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चित्तौड़गढ़: खेतों में पराली जलाना पड़ रहा भारी, दमकल का भी फूल रहा दम

इन दिनों रबी की फसल की कटाई पूरी हो चुकी है और खेत खाली पड़े हुए हैं. ऐसे में किसान खाली खेतों में पराली जला रहे हैं. पराली जलाने में जहां पर्यावरण प्रदूषण को तो नुकसान है ही, वहीं आग की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. आग बेकाबू होकर फसलों एवं जंगल को खाक कर रही है, ऐसे में प्रतिदिन दमकल चक्कर लगा रही है.

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खेतों में पराली जलाने से हो रहा नुकसान
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Published : May 3, 2020, 6:42 PM IST

चित्तौड़गढ़. जिले में किसान रबी की फसल की कटाई कर चुके हैं. गेहूं, चना, आदि किसानों के घरों तक पहुंच चुके हैं. ऐसे में खेत खाली पड़े हुए हैं. खरीफ की बुवाई बरसात में होगी. कुछ किसानों ने जरूर अगेती खेती की है, लेकिन 99 प्रतिशत खेत अभी खाली पड़े हुए हैं. ऐसे में किसान खेतों में पराली जलाने में लगे हुए हैं. खेत के खेत खाली होने के बाद जलाए जा रहे हैं.

खेतों में पराली जलाने से हो रहा नुकसान

किसानों का मानना है कि इससे खरपतवार के साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे भी खत्म हो जाते हैं, लेकिन पराली जलाने से नुकसान अधिक है. इससे पर्यावरण प्रदूषण तो होता ही है साथ ही प्रकृति को भी नुकसान पहुंच रहा है. अधिकांश स्थानों पर इस तरह से देखने को मिल रहा है कि किसान आग लगाने के बाद खेत को खाली छोड़ देता है और ध्यान नहीं रखता. इससे आग दूसरे खेतों में और जंगल में चली जाती है. आवश्यक उपाय नहीं करने के कारण किसान आग पर काबू नहीं कर पाता है.

औसत एक दिन में ही 30 से 40 आग लगने की घटनाएं हो रही हैं. पुलिस कंट्रोल रूम के अलावा चित्तौड़गढ़ जिले के निंबाहेड़ा, कपासन व बेगूं नगरपालिका, श्री सांवलिया जी मंदिर मंडल के साथ ही सभी औद्योगिक संस्थाओं की दमकल हैं. आग बुझाने के लिए इन सभी का सहयोग लिया जा रहा है. एक ही समय में एक से अधिक आग की घटना होने पर अलग-अलग संस्थान की दमकल मौके पर भेजी जा रही हैं.

पढ़ें- राज्य सरकार प्रवासियों को हवाई जहाज से लाने की डिमांड भी कर सकती है: सांसद राहुल कस्वां

सरकारी के अलावा निजी औद्योगिक संस्थाओं का सहयोग लिया जा रहा है. करीब एक माह से यही सिलसिला बना हुआ है. खेत खाली होने के साथ ही किसानों ने खेतों में पराली जलाना शुरू कर दिया था. ऐसे में शुरुआती दिनों में तो कहीं-कहीं गेहूं की फसल जलने की शिकायत भी मिली थी. 4 दिन पूर्व शहर से 7 किलोमीटर दूर सेमलपुरा चौराहे के यहां खेतों में लगाई आग जंगल में पहुंच गई थी. इसे वन संपदा को काफी नुकसान पहुंचा था और आग बुझाने में 5 घंटे लग गए थे. ऐसे में किसानों की लापरवाही भारी पड़ रही है और खेती के साथ ही पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है.

चित्तौड़गढ़. जिले में किसान रबी की फसल की कटाई कर चुके हैं. गेहूं, चना, आदि किसानों के घरों तक पहुंच चुके हैं. ऐसे में खेत खाली पड़े हुए हैं. खरीफ की बुवाई बरसात में होगी. कुछ किसानों ने जरूर अगेती खेती की है, लेकिन 99 प्रतिशत खेत अभी खाली पड़े हुए हैं. ऐसे में किसान खेतों में पराली जलाने में लगे हुए हैं. खेत के खेत खाली होने के बाद जलाए जा रहे हैं.

खेतों में पराली जलाने से हो रहा नुकसान

किसानों का मानना है कि इससे खरपतवार के साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे भी खत्म हो जाते हैं, लेकिन पराली जलाने से नुकसान अधिक है. इससे पर्यावरण प्रदूषण तो होता ही है साथ ही प्रकृति को भी नुकसान पहुंच रहा है. अधिकांश स्थानों पर इस तरह से देखने को मिल रहा है कि किसान आग लगाने के बाद खेत को खाली छोड़ देता है और ध्यान नहीं रखता. इससे आग दूसरे खेतों में और जंगल में चली जाती है. आवश्यक उपाय नहीं करने के कारण किसान आग पर काबू नहीं कर पाता है.

औसत एक दिन में ही 30 से 40 आग लगने की घटनाएं हो रही हैं. पुलिस कंट्रोल रूम के अलावा चित्तौड़गढ़ जिले के निंबाहेड़ा, कपासन व बेगूं नगरपालिका, श्री सांवलिया जी मंदिर मंडल के साथ ही सभी औद्योगिक संस्थाओं की दमकल हैं. आग बुझाने के लिए इन सभी का सहयोग लिया जा रहा है. एक ही समय में एक से अधिक आग की घटना होने पर अलग-अलग संस्थान की दमकल मौके पर भेजी जा रही हैं.

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सरकारी के अलावा निजी औद्योगिक संस्थाओं का सहयोग लिया जा रहा है. करीब एक माह से यही सिलसिला बना हुआ है. खेत खाली होने के साथ ही किसानों ने खेतों में पराली जलाना शुरू कर दिया था. ऐसे में शुरुआती दिनों में तो कहीं-कहीं गेहूं की फसल जलने की शिकायत भी मिली थी. 4 दिन पूर्व शहर से 7 किलोमीटर दूर सेमलपुरा चौराहे के यहां खेतों में लगाई आग जंगल में पहुंच गई थी. इसे वन संपदा को काफी नुकसान पहुंचा था और आग बुझाने में 5 घंटे लग गए थे. ऐसे में किसानों की लापरवाही भारी पड़ रही है और खेती के साथ ही पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है.

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