही सब्जी की छोटी सी दुकान खोल ली. नोहर कस्बे के प्रमुख निजी स्कूल के शिक्षक प्रदीप सिंह को मार्च का वेतन देकर लॉकडाउन के बाद हटा दिया गया. प्रयागराज लौटने से बेहतर यहीं काम-धंधा करने की ठानी. उनका साथ दिया स्कूल में ऑटो चलाने वाले राकेश राव ने जो कोरोना संकट के बाद कस्बे के भगतसिंह चौक पर चाय की थड़ी लगाते लगे थे. अब प्रदीप सिंह रेहड़ी लगाकर कढ़ी कचौरी बेच रहे हैं.

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किराणा की दुकान पर शिक्षक...

यह भी पढ़ें: Special : प्राचीन बावड़ियों को मिला 'जीवन' तो तर होने लगे 'हलक'...20 फीट बढ़ा भूजल स्तर

वहीं, टिब्बी तहसील के चन्दूरवाली गांव के सतपाल 10 साल से निजी अध्यापन का कार्य कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद वे अब काश्त के अलावा मनरेगा में मजदूरी भी करते है, तो चोहिलावाली गांव में निजी स्कूल संचालक राकेश स्वामी अब गांव में भुजिया बिस्किट का काम कर रहे हैं.

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बंद पड़ी स्कूल...

बता दें कि हनुमानगढ जिले में कुल निजी स्कूलों की संख्या 1100 है, जिनसे करीब 11 हजार लोग सीधे जुड़े हुए हैं. इन 11 हजार लोगों से जुड़े इनके परिवार सीधे रूप से प्रभावित हुए है और स्कूलों से जुड़े अन्य व्यवसाय जैसे स्कूल फर्नीचर यूनिफार्म, स्टेशनरी विक्रेता भी स्कूल बंद होने से खासा प्रभावित हुए हैं. स्कूल संचालको का ये हाल है तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि स्कूलों में कार्यरत अध्यापकों और कर्मचारियों का क्या हाल होगा. अब ये सभी सरकार की तरफ टकटकी लगाए मदद की इंतजार में है.

हनुमानगढ़. कोरोना काल में गुरुजी के हाल बेहाल है. गुरुजी जो कभी स्कूलों में शिक्षा की अलख जगा रहे थे, अब सड़कों पर पकौड़ा-कचौरी और फल-सब्जी बेचने को मजबूर है. कुछ समय पहले ज्ञानदान करने वाले गुरुजी आजकल बेरोजगारी से तंग होकर पकौड़ा-कचौरी, फल-सब्जी तो कोई बिस्किट-भुजिया बेचकर घर चला रहे हैं, क्योंकि लंबे समय से विद्यालय, महाविद्यालय व कोचिंग सेंटर बंद हैं. ऐसे में अल्पवेतन पर विद्यादान करने वाले निजी स्कूलों के शिक्षकों के समक्ष बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है.

कोरोना काल में गुरुजी के हाल बेहाल है...

पकौड़े बेच रहे शिक्षक

हनुमानगढ जिले में कोरोना के कारण निजी शिक्षकों की हालत खस्ता हो गई है. परिवार का पेट भरने के लिए निजी शिक्षक सब्जी की दुकान, कचौरी-पकौड़े की दुकानें व रेहड़ी आदि लगाने लग गए. कभी बच्चों के शोरगुल और चहचहाहट से गुलजार रहने वाले स्कूलों के कमरे अब वीरान पड़े है. ऐसे में निजी विद्यालयों के संचालकों ने भी सब्जी बेचने, ऑटो चलाने आदि काम घंधे शुरू कर दिए हैं. शिक्षक इन कार्याें से विद्यार्थियों को यह संदेश भी दे रहे हैं कि मेहनत व ईमानदारी से रोटी कमाने में कोई शर्म नहीं है और कोई कार्य छोटा-बड़ा नहीं होता. शिक्षकों का कहना है कि केंद्र सरकार का 20 हजार करोड़ का पैकेज हो या राज्य सरकार द्वारा जरूरतमंदों को वितरित किये गए राशन व अन्य सामग्री, निजी स्कूलों के शिक्षकों को कुछ भी नहीं मिला.

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सब्जी बेचने को मजबूर शिक्षक...

