डूंगरपुर. नगर परिषद में नए मास्टर प्लान को लेकर राजनीति चरम पर है. मास्टर प्लान लागू होने के बाद मुख्यमंत्री के करीबी विधायक और यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गणेश घोघरा विरोध में उतर आए हैं और सरकार के खिलाफ तक जाने की चेतावनी दे चुके हैं. वहीं इस मामले में नगर परिषद के सभापति अमृत कलासुआ ने कहा है कि मास्टर प्लान जब सरकार ने लागू कराया है तो फिर वे इसका विरोध करके किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं.
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इस मुद्दे को लेकर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए सभापति अमृत कलासुआ ने कहा कि किसी भी शहर के विकास में मास्टर प्लान एक सतत प्रक्रिया है. प्रत्येक 10 वर्षों में नया मास्टर प्लान आता है. यह केवल डूंगरपुर ही नहीं पूरे देश और राजस्थान में यही प्रक्रिया चलती है. जिसके आधार पर अगले 10 वर्षों में शहर के विकास व विस्तार का प्लान तैयार किया जाता है. लेकिन डूंगरपुर का दुर्भाग्य रहा कि पिछले 31 वर्षों से मास्टर प्लान नहीं लागू हो पाया.
उन्होंने कहा कि वर्ष 1988 में मास्टर प्लान बनकर तैयार हो गया था, जिसमें डूंगरपुर शहर के पैराफेरी इलाके के कई गांव आ रहे थे, इसका विरोध हुआ. जिसके कारण सारे गांव बाद में मास्टर प्लान से बाहर निकाल दिए गए. इसके बाद 2012 में शहर के विकास व विस्तार के लिए जिला कलक्टर डूंगरपुर ने करीब 1800 बीघा जमीन डूंगरपुर नगर परिषद को दी. जिमसें मालपुर, भाटपुर, गोकुलपुरा, शिवपुरा, बोरी पंचायत की बिलानाम भूमि शामिल है. उसका गजट नोटिफिकेशन भी हो चुका है.
जो लोग काबिज है उन्हें उनकी जमीन दें
सभापति ने कहा कि नगर परिषद में उनका बोर्ड भी चाहता है कि जिस जमीन पर लोग काबिज हैं. उसे उन लोगों को दे दी जाए और जो जमीन रह जाती है उस पर शहर का विकास और विस्तार किया जाए. इसमें किसी तरह का कोई विवाद या किंतु-परंतु वाली बात भी नहीं है. लेकिन राजनीतिक षड्यंत्र की वजह से इसे उछाला जा रहा है. पैराफेरी की जमीन को न तो नगर परिषद ने एक्वायर किया है और न ही कोई नई चीज इसमें डाली गई है. जिसका विरोध होना चाहिए.
जमीन नगर परिषद के खाते में फिर कैसे बेच सकते है
नए मास्टर प्लान के जरिए आदिवासियों की जमीन को भूमाफियाओं को बेचने के आरोपों का जवाब देते हुए सभापति ने कहा कि ये जमीन तो नगर परिषद के खाते में है. फिर भू माफियाओं को कैसे बेची जा सकती है. शहर का विकास व विस्तार नए मास्टर प्लान के तहत होगा. फिर इसमें भू माफिया कहा से आ जाएंगे.
वीसी में यूडीएच मंत्री ने भी पट्टे देने को कहा
सभापति ने कहा कि नए मास्टर प्लान को लेकर प्रदेश के यूडीएच मंत्री ने भी निर्देश दिए हैं, जिसमे उन्होंने वीसी के जरिए कहा है कि पट्टे देने हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि पूर्व में डूब क्षेत्र था और अब वहां पानी नहीं आता है. जिस कारण वहां कॉलोनियां बस गई हैं तो उन्हें रेग्यूलराइज किया जा सकता है.
विधायक की राजनीति का प्रयोजन क्या है?
सभापति ने कहा कि मास्टर प्लान सरकार ने लागू किया है फिर भी विधायक क्यों आरोप लगा रहे हैं. इसका उन्हें भी पता नहीं है. उन्होंने साफ कहा कि विधायक के आरोपों पर वे न तो कोई बात करना चाहते हैं और न ही उसका विरोध करते हैं. लेकिन यह साफ है कि नगर परिषद ने न तो कोई जमीन एक्वायर की है और न ही कोई नया गांव जुड़ा है. 2012 के मास्टर प्लान को जैसा को तैसा लागू किया गया है. उन्होंने कहा कि इसमें नगर परिषद का कोई लेना देना नहीं है. लेकिन मास्टर प्लान विकास की एक सतत प्रक्रिया है. 2 बार मास्टर प्लान रद्द होने के बाद यह तीसरी बार लागू हुआ है. जब सरकार खुद ही इसे लागू कर रही है तो फिर इसे कौन रोक सकता है.
मास्टर प्लान को लेकर विधायक विरोध में
नए मास्टर प्लान को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी विधायक और यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गणेश घोघरा ही विरोध में उतर आए हैं. विधायक गणेश घोघरा ने कलेक्ट्री के सामने धरना देते हुए नए मास्टर प्लान का विरोध जताया.
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विधायक ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के साथ ही नगर परिषद पर आदिवासियों की जमीन हथियाकर भूमाफियाओं को बेचने के आरोप लगाए थे. वहीं मास्टर प्लान के निरस्त नहीं होने पर अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरकर चक्काजाम और आंदोलन करने की चेतावनी दी है. इसके बाद से राजनीतिक गलियारों में भी कई तरह की चर्चाएं जारी हैं.