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Special: बूंदी के इस गांव में लकड़ी की नाव पर अटकी जिंदगियां...चंबल हादसे के बाद भी नहीं चेता प्रशासन

चंबल नदी में हुए दर्दनाक हादसे के बाद भी बूंदी प्रशासन नहीं चेता है. जिले के बरूंधन गांव के ग्रामीण भी कोटा की तरह ही लकड़ी की जर्जर नाव की मदद से अपनी जान हथेली पर रखकर आज भी नदी पार करते हैं. ग्रामीणों की मजबूरी है, क्योंकि गांव से अगर आना-जाना है, तो इस नदी से होकर ही गुजरना पड़ता है और नदी पर सालों ने अब तक पुलिया नहीं बन पाई है. ऐसे में ग्रामीण एक तार के सहारे मौत की नैय्या पर सवार हैं. पढ़ें विस्तृत रिपोर्ट...

बरूंधन गांव में सालों ने नहीं बनी पुलिया,  bridge did not built in Barundhan village
मौत की नाव पर सवार ग्रामीण
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Published : Sep 19, 2020, 2:18 PM IST

बूंदी. चंबल नदी में हुए नाव दुखान्तिका हादसे ने सबको झकझोर कर रख दिया. हादसा इतना हृदय विदारक था कि इसमें किसी ने अपनी पत्नी को खो दिया, तो कुछ बच्चों के माताओं की मौत हो गई. वहीं, किसी के पिता इस हादसे में गुम हो गए, तो किसी व्यक्ति ने अपने जवान बेटे को खो दिया. इतने बड़े हादसे के पीछे प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई. लेकिन राजस्थान में आज भी ऐसे कई गांव हैं, जहां पुलिया नहीं होने के कारण लोग लकड़ी की जर्जर बोटों के सहारे नदियों को पार कर रहे हैं.

मौत की नाव पर सवार ग्रामीण

प्रदेश के बूंदी जिले में भी कई ऐसे गांव आज भी हैं, जहां पुलिया नहीं होने के कारण अपनी जान हथेली में रखकर लोग लकड़ी के नाव से नदी पाकर करके घर का सफर तय करते हैं. चंबल नदी में हुए दर्दनाक हादसे के बाद भी बूंदी जिले के प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है.

लोग अपनी जान हथेली पर रखकर कर रहे नदी पार

बूंदी शहर से 20 किलोमीटर दूर गांव है, बरूंधन गांव. जहां आजादी के 70 साल बाद भी पुलिया का निर्माण नहीं हो सका है. यहां पर घोड़ा पछाड़ नदी होकर गुजरती है. ऐसे में एक छोर पर बरूंधन का गांव का रस्ता है, तो दूसरे छोर पर बरूंधन गांव ही है. ऐसे में आने-जाने वाले लोग दिनभर नाव में सवार होकर शहर की तरफ आया-जाया करते हैं. बच्चे, बूढ़े, जवान हों या महिलाएं, सभी इसी तरह इस नाव में बैठकर यह रास्ता पार करते हैं.

पढ़ें- कोटा में हादसे के बाद धौलपुर पुलिस ने चंबल नदी में नाव संचालन पर लगाई रोक

नावों पर सामान भी होता है लोड

यहां तक की ग्रामीण अपनी बाइकों, साइकिलों के साथ ही जरूरी सामानों को भी इसी नाव में लेकर सफर करते हैं. हालत तो तब बयां होती है, जब किसी प्रसूता को भी इसी नाव के सहारे बैठा कर अस्पताल ले जाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि कई बार प्रसूताओं ने नदी के रास्ते में ही दम तोड़ दिया है, क्योंकि लकड़ी से नाव से अस्पताल तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है. ग्रामीणों ने सरकार से पुलिया बनाने की मांग भी की, लेकिन आज तक उनकी समस्या की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.

