जोधपुर. सीमा की सुरक्षा के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुखोई-30 लड़ाकू विमानों के लिए बम और मिसाइल प्रूफ शेल्टर बनाए जाएंगे. इनके अलावा ये शेल्टर श्रीगंगानगर के सूरतगढ़, बीकानेर के नाल, बाड़मेर के उत्तरलाई एयरफोर्स स्टेशन पर बनाए जाएंगे.
इसके बाद इन रक्षा स्थानों के बनने के बाद मिग की कुछ स्क्वाड्रन को बॉर्डर से हटाकर पीछे कर दिया जाएगा. जिसके बाद उनका स्थान सुखोई ले लेंगे. आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने साल 2017 के लास्ट में देश में ऐसे 110 रक्षास्थलों को बनाने को मंजूरी दी थी, लेकिन इनका काम बेहद धीमी रफ्तार से चल रहा है.लड़ाकू विमानों के लिए मजबूत रक्षास्थल नहीं होने पर साल 2016 में रक्षा मामलों की संसदीय समिति भी चिंता जा चुकी है. इस समिति ने जैसलमेर और बाड़मेर बॉर्डर का जायजा भी लिया था.
आखिर इस कारण से वायुसेना सुखोई को पीछे रखती है
दरअसल, इंडियन एयरफोर्स का प्रमुख लड़ाकू विमान सुखोई-30 है. जिसका बहुत कम बेड़ा (स्क्वाड्रन) एलओसी या बॉर्डर के पास है. लड़ाकू विमान सुखोई जोधपुर, पुणे, हलवारा, बरेली, कलाईकुण्डा जैसे बॉर्डर से दूर एयरबेस पर तैनात है. ऐसा इसलिए किया है क्योंकि बॉर्डर के पास एयरबेस पर बम या मिसाइल हमला होने की सूरत में एयरबेस पर खड़े-खड़े ही सभी लड़ाकू विमान नष्ट हो सकते हैं. यही वजह है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ लगते बॉर्डर पर जम्मू कश्मीर से लेकर बाड़मेर तक मिग का बेड़ा ही तैनात कर रखा है. साल 1996 में इंडिया ने रूस से सुखोई खरीदे थे. अब तक भारतीय वायुसेना में 240 सुखोई शामिल हो चुके हैं लेकिन अब तक रक्षास्थल नहीं बने है.
शेल्टर नहीं होने की वजह से उठाना पड़ा था नुकसान
याद दिला दें कि रक्षास्थल नहीं होने के कारण 1965 में भारत-पाक युद्ध में इंडियान एयरफोर्स को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. खुले हैंगर में रखे भारत के करीब 60 लड़ाकू विमानों को पाक विमानों की बमबारी ने क्षतिग्रस्त कर दिए थे.