चित्तौड़गढ़. कोविड हॉस्पिटल के प्रभारी और एमडी मेडिसिन डॉ विश्वेन्द्र सिंह चौहान ने एक मिसाल पेश की है. उन्हें प्राइवेट काम करके निजी फायदा हो रहा था लेकिन गरीबों की सेवा करने के उद्देश्य से उन्होंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया. अब डॉ विश्वेंद्र समर्पित होकर कोरोना से लड़ रहे मरीजों का इलाज कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में वे सैंकड़ों गंभीर कोरोना मरीजों को ठीक कर चुके हैं. वे कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण दवा यही है कि आप हिम्मत न हारें, ठीक होने का हौसला बनाए रखें. अपने आप पर और अपने डॉक्टर पर विश्वास रखें.
मूलरूप से अजमेर निवासी डॉ विश्वेन्द्र ने एमबीबीएस और एमडी मेडिसिन की पढाई सवाई मानसिंह कॉलेज (एसएमएस) जयपुर से की. वे एम्स जोधपुर और एम्स नई दिल्ली में भी सेवाएं दे चुके हैं. वर्तमान में कोविड हॉस्पिटल चित्तौड़गढ़ के प्रभारी हैं.
डॉ विश्वेन्द्र सिंह ने बताया कि अगर कोरोना के लक्षण को शुरुआत में ही पकड़ लिया जाए और चिकित्सक भी उसका अच्छे से इलाज शुरू कर दे तो काफी हद तक बिमारी को बढने से रोका जा सकता है. वे कहते हैं कि ऑक्सीजन सपोर्ट पर इलाजरत मरीज़ को ट्रीटमेंट से बचाया जा सकता है. लेकिन शुरूआती लक्षणों में ही कोविड की जांच कर इलाज शुरू करना जरूरी है. डॉ विश्वेन्द्र कहते हैं कि कोरोना गाइडलाइन का पालन लोग जरूर करें. लक्षण दिखाई देने पर विलम्ब न करते हुए जांच अवश्य करवाएं. उन्होंने कहा कि आमजन घर पर ब्रिथिंग एक्सरसाइज़ करें और सकारात्मक सोच रखें.
पढ़ें- SPECIAL : कोरोना काल में युवाओं पर दोहरी मार...आर्थिक और मानसिक परेशानी झेल रहे बेरोजगार
हाल ही में उन्होंने जिला प्रशासन को ग्राम पंचायत स्तर पर कोविड केयर सेंटर खोलने की सलाह दी है. जिस पर काम भी शुरू कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि कोरोना से घबराने के बजाय सावधान होने की जरूरत है. हमें सचेत रहना होगा और समय पर चिकित्सक से परामर्श लेकर इलाज शुरू करना होगा.
डॉ. विश्वेन्द्र सिंह ने बताया कि कोविड हॉस्पिटल में तीन दिन में 24 मरीज़ आए. जिनमें 20 मरीज़ अच्छे से ट्रीटमेंट पाकर घर चले गए. वे कई क्रिटिकल मरीजों को ठीक कर चुके हैं. लगभग 60 वर्ष की उम्र के एक मरीज़ मोहम्मद अल्ताफ का ऑक्सीजन लेवल 60 पर आ गया. स्थिति बेहद चिंताजनक थी. क्लोज़ मॉनिटरिंग और इलाज से उसको बचा लिया गया. कपासन से आए 80 वर्ष से अधिक उम्र के क्रिटिकल पेशेंट शंकरलाल को भी वे बचाने में सफल रहे. चित्तौड़गढ़ के भवानी शंकर और कैलाश कंवर जैसे क्रिटिकल मरीजों को बचा कर घर भेजा.