ग्रामीणों का कहना है कि राजनेता यहां पर वोट मांगने के लिए आते हैं, चुनाव खत्म होने के बाद जीत भी जाते हैं. लेकिन किसी ने भी उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया और आज भी जस के तस हालात बने हुए हैं.

बरूंधन गांव में सालों ने नहीं बनी पुलिया,  bridge did not built in Barundhan village
एक तार के सहारे नदी को ग्रामीण करते हैं पार

ग्रामीण कई बार सरकार से कर चुके हैं पुलिया बनाने की मांग

चंबल नदी पर हुए दुखद हादसे के बाद बूंदी के लोगों ने भी इस जगह पर पुलिया बनाने की मांग की है. ग्रामीणों का कहना है 'हमें डर लगता है, हमारे लिए पुलिया बना दो साहब...वरना हम भी किसी दिन इस पानी में समा जाएंगे.' सरकार लाख दावे करें कि आज ग्रामीण एरिया में विकास हो रहा है, लेकिन बूंदी का बरूंधन गांव इस पुलिया का निर्माण नहीं होने से विकास के पथ में पिछड़ता जा रहा है.

पढ़ें: SPECIAL: सालों से पानी निकासी की समस्या जस की तस, महज चुनावी मुद्दा बनकर रहा गया सरदारशहर का ड्रेनेज सिस्टम

ग्रामीणों का कहना है कि पुल के अभाव में स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर बीमार लोगों को भी नाव में ही नदी पार करके जाना पड़ता है. ऐसे में बरसात के समय नदी में पानी का बहाव तेज हो जाने से नाव का संचालन भी बंद हो जाता है और गांव टापू में तब्दील हो जाता है. जिससे बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है.

बरूंधन गांव में सालों ने नहीं बनी पुलिया,  bridge did not built in Barundhan village
बोट पर बैठी महिलाएं

ग्रामीणों ने कई बार एसडीएम, कलेक्टर, विधायक और सांसदों से गुहार लगाई, लेकिन आज दिन तक स्थिति जस की तस बनी हुई है. हालांकि अभी कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से स्कूल बंद हैं. ग्रामीण बताते हैं कि एक नाव में करीब 20 से 30 लोग सवार होते हैं. ऐसे में सभी की जान जोखिम में बनी रहती है.

पढ़ें- चंबल नदी हादसा: पुलिस ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 5 लोगों को किया गिरफ्तार

लकड़ी की नाव पर अटकी जिंदगी.. क्या करें कोई और रास्ता नहीं

कोटा में चंबल नदी पर बने टापू पर लकड़ी की नाव के सहारे भगवान के दर्शन करने जा रहे 50 से अधिक ग्रामीणों को पानी ने निगल लिया. इसमें 13 लोगों की मौत हो गई. वहीं लकड़ी की नाव थी. जिसमें 50 लोग सवार थे और करीब 15 बाइकें थी. ऐसी ही लकड़ी की नाव बरूंधन गांव में भी है.

नदी की गहराई कम से कम 50 से 100 फीट है और नदी हमेशा उफान पर रहती है. ऐसे में यहां के ग्रामीणों ने एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक एक तार को बांधा हुआ है. जिसके माध्यम से नाव को जोड़ा गया है. यहां बिना चप्पू के ग्रामीण नाव चलाते हैं और तार को खींचते हुए अगले छोर तक पहुंच जाते हैं.

पढ़ें: SPECIAL: किराए के नाम पर मची डबल लूट, ऑटो-जीप वाले वसूल रहे मनमाना किराया

कई बार तो यह नाव पानी में उफान के चलते बह भी गई और कई बार तो यह नाव पानी में पलट भी चुकी है. लेकिन गनीमत यह रही कि पानी में डुबे लोगों को समय रहते बचा लिया गया, लेकिन हादसे का डर लोगों को आज भी है. चंबल नदी पर हुए हादसे के बाद गांव के लोगों ने भी प्रशासन और सरकार से मांग की है कि हादसा हमारे गांव में भी ना हो जाए, इसलिए इस गांव में जल्द ही पुलिया बना दें.

