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सिस्टम बेखबरः अधर में लटका धौलपुर क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम, पानी की आस में 44 गांव - धौलपुर क्षेत्रीय ऑफसेट योजना काम

धौलपुर के सैपऊ उपखंड के 44 गांव की क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम पिछले 7 वर्षों से कछुआ चाल की गति से संचालित है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी अधिकारी और परियोजना का काम करा रही फर्म की मिलीभगत के कारण काम लगातार पिछड़ रहा है. जिसके कारण उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ पानी से अभी भी सूखे हैं.

धौलपुर क्षेत्रीय परियोजना का काम अधूरा, Dholpur regional project incomplete
धौलपुर क्षेत्रीय परियोजना का काम अधूरा
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Published : Nov 17, 2020, 3:43 PM IST

धौलपुर. जिले के सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के लिए स्वीकृत की गई क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. पिछले 7 वर्षों से कछुआ चाल की गति से परियोजना का काम संचालित है. सरकारी अधिकारी और परियोजना का काम करा रही फर्म की मिलीभगत के कारण परियोजना का काम लगातार पिछड़ रहा है. जिसके कारण उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ पानी से अभी भी सूखे हैं.

धौलपुर क्षेत्रीय परियोजना का काम अधूरा

ग्रामीण एक-एक बूंद पानी की जद्दोजहद कर गुजर-बसर कर रहे हैं, लेकिन सिस्टम और उसके जिम्मेदार कुंभकरण की नींद सोए हुए हैं. बता दें कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को सवा 32 करोड़ रुपये की वित्तीय स्वीकृति जारी कर हरी झंडी दी थी. जिसकी जिम्मेदारी चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी को दी गई थी, लेकिन फर्म की लेटलतीफी के कारण परियोजना अधर में लटक रही है.

पढ़ेंः कपिल सिब्बल के बयान से कांग्रेस में भूचाल! सवाल को टालते नजर आ रहे दिग्गज नेता

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा के अंतिम सत्र में सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों को खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए चंबल लिफ्ट योजना से क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को जोड़ने को लिए हरी झंडी दी थी. सरकार ने सवा 32 करोड़ के टेंडर जारी कर चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी को परियोजना का काम करने का जिम्मा दिया था.

पेयजल विभाग ने जुलाई 2015 में पानी सप्लाई शुरू करने के निर्देश भी दिए थे. वर्ष 2013 से मौजूदा वक्त तक परियोजना का काम कछुआ चाल से भी धीमी गति से चल रहा है. लगभग 7 वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी परियोजना का काम धरातल पर पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. उपखंड इलाके के 44 गांव में खारे पानी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है. खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को हरी झंडी दी थी, लेकिन सिस्टम की नाकामी के कारण 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ सूखे हैं.

पढ़ेंः नहीं रहा राजस्थान की राजनीति का 'मास्टर', सुजानगढ़ में आज होगा अंतिम संस्कार

हालांकि पेयजल विभाग का दावा है कि परियोजना का काम अंतिम चरण में चल रहा है, लेकिन धरातल पर परियोजना की शुरुआत कब होगी, इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है. प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर से जब ईटीवी भारत ने जानने की कोशिश की तो उन्होंने जानकारी नहीं होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया. उधर उपखंड इलाके के ग्रामीणों में प्रशासन और सिस्टम के प्रति भारी आक्रोश देखा जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 7 वर्ष से परियोजना का काम चल रहा है. लेकिन जमीनी स्तर पर परियोजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. सिस्टम की नाकामी की बात की जाए, तो अभी तक आधा दर्जन गांव में टंकियों तक का निर्माण पूरा नहीं हो सका है. ऐसे में समय पर पानी की सप्लाई शुरू होना ग्रामीणों के लिए सपने के समान साबित हो रहा है.

धौलपुर. जिले के सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के लिए स्वीकृत की गई क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. पिछले 7 वर्षों से कछुआ चाल की गति से परियोजना का काम संचालित है. सरकारी अधिकारी और परियोजना का काम करा रही फर्म की मिलीभगत के कारण परियोजना का काम लगातार पिछड़ रहा है. जिसके कारण उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ पानी से अभी भी सूखे हैं.

धौलपुर क्षेत्रीय परियोजना का काम अधूरा

ग्रामीण एक-एक बूंद पानी की जद्दोजहद कर गुजर-बसर कर रहे हैं, लेकिन सिस्टम और उसके जिम्मेदार कुंभकरण की नींद सोए हुए हैं. बता दें कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को सवा 32 करोड़ रुपये की वित्तीय स्वीकृति जारी कर हरी झंडी दी थी. जिसकी जिम्मेदारी चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी को दी गई थी, लेकिन फर्म की लेटलतीफी के कारण परियोजना अधर में लटक रही है.

पढ़ेंः कपिल सिब्बल के बयान से कांग्रेस में भूचाल! सवाल को टालते नजर आ रहे दिग्गज नेता

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा के अंतिम सत्र में सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों को खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए चंबल लिफ्ट योजना से क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को जोड़ने को लिए हरी झंडी दी थी. सरकार ने सवा 32 करोड़ के टेंडर जारी कर चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी को परियोजना का काम करने का जिम्मा दिया था.

पेयजल विभाग ने जुलाई 2015 में पानी सप्लाई शुरू करने के निर्देश भी दिए थे. वर्ष 2013 से मौजूदा वक्त तक परियोजना का काम कछुआ चाल से भी धीमी गति से चल रहा है. लगभग 7 वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी परियोजना का काम धरातल पर पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. उपखंड इलाके के 44 गांव में खारे पानी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है. खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को हरी झंडी दी थी, लेकिन सिस्टम की नाकामी के कारण 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ सूखे हैं.

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हालांकि पेयजल विभाग का दावा है कि परियोजना का काम अंतिम चरण में चल रहा है, लेकिन धरातल पर परियोजना की शुरुआत कब होगी, इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है. प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर से जब ईटीवी भारत ने जानने की कोशिश की तो उन्होंने जानकारी नहीं होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया. उधर उपखंड इलाके के ग्रामीणों में प्रशासन और सिस्टम के प्रति भारी आक्रोश देखा जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 7 वर्ष से परियोजना का काम चल रहा है. लेकिन जमीनी स्तर पर परियोजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. सिस्टम की नाकामी की बात की जाए, तो अभी तक आधा दर्जन गांव में टंकियों तक का निर्माण पूरा नहीं हो सका है. ऐसे में समय पर पानी की सप्लाई शुरू होना ग्रामीणों के लिए सपने के समान साबित हो रहा है.

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