यह भी पढ़ें: स्पेशल: लहसुन के अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में हाड़ौती के किसान, दोगुने रकबे में की थी बुवाई

गुजर बसर के लिए चला रहे ऑटो रिक्शा

हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी मनोज परिहार MA, Bed हैं और निजी विद्यालय में अध्यापन कार्य करवा रहे थे. लॉकडाउन से पहले तक सब कुछ ठीक था, लेकिन अप्रेल माह से निजी विद्यालय से जवाब मिल गया. इसके बाद अब ऑटो रिक्शा चलाने लगे, क्योंकि परिवार का पेट तो भरना ही है. M.com, Bed तक पढ़ाई कर अध्यापन का कार्य कर रहे सन्नी कुमार भी अपने पिता की बिस्कुट, भुजिया व राशन की दुकान संभाल रहे हैं.

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गुजर बसर के लिए चला रहे ऑटो रिक्शा...

पिछले 2 दशकों से शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन करने वाले स्कूल संचालक अमरजीत शाक्य का कहना है कि कोरोना काल में शिक्षक शिक्षा मंत्री व राज्य सरकार के सिस्टम से खासा खफा है और अब मन बना चुके हैं कि वे अब शिक्षा के क्षेत्र में तो वापिसी नहीं करेंगे. शिक्षा के क्षेत्र में कई होनहार बच्चों को समाज व देश के लिए तैयार कर चुके स्कूल संचालक विजय सिंह चौहान ने सरकार से मांग की है कि जिले में करीब 15 करोड़ आरटीई का बकाया भुगतान है. सरकार कम से कम वो तो उन्हें उपलब्ध करवाए, ताकि वे भविष्य में इस शिक्षण कार्य से जुड़े रहे.

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बंद पड़ी स्कूल...

इसी तरह हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय के जंक्शन क्षेत्र के गांधीनगर स्थित निजी विद्यालय की अध्यापिका सोनिया गोरा ने अपने कुशल गृहिणी के गुणों को लॉकडाउन के संकट से उबरने का आधार बनाया. वे सेंवई, पापड़ बनाकर विक्रय करती हैं. साथ ही विद्यालय बंद होने के बाद बचे समय का सदुपयोग करने हुए कुछ आर्थिक संबल के लिए घर में ही सब्जी की छोटी सी दुकान खोल ली. नोहर कस्बे के प्रमुख निजी स्कूल के शिक्षक प्रदीप सिंह को मार्च का वेतन देकर लॉकडाउन के बाद हटा दिया गया. प्रयागराज लौटने से बेहतर यहीं काम-धंधा करने की ठानी. उनका साथ दिया स्कूल में ऑटो चलाने वाले राकेश राव ने जो कोरोना संकट के बाद कस्बे के भगतसिंह चौक पर चाय की थड़ी लगाते लगे थे. अब प्रदीप सिंह रेहड़ी लगाकर कढ़ी कचौरी बेच रहे हैं.

unemployed teachers selling kachori fruits, hanumangarh latest hindi news
किराणा की दुकान पर शिक्षक...

यह भी पढ़ें: Special : प्राचीन बावड़ियों को मिला 'जीवन' तो तर होने लगे 'हलक'...20 फीट बढ़ा भूजल स्तर

वहीं, टिब्बी तहसील के चन्दूरवाली गांव के सतपाल 10 साल से निजी अध्यापन का कार्य कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद वे अब काश्त के अलावा मनरेगा में मजदूरी भी करते है, तो चोहिलावाली गांव में निजी स्कूल संचालक राकेश स्वामी अब गांव में भुजिया बिस्किट का काम कर रहे हैं.

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बंद पड़ी स्कूल...

बता दें कि हनुमानगढ जिले में कुल निजी स्कूलों की संख्या 1100 है, जिनसे करीब 11 हजार लोग सीधे जुड़े हुए हैं. इन 11 हजार लोगों से जुड़े इनके परिवार सीधे रूप से प्रभावित हुए है और स्कूलों से जुड़े अन्य व्यवसाय जैसे स्कूल फर्नीचर यूनिफार्म, स्टेशनरी विक्रेता भी स्कूल बंद होने से खासा प्रभावित हुए हैं. स्कूल संचालको का ये हाल है तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि स्कूलों में कार्यरत अध्यापकों और कर्मचारियों का क्या हाल होगा. अब ये सभी सरकार की तरफ टकटकी लगाए मदद की इंतजार में है.

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