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राजस्थान का जसपुर गांव जिसकी पहचान प्याज बन चुकी है...लेकिन किसान बेहाल है

डूंगरपुर जिले का एक ऐसा गांव लगभग हर परिवार प्याज की खेती करता है. लेकिन प्याज को बेचने के लिए कृषि मंडी में न जाकर गांव-गांव भटकना पड़ रहा है. क्योंकि कृषि मंडी की ओर से प्याज की खरीदारी बंद है.

देशी प्याज की बड़ी ऊपज फिर भी किसानों के हाथ खाली
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Published : May 5, 2019, 1:38 PM IST

डूंगरपुर. जिले के लीलवासा ग्राम पंचायत का राजस्व गांव जसपुर झापका की पहचान अब प्याज वाले गांव से होने लगी है, क्योकि इस गांव में विगत 10 से 12 वर्षों से किसान खेतों में प्याज की खेती करते आ रहे है. यहां के प्याज उदयपुर संभाग के कईं गांवों तक जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद किसानों को मेहनताना भी पूरा नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों को सस्ते व कम दर में प्याज बेचना पड़ रहा है.

किसानों के अनुसार कृषि मंडी अगर प्याज की खरीददारी करे तो किसानों के हौसलों को नई ऊंची उड़ान मिलेगी. वहीं प्याज की खेती की ओर रुझान भी अधिक बढ़ेगा.

देशी प्याज की बड़ी ऊपज फिर भी किसानों के हाथ खाली

प्रतिदिन 400 टन निकल रहे हैं प्याज
जसपुर गांव में पाटीदार समाज सहित अन्य काश्तकारों का रुझान प्याज की फसल की ओर बढ़ा है. किसान 10 वर्ष से से इसकी खेती कर रहे है. प्रतिदिन किसान परिवारों कि ओर से लगभग 400 टन प्याज निकालकर वाहनों में भरकर गांव-गांव बेचने का क्रम बना हुआ है. दुकानों में जो प्याज 15 से 18 रुपये में बिक रहा है, वहीं इस प्याज की कीमत बाजार में 10 रुपये आ रही है. ऐसे में दिनभर वाहन किराया, श्रमिक का मेहनताना निकाले तो किसान की जेब मे प्रतिकिलो पर 5 से 7 रुपये ही बचत हो पा रही है.
ऐसे में कृषि मंडी प्याज की सीधी खरीद करें तो काश्तकारों को अधिक लाभ मिलने के आसार बनेंगे. जसपुर गांव में प्याज की खेती को देखकर काठड़ी के किसान भी इस खेती में जुट गए है.

मौजूदा हाल
गांव के प्रत्येक किसानों के खेत मे 10 से 25 टन की उपज हो रही है. प्रतिदिन 20 से 22 वाहन गांव-गांव जाकर प्याज बेच रहे है. गत वर्ष से अब तक का हाल देखा जाए तो सामने आया कि प्याज की खेती करने वाले किसानोंमें 2 प्रतिशत किसान कम हो गए है. और इसकी वजह प्याज के लिए सरकार की ठोस रणनीति का नहीं होना है. किसानों को मेहनताना भी नहीं मिल पाता है, इसलिए अब किसानों का मन प्याज की खेती से हटता जा रहा है.

किसानों की जुबानी
गांव के खेमराज पाटीदार ने बताया कि गांव में प्रतिदिन कई टन प्याज वाहनों में भरकर बाहर गांवों में बेचने की मजबूरी बनी हुई है. सरकार प्याज खरीदने की मंडी लगाए तो किसानो का रुझान और बढ़ेगा.
जगजी पाटीदार ने बताया कि गांव-गांव प्याज बेचना एक भीख मांगना जैसा लगता है, क्योंकि सुबह अंधेरे में खेतों में जाकर वाहन में प्याज भरकर बेचने के लिए गांवो की और रूख करते है. दिनभर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.

किसान लोकेश पाटीदार ने बताया कि प्याज की फसल करने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है. प्याज की खरीददारी के लिए सरकार कदम उठाए तो किसानों की मेहनत भी रंग लाने लगेगी. इस सम्बंध में राज्यमंत्री अर्जुनसिंह बामनिया को भी अवगत कराया गया है.

