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नहीं रहे जयंतीलाल...उधारी के धनुष से 2006 में भारत को दिलाया था गोल्ड, 3 बार रहे भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच - गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड

अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा अब नहीं रहे, लेकिन उनकी यादें हमेशा डूंगरपुर ही नहीं, बल्कि खेल प्रेमियों के लिए भी कई सीख देकर गई. वे अपने अचूक निशाने से देश-विदेश की धरती पर भारत के लिए कई मेडल जीते. लेकिन सबसे यादगार पल साल 2006 में उधारी के धनुष से वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना था. इसके बाद तो उन्होंने मेडल की झड़ी लगा दी. वे तीन बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच भी रहे. उस दौरान भारतीय तीरंदाजी टीम ने सबसे बेहतरीन प्रदर्शन भी किया. आइये जानते हैं, जयंतीलाल ननोमा से जुड़ी कुछ खास यादें...

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अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा से जुड़ी कुछ यादें...
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Published : Jun 1, 2020, 2:53 PM IST

डूंगरपुर. अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और डूंगरपुर के जिला खेल अधिकारी जयंतीलाल ननोमा के रविवार देर रात को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उदयपुर अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई.

तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा का जन्म डूंगरपुर से सटे बिलड़ी गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिताजी का नाम जीवाजी हैं, जो एक किसान हैं और उनकी मां गृहणी. जन्म से ही होनहार और खेलों के प्रेमी जयंतीलाल ने स्कूली शिक्षा में सबसे पहले फुटबॉल में हाथ आजमाया. जब वे छठवीं कक्षा में पढ़ते थे, तभी से उनको तीरंदाजी में रुचि जगी. फिर वे बांस से बने धनुष और तीर से निशाना लगाना शुरू कर दिए. देखते ही देखते उनके अचूक निशाने ने हर किसी को चौंका दिया. स्कूली शिक्षा के दौरान ही जिला और राज्य स्तर पर मौका मिला तो सटीक निशाने से कई उन्होंने कई मेडल जीते.

अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा से जुड़ी कुछ यादें...

साल 2006 में पहली बार जयंतीलाल को भारतीय तीरंदाजी टीम में तीरंदाजी का मौका मिला और वर्ड चैम्पियनशिप में उन्होंने अपने अचूक निशाने से गोल्ड मेडल जीता. उस समय खास बात यह थी कि जयंतीलाल के पास अपने खुद का कोई धनुष नहीं था. किसान पिता की आर्थिक हालात ठीक नहीं होने से वे बेटे के लिए धनुष नहीं खरीद पाए, तो जयंतीलाल ने अपने गुरु और अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाज लिम्बाराम से उधार का धनुष लिया था. इसके बाद साल 2010 में भी देश के लिए 1 गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल जीते. इसके बाद डूंगरपूर के इस लाल ने देश और प्रदेश को कई मेडल दिलाए.

पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और भारतीय टीम के कोच रहे जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत

3 बार भारतीय तीरंदाजी टीम के रह चुके हैं कोच

डूंगरपुर के लाल जयंतीलाल ननोमा तीन बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच भी रह चुके हैं. साल 2013 में वे पहली बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच बने. उसके बाद साल 2015 में फिर दूसरी बार टीम के कोच बने और उनके साथ 16 तीरंदाजों की टीम साउथ अमेरिका के कोलंबिया में आयोजित वर्ल्ड कप तीरंदाजी स्पर्धा में भाग लिया. इसके बाद साल 2018 में तीसरी बार फिर भारतीय टीम के कोच बने.

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3 बार भारतीय तीरंदाजी टीम के रह चुके थे कोच

साल 2019 में भी उन्हें तीरंदाजी टीम का कोच बनाया गया था, लेकिन प्रतियोगिता स्थगित हो जाने के कारण नहीं जा पाए थे. इसके अलावा वे राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल सवाई मानसिंह स्टेडियम जयपुर में भी तीरंदाजी कोच रह चुके है. वे वर्तमान में तीरंदाजी कोच के साथ ही डूंगरपुर जिला खेल अधिकारी के रूप में कार्यरत थे.

