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जल पुरुष EXCLUSIVE: नदियों को मां मानने वाले देश ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा - जयपुर

'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने ETV भारत से खास बातचीत में विकास की कहानी सुनाई. उन्होंने यह भी बताया कि कानून बनने के बाद भी नदी की हालत क्यों नहीं सुधरी है.

जल पुरुष : नदियों को मां मानने वाले देश ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा
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Published : Jul 18, 2019, 9:15 AM IST

Updated : Jul 18, 2019, 9:28 AM IST

हैदराबाद: 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने ETV भारत से खास बातचीत में विकास की कहानी सुनाई. राजेंद्र सिंह ने कहा कि ब्रिटिश काउंसिल ने हॉकिंस नाम के अफसर को बनारस में पोस्ट किया. उस अफसर ने देखा कि हिंदुस्तानियों की आस्था गंगा के लिए देखी, तो उसने गंगा में शहर के तीन गंदे नाले डाल दिए. 1932 के बाद भारत के हर शहर ने गंदे नालों को नदी में मिलाना शुरू किया.

नदियों को मां मानने वाले देश ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा

उनसे बातचीत के खास बातचीत पढ़िए-

सवाल: कड़े कानून बनाए जाने के बाद भी नदियों की हालत सुधरती क्यों नहीं ?
जवाब: अभी नया बिल आया है, रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल 2018. ये बिल राज्यों के नदियों के राइट्स सेंट्रलाइज कर रहा है. वाटर सिक्योरिटी एक्ट बनाना चाहिए. देश में नदियों को ठीक करने के लिए वॉटर सेक्योरिटी एक्ट बनाने की जरूरत है. एक्ट में तीन बातों को शामिल किया जाना चाहिए. पहला नदी की जमीन नदी के लिए. दूसरा नदी को सही प्रवाह मिले और तीसरा नदी में गंदा नाला न मिले.

सवाल: क्या सिर्फ योजनाओं का नाम बदलने से जल की समस्या का समाधान निकलेगा ?
जवाब: 5 साल में नमामि गंगा योजना से बहुत फायदा नहीं मिला. मां गंगा की सेहत सही नहीं हुई. जलशक्ति मंत्रालय का उद्देश्य बहुत अच्छा है. जन-जन को जल पिलाने का उद्देश्य है, लेकिन जल सिर्फ नल लगाने से नहीं आता, नल में पानी लाने के लिए काम करना पड़ता है. जल सुरक्षा अधिकार अधिनियम बनना चाहिए. हमें युद्ध स्तर पर काम नदियों का जीवन सुधारने के लिए करना चाहिए.

ये भी पढ़े : जल पुरुष EXCLUSIVE: 'जल संकट हमारी देन है और इसे हम ही दूर कर सकते हैं'

सवाल: क्या हर राज्य के हिसाब से जल के संसाधन की नीति बनाने की जरूरत है या एक राष्ट्रीय नीति ही काफी है ?
जवाब: भारत 90 एग्रो इकॉलॉजिकल क्लाइमेटिक जोन का देश है. पानी का दर्शन पूरे देश में एक सा हो सकता है, लेकिन पानी के संरक्षण की तकनीक, इंजीनियरिंग और विधियां सारे देश में अलग-अलग हैं. बिहार में ताल-पाल-झाल है, राजस्थान में इनके साथ बावड़ी है. इन्हीं क्लामेटिक डाइवर्सिटीज के अनुरूप योजनाएं बनाने की जरूरत है.

सवाल: आम लोगों को पानी बचाने के लिए किस तरह से जोड़ा जाए ? क्या स्कूलों में भी इसे लागू किया जाए ?
जवाब: पहले बच्चों को पानी का संस्कार दिया जाता था. स्कूल से कॉलेज तक पानी का उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली पढ़ाई होनी चाहिए. जल के उपयोग का अनुशासन बेहद जरूरी है. जब तक जल के उपयोग का अनुशासन नहीं होगा, तब तक जल संकट नहीं दूर होगा.