डूंगरपुर. जिले के लीलवासा ग्राम पंचायत का राजस्व गांव जसपुर झापका की पहचान अब प्याज वाले गांव से होने लगी है, क्योकि इस गांव में विगत 10 से 12 वर्षों से किसान खेतों में प्याज की खेती करते आ रहे है. यहां के प्याज उदयपुर संभाग के कईं गांवों तक जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद किसानों को मेहनताना भी पूरा नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों को सस्ते व कम दर में प्याज बेचना पड़ रहा है.

किसानों के अनुसार कृषि मंडी अगर प्याज की खरीददारी करे तो किसानों के हौसलों को नई ऊंची उड़ान मिलेगी. वहीं प्याज की खेती की ओर रुझान भी अधिक बढ़ेगा.

देशी प्याज की बड़ी ऊपज फिर भी किसानों के हाथ खाली

प्रतिदिन 400 टन निकल रहे हैं प्याज
जसपुर गांव में पाटीदार समाज सहित अन्य काश्तकारों का रुझान प्याज की फसल की ओर बढ़ा है. किसान 10 वर्ष से से इसकी खेती कर रहे है. प्रतिदिन किसान परिवारों कि ओर से लगभग 400 टन प्याज निकालकर वाहनों में भरकर गांव-गांव बेचने का क्रम बना हुआ है. दुकानों में जो प्याज 15 से 18 रुपये में बिक रहा है, वहीं इस प्याज की कीमत बाजार में 10 रुपये आ रही है. ऐसे में दिनभर वाहन किराया, श्रमिक का मेहनताना निकाले तो किसान की जेब मे प्रतिकिलो पर 5 से 7 रुपये ही बचत हो पा रही है.
ऐसे में कृषि मंडी प्याज की सीधी खरीद करें तो काश्तकारों को अधिक लाभ मिलने के आसार बनेंगे. जसपुर गांव में प्याज की खेती को देखकर काठड़ी के किसान भी इस खेती में जुट गए है.

मौजूदा हाल
गांव के प्रत्येक किसानों के खेत मे 10 से 25 टन की उपज हो रही है. प्रतिदिन 20 से 22 वाहन गांव-गांव जाकर प्याज बेच रहे है. गत वर्ष से अब तक का हाल देखा जाए तो सामने आया कि प्याज की खेती करने वाले किसानोंमें 2 प्रतिशत किसान कम हो गए है. और इसकी वजह प्याज के लिए सरकार की ठोस रणनीति का नहीं होना है. किसानों को मेहनताना भी नहीं मिल पाता है, इसलिए अब किसानों का मन प्याज की खेती से हटता जा रहा है.

किसानों की जुबानी
गांव के खेमराज पाटीदार ने बताया कि गांव में प्रतिदिन कई टन प्याज वाहनों में भरकर बाहर गांवों में बेचने की मजबूरी बनी हुई है. सरकार प्याज खरीदने की मंडी लगाए तो किसानो का रुझान और बढ़ेगा.
जगजी पाटीदार ने बताया कि गांव-गांव प्याज बेचना एक भीख मांगना जैसा लगता है, क्योंकि सुबह अंधेरे में खेतों में जाकर वाहन में प्याज भरकर बेचने के लिए गांवो की और रूख करते है. दिनभर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.

किसान लोकेश पाटीदार ने बताया कि प्याज की फसल करने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है. प्याज की खरीददारी के लिए सरकार कदम उठाए तो किसानों की मेहनत भी रंग लाने लगेगी. इस सम्बंध में राज्यमंत्री अर्जुनसिंह बामनिया को भी अवगत कराया गया है.

