दौसा. 24 मई गुर्जर समाज के इतिहास में काला दिन है. दरअसल, इसी दिन जिले के सिकन्दरा में 22 लोगों की मौत हो गई थी. राजस्थान के बड़े आंदोलनों की बात की जाती है तो गुर्जर आरक्षण आंदोलन की बात सबसे पहले होती है.
बता दें कि गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर यह आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन में वर्ष 2006, 2007 और 2008 में विभिन्न जिलों में कुल 72 लोगों मौत हुई थी. हालांकि, इस आरक्षण आंदोलन के बाद गुर्जर समाज में अनेक नए नेता बन गए. सरकार के स्तर तक पहचान होने लगी, लेकिन आरक्षण आंदोलन में बवाल के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी और अनेक आंदोलनकारियों की मौत हो गई.
सिकन्दरा में भी 24 मई 2008 को इस खूनी आंदोलन में 22 लोगों की जान चली गई. रविवार को इन मृतकों की बरसी है. मारे गए लोगों के परिजन आज भी 12 साल पुराने इस दंश की कड़वी यादों में जीते हैं. मृतको को आर्थिक पैकेज को भी लेकर कई बार राजनीति हुई, लेकिन आज तक मृतकों के परिजनों को आर्थिक पैकेज नहीं मिला और ना ही कोई नेता आया. आज भी जब सरकार से नेता बात करते हैं तो वहीं आरक्षण मृतकों के परिजनों को नौकरी साथ ही ना जाने किन पुरानी मांगों का राग अलापते हैं.
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गुर्जर आरक्षण आंदोलन में गुर्जर समाज को सबसे अधिक लाभ मिला है. इसके साथ ही राजनीतिक जागरूकता. आंदोलन के जरिए समाज में अनेक नेता पैदा हुए हैं जो बीजेपी और कांग्रेस के अच्छे पदों पर आसीन हुए. इसके साथ ही सांसद और विधायक भी बने. समाज के कुछ नेता भी गुर्जर आरक्षण आंदोलन में राजनीतिकरण की बात को स्वीकारते हैं और उनका कहना है कि समाज ने खोया बहुत है और पाया बहुत कम है.
श्रद्धांजलि सभा के दौरान गुर्जर नेता हिम्मत सिंह पडली ने कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा, कि संघर्ष समिति के अगुआ नेताओं ने आरक्षण आंदोलन का राजनीतिकरण कर दिया है. जिसके चलते हजारों युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं और दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. उन नेताओं ने अपना राजनीतिक कैरियर चमकाने के लिए आरक्षण आंदोलन को ग्रहण लगा दिया.