कौन हैं राजेंद्र सिंह-

  • उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
  • राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
  • राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
  • 1975 में राजस्थान के अलवर से तरुण भारत संघ की स्थापना की.
  • राजस्थान के 12 सौ गांव में करीब 12000 तालाब का आम लोगों की भागीदारी से निर्माण करवाया.
  • 2015 में उन्होंने स्टॉक होम वाटर प्राइज जीता, ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.

हैदराबाद: 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने ETV भारत से खास बातचीत में विकास की कहानी सुनाई. राजेंद्र सिंह ने कहा कि ब्रिटिश काउंसिल ने हॉकिंस नाम के अफसर को बनारस में पोस्ट किया. उस अफसर ने देखा कि हिंदुस्तानियों की आस्था गंगा के लिए देखी, तो उसने गंगा में शहर के तीन गंदे नाले डाल दिए. 1932 के बाद भारत के हर शहर ने गंदे नालों को नदी में मिलाना शुरू किया.

नदियों को मां मानने वाले देश ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा

उनसे बातचीत के खास बातचीत पढ़िए-

सवाल: कड़े कानून बनाए जाने के बाद भी नदियों की हालत सुधरती क्यों नहीं ?
जवाब: अभी नया बिल आया है, रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल 2018. ये बिल राज्यों के नदियों के राइट्स सेंट्रलाइज कर रहा है. वाटर सिक्योरिटी एक्ट बनाना चाहिए. देश में नदियों को ठीक करने के लिए वॉटर सेक्योरिटी एक्ट बनाने की जरूरत है. एक्ट में तीन बातों को शामिल किया जाना चाहिए. पहला नदी की जमीन नदी के लिए. दूसरा नदी को सही प्रवाह मिले और तीसरा नदी में गंदा नाला न मिले.

सवाल: क्या सिर्फ योजनाओं का नाम बदलने से जल की समस्या का समाधान निकलेगा ?
जवाब: 5 साल में नमामि गंगा योजना से बहुत फायदा नहीं मिला. मां गंगा की सेहत सही नहीं हुई. जलशक्ति मंत्रालय का उद्देश्य बहुत अच्छा है. जन-जन को जल पिलाने का उद्देश्य है, लेकिन जल सिर्फ नल लगाने से नहीं आता, नल में पानी लाने के लिए काम करना पड़ता है. जल सुरक्षा अधिकार अधिनियम बनना चाहिए. हमें युद्ध स्तर पर काम नदियों का जीवन सुधारने के लिए करना चाहिए.

ये भी पढ़े : जल पुरुष EXCLUSIVE: 'जल संकट हमारी देन है और इसे हम ही दूर कर सकते हैं'

सवाल: क्या हर राज्य के हिसाब से जल के संसाधन की नीति बनाने की जरूरत है या एक राष्ट्रीय नीति ही काफी है ?
जवाब: भारत 90 एग्रो इकॉलॉजिकल क्लाइमेटिक जोन का देश है. पानी का दर्शन पूरे देश में एक सा हो सकता है, लेकिन पानी के संरक्षण की तकनीक, इंजीनियरिंग और विधियां सारे देश में अलग-अलग हैं. बिहार में ताल-पाल-झाल है, राजस्थान में इनके साथ बावड़ी है. इन्हीं क्लामेटिक डाइवर्सिटीज के अनुरूप योजनाएं बनाने की जरूरत है.

सवाल: आम लोगों को पानी बचाने के लिए किस तरह से जोड़ा जाए ? क्या स्कूलों में भी इसे लागू किया जाए ?
जवाब: पहले बच्चों को पानी का संस्कार दिया जाता था. स्कूल से कॉलेज तक पानी का उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली पढ़ाई होनी चाहिए. जल के उपयोग का अनुशासन बेहद जरूरी है. जब तक जल के उपयोग का अनुशासन नहीं होगा, तब तक जल संकट नहीं दूर होगा.

कौन हैं राजेंद्र सिंह-

  • उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
  • राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
  • राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
  • 1975 में राजस्थान के अलवर से तरुण भारत संघ की स्थापना की.
  • राजस्थान के 12 सौ गांव में करीब 12000 तालाब का आम लोगों की भागीदारी से निर्माण करवाया.
  • 2015 में उन्होंने स्टॉक होम वाटर प्राइज जीता, ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.
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Last Updated : Jul 18, 2019, 9:28 AM IST
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