Intro:आसपुर। जिले के लीलवासा ग्राम पंचायत का राजस्व गांव जसपुर झापका की पहचान अब प्याज वाले गांव से होने लगी है, क्योकि इस गांव से विगत 10 से 12 वर्षों से किसान खेतों में प्याज ऊंगा रहे है। यहां के प्याज उदयपुर संभाग के गांवो तक जा रहा। किसानों द्वारा की गई मेहनत का मेहनताना भी पूरा नही मिल रहा है। जिससे किसानों को सस्ते व कम दर में बेच मायूस होकर लौटना पड़ रहा है। कृषि मंडी प्याज की खरीददारी करे तो किसानों के हौसले को ऊंची उड़ान मिलेगी वही प्याज की खेती की और रुझान भी अधिक बढ़ेगा।Body:देशी प्याज की बड़ी ऊपज, मंडी नही कर रही है खरीद
उदयपुर सम्भाग के गांवों में बेचने जा रहे है किसान
मेहनत से कम मिल रहा है मेहनताना
विगत दस वर्षों से जिले के जसपुर गांव में हो रही है प्याज की खेती
आसपुर। जिले के लीलवासा ग्राम पंचायत का राजस्व गांव जसपुर झापका की पहचान अब प्याज वाले गांव से होने लगी है, क्योकि इस गांव से विगत 10 से 12 वर्षों से किसान खेतों में प्याज ऊंगा रहे है। यहां के प्याज उदयपुर संभाग के गांवो तक जा रहा। किसानों द्वारा की गई मेहनत का मेहनताना भी पूरा नही मिल रहा है। जिससे किसानों को सस्ते व कम दर में बेच मायूस होकर लौटना पड़ रहा है। कृषि मंडी प्याज की खरीददारी करे तो किसानों के हौसले को ऊंची उड़ान मिलेगी वही प्याज की खेती की और रुझान भी अधिक बढ़ेगा।
प्रतिदिन 400 टन निकल रहे है प्याज
जसपुर गांव में पाटीदार समाज सहित अन्य काश्तकारों का रुझान प्याज की फसल की और बढ़ा है। यह किसान विगत 10 वर्ष से अधिक समय से इसकी खेती कर रहे है। प्रतिदिन किसान परिवार द्वारा 400 टन प्याज निकालकर वाहनों में भरकर गांव गांव बेचने का क्रम बना हुआ है। दुकानों में जो प्याज 15 से 18 रुपये में बिक रहा है। वही इस प्याज की कीमत बाजार में 10 रुपये आ रही है। ऐसे में दिनभर वाहन किराया, श्रमिक का मेहनताना निकाले तो किसान की जेब मे 5 से सात रुपये प्रतिकिलो ही मिल रहे है। ऐसे में कृषि मंडी प्याज की सीधी खरीद करें तो काश्तकारों को अधिक लाभ मिलने के आसार बनेंगे। जसपुर गांव में प्याज की खेती को देखकर काठड़ी के किसान भी इस खेती में जुड़ गए है।
मौजूदा हाल
गांव के प्रत्येक किसानों के खेत मे 10 से 25 टन की उपज, प्रतिदिन 20 से 22 वाहन से गांव गांव हो रही है बिक्री,गत वर्ष से 2 प्रतिशत किसानों ने नहीं की खेती, मेहनताना कम मिलने से सिर्फ आजीविका ही चलती है। प्याज की फसल में सबसे अधिक मेहनत महिलाएं ही करती है।

किसानों की जुबानी
गांव के खेमराज पाटीदार ने बताया कि गांव में प्रतिदिन कई टन प्याज वाहनों में भरकर बाहर गांवों में बेचने की मजबूरी बनी हुई है। सरकार प्याज खरीदने की मंडी लगाए तो किसानो का रुझान और बढ़ेगा।
जगजी पाटीदार ने बताया कि गांव गांव प्याज बेचना एक भीख मांगना जैसा लगता है। क्योंकि सुबह अंधेरे में खेतों में जाकर वाहन में प्याज भरकर बेचने के लिए गांवो की और जाते है। दिनभर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इसमें भी कई बार तो वाहन में प्याज खाली ही नही होते है।
लोकेश पाटीदार ने बताया कि प्याज की फसल करने से किसानों की आर्थिक स्तिथि में सुधार आया है। प्याज की खरीददारी के लिए सरकार कदम उठाए तो किसानों की मेहनत भी रंग लाने लगेगी।इस सम्बंध में राज्यमंत्री अर्जुनसिंह बामनिया को भी अवगत कराया है।Conclusion:
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