चित्तौड़गढ़. केन्द्र सरकार की ओर से अफीम के नशे से युवाओं को बचाने के लिए गत वर्षों में नई पॉलिसी के तहत डोडा चूरा नष्ट करने का नियम शुरू किया था. गत वर्ष तो किसी तरह नष्टीकरण के आदेश की पूर्ति अधिकारियों ने कर ली. लेकिन इसमें आए भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद अधिकारियों के लिए इस वर्ष डोडा चूरा नष्ट करवाना टेड़ी खीर साबित हो रहा है.
यही कारण है कि अकेले चित्तौड़गढ़ जिले में 16 हजार से अधिक किसानों का डोडा चूरा घरों में पड़ा हुआ है. जिसे नष्ट नहीं कराया जा सका है. यह राजस्थान में कुल अफीम बुवाई का करीब 57 प्रतिशत है. वहीं अब किसानों ने नए वर्ष की बुवाई भी कर दी है. किसान नष्ट किए जाने वाले डोडा चूरा की राज्य सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं. आबकारी विभाग के अधिकारी गांवों में जा तो रहे हैं, लेकिन किसान डोडा चूरा नष्ट कराने के स्थान पर ज्ञापन लेकर आ रहे हैं.
प्रदेश के सात से आठ जिलों में अफीम की बुवाई होती है. लेकिन सबसे अधिक किसान चित्तौड़गढ़ जिले में हैं. आबकारी और नारकोटिक्स विभाग से मिली जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ में जहां 57 प्रतिशत है, तो प्रतापगढ़ में 23 प्रतिशत किसान हैं. वहीं शेष 20 प्रतिशत में कोटा, उदयपुर, झालावाड़, भीलवाड़ा, बूंदी आदि जिले आते हैं.
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वहीं आबकारी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ जिले में केवल 490 किसानों ने ही डोडा चूरा नष्ट कराया है. गत वर्ष पूरे जिले में करीब 704 गांवों में 16 हजार 734 किसानों का डोडा चूरा नष्ट होना था. लेकिन इनमें से केवल 40 गांव के किसानों ने ही डोडा चूरा नष्ट कराया है. वहीं अब 16 हजार 244 किसानों का डोडा चूरा नष्ट होना है.
ऐसे में डोडा चूरा नष्टीकरण का आदेश अधिकारियों के गले की फांस बन गया है. साथ ही कहीं ना कहीं इससे तस्करी को भी बढ़ावा मिल रहा है. केन्द्र सरकार ने अफीम खेती को लेकर जारी पॉलीसी में डोडा चूरा को पूरी तरह से नष्ट कराने के आदेश दिए थे. राजस्थान सहित पंजाब और हरियाणा में बड़ी मात्रा में डोडा चूरा का सेवन कर नशा होता था. इससे नशे के आदी बढ़ रहे थे. वहीं सरकार के आदेश पर अफीम बुवाई वर्ष 2017-18 में तो इसे नष्ट करवा दिया था. लेकिन इसमें घपले के कई मामले आए थे और भ्रष्टाचार की शिकायतें भी हुई थी. वहीं वर्ष 2018-19 में अफीम की बुवाई हुई, जिसमें किसानों ने डोडा चूरा का नष्टीकरण ही नहीं करवाया है.
वैसे तो डोडा चूरा घर में रखना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन अफीम उत्पादक होने के कारण मजबूरी में किसानों को डोडा चूरा अपने घरों में रखना पड़ रहा है. कहीं ना कहीं इसके बहाने डोडा चूरा की तस्करी भी हो रही है. इन सबके बीच किसान डोडा चूरा नष्ट करने की एवज में राज्य सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि किसानों के घरों में पड़े डोडे चूरे को लेकर सरकार क्या कार्यवाही अमल में लाती है.
फिलहाल अधिकारी जहां इस पूरे मामले से दूरी बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं किसान भी मुआवजे को लेकर विरोध करते दिखाई दे रहे हैं. आबकारी महकमा राज्य सरकार के निर्देशों के इंतजार में है. सूत्रों की मानें तो तत्कालीन नारकोटिक्स आयुक्त सहीराम के एसीबी के शिकंजे में फंसने के बाद अब तक कई ऐसे नाम इन अधिकारियों के सामने आ चुके हैं, जो नारकोटिक्स विभाग से जुड़े हैं और अफीम संबंधी अनियमितताओं में शामिल थे. ऐसे में अब मौजूदा अधिकारी इस पूरे मामले में डोडा चूरा नष्ट करने से परहेज कर रहे हैं.
गौरतलब है कि पूर्व में डोडा चूरा को लेकर राज्य सरकार की ओर से ठेके होते थे और ठेका लेने वाले लोग डोडा चूरा के आधार पर किसानों को भुगतान करते थे. राज्य सरकार की रोक लगने के बाद आबकारी विभाग, नारकोटिक्स विभाग, पुलिस विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों के संयुक्त दल को डोडा चूरा नष्ट करने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन पूर्व में डोडा चूरा नष्टीकरण के दौरान, डोडा चूरा की आड़ में लकड़ी का बुरादा जलाकर इसको तस्करी के लिए देने के मामले चर्चाओं में रहे हैं.