पढ़ें: Video: सड़क हादसे में हुई अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की मौत

गुरु द्रोणाचार्य सहित कई अवार्ड भी जीते

जयंतीलाल ने अपने सटीक निशाने से कई मेडल देश के लिए जीते. वहीं उन्हें अपनी इस निशानेबाजी के लिए कई अवार्ड भी मिले हैं. देश के लिए सटीक निशानेबाजी के कारण उन्हें अर्जुन अवार्ड, महाराणा प्रताप अवार्ड मिल चुका है तो वहीं तीरंदाजी कोच रहते कई तीरंदाजों को तैयार किया. इस कारण उन्हें गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा भी कई संस्थाओं व अन्य से सम्मानित हो चुके हैं.

डूंगरपुर. अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और डूंगरपुर के जिला खेल अधिकारी जयंतीलाल ननोमा के रविवार देर रात को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उदयपुर अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई.

तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा का जन्म डूंगरपुर से सटे बिलड़ी गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिताजी का नाम जीवाजी हैं, जो एक किसान हैं और उनकी मां गृहणी. जन्म से ही होनहार और खेलों के प्रेमी जयंतीलाल ने स्कूली शिक्षा में सबसे पहले फुटबॉल में हाथ आजमाया. जब वे छठवीं कक्षा में पढ़ते थे, तभी से उनको तीरंदाजी में रुचि जगी. फिर वे बांस से बने धनुष और तीर से निशाना लगाना शुरू कर दिए. देखते ही देखते उनके अचूक निशाने ने हर किसी को चौंका दिया. स्कूली शिक्षा के दौरान ही जिला और राज्य स्तर पर मौका मिला तो सटीक निशाने से कई उन्होंने कई मेडल जीते.

अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा से जुड़ी कुछ यादें...

साल 2006 में पहली बार जयंतीलाल को भारतीय तीरंदाजी टीम में तीरंदाजी का मौका मिला और वर्ड चैम्पियनशिप में उन्होंने अपने अचूक निशाने से गोल्ड मेडल जीता. उस समय खास बात यह थी कि जयंतीलाल के पास अपने खुद का कोई धनुष नहीं था. किसान पिता की आर्थिक हालात ठीक नहीं होने से वे बेटे के लिए धनुष नहीं खरीद पाए, तो जयंतीलाल ने अपने गुरु और अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाज लिम्बाराम से उधार का धनुष लिया था. इसके बाद साल 2010 में भी देश के लिए 1 गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल जीते. इसके बाद डूंगरपूर के इस लाल ने देश और प्रदेश को कई मेडल दिलाए.

पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और भारतीय टीम के कोच रहे जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत

3 बार भारतीय तीरंदाजी टीम के रह चुके हैं कोच

डूंगरपुर के लाल जयंतीलाल ननोमा तीन बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच भी रह चुके हैं. साल 2013 में वे पहली बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच बने. उसके बाद साल 2015 में फिर दूसरी बार टीम के कोच बने और उनके साथ 16 तीरंदाजों की टीम साउथ अमेरिका के कोलंबिया में आयोजित वर्ल्ड कप तीरंदाजी स्पर्धा में भाग लिया. इसके बाद साल 2018 में तीसरी बार फिर भारतीय टीम के कोच बने.

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3 बार भारतीय तीरंदाजी टीम के रह चुके थे कोच

साल 2019 में भी उन्हें तीरंदाजी टीम का कोच बनाया गया था, लेकिन प्रतियोगिता स्थगित हो जाने के कारण नहीं जा पाए थे. इसके अलावा वे राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल सवाई मानसिंह स्टेडियम जयपुर में भी तीरंदाजी कोच रह चुके है. वे वर्तमान में तीरंदाजी कोच के साथ ही डूंगरपुर जिला खेल अधिकारी के रूप में कार्यरत थे.

पढ़ें: Video: सड़क हादसे में हुई अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की मौत

गुरु द्रोणाचार्य सहित कई अवार्ड भी जीते

जयंतीलाल ने अपने सटीक निशाने से कई मेडल देश के लिए जीते. वहीं उन्हें अपनी इस निशानेबाजी के लिए कई अवार्ड भी मिले हैं. देश के लिए सटीक निशानेबाजी के कारण उन्हें अर्जुन अवार्ड, महाराणा प्रताप अवार्ड मिल चुका है तो वहीं तीरंदाजी कोच रहते कई तीरंदाजों को तैयार किया. इस कारण उन्हें गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा भी कई संस्थाओं व अन्य से सम्मानित हो चुके हैं.

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