सरकार लाख दावा करे कि ग्रामीण क्षेत्रो में विकास की योजना लेकर आ रहे हैं, लेकिन बूंदी का बरूंधन गांव विकास के पथ पर अभी तक भी आगे नहीं बढ़ पाया है. एक पुलिया ना होने की वजह से यहां के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं. जरूरत है कि प्रशासन जल्द से जल्द पुलिया का निर्माण करवाएं, ताकि चंबल नदी में हुआ हादसा फिर से ना हो जाए.

बूंदी. चंबल नदी में हुए नाव दुखान्तिका हादसे ने सबको झकझोर कर रख दिया. हादसा इतना हृदय विदारक था कि इसमें किसी ने अपनी पत्नी को खो दिया, तो कुछ बच्चों के माताओं की मौत हो गई. वहीं, किसी के पिता इस हादसे में गुम हो गए, तो किसी व्यक्ति ने अपने जवान बेटे को खो दिया. इतने बड़े हादसे के पीछे प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई. लेकिन राजस्थान में आज भी ऐसे कई गांव हैं, जहां पुलिया नहीं होने के कारण लोग लकड़ी की जर्जर बोटों के सहारे नदियों को पार कर रहे हैं.

मौत की नाव पर सवार ग्रामीण

प्रदेश के बूंदी जिले में भी कई ऐसे गांव आज भी हैं, जहां पुलिया नहीं होने के कारण अपनी जान हथेली में रखकर लोग लकड़ी के नाव से नदी पाकर करके घर का सफर तय करते हैं. चंबल नदी में हुए दर्दनाक हादसे के बाद भी बूंदी जिले के प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है.

लोग अपनी जान हथेली पर रखकर कर रहे नदी पार

बूंदी शहर से 20 किलोमीटर दूर गांव है, बरूंधन गांव. जहां आजादी के 70 साल बाद भी पुलिया का निर्माण नहीं हो सका है. यहां पर घोड़ा पछाड़ नदी होकर गुजरती है. ऐसे में एक छोर पर बरूंधन का गांव का रस्ता है, तो दूसरे छोर पर बरूंधन गांव ही है. ऐसे में आने-जाने वाले लोग दिनभर नाव में सवार होकर शहर की तरफ आया-जाया करते हैं. बच्चे, बूढ़े, जवान हों या महिलाएं, सभी इसी तरह इस नाव में बैठकर यह रास्ता पार करते हैं.

पढ़ें- कोटा में हादसे के बाद धौलपुर पुलिस ने चंबल नदी में नाव संचालन पर लगाई रोक

नावों पर सामान भी होता है लोड

यहां तक की ग्रामीण अपनी बाइकों, साइकिलों के साथ ही जरूरी सामानों को भी इसी नाव में लेकर सफर करते हैं. हालत तो तब बयां होती है, जब किसी प्रसूता को भी इसी नाव के सहारे बैठा कर अस्पताल ले जाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि कई बार प्रसूताओं ने नदी के रास्ते में ही दम तोड़ दिया है, क्योंकि लकड़ी से नाव से अस्पताल तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है. ग्रामीणों ने सरकार से पुलिया बनाने की मांग भी की, लेकिन आज तक उनकी समस्या की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.

ग्रामीणों का कहना है कि राजनेता यहां पर वोट मांगने के लिए आते हैं, चुनाव खत्म होने के बाद जीत भी जाते हैं. लेकिन किसी ने भी उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया और आज भी जस के तस हालात बने हुए हैं.

बरूंधन गांव में सालों ने नहीं बनी पुलिया,  bridge did not built in Barundhan village
एक तार के सहारे नदी को ग्रामीण करते हैं पार

ग्रामीण कई बार सरकार से कर चुके हैं पुलिया बनाने की मांग

चंबल नदी पर हुए दुखद हादसे के बाद बूंदी के लोगों ने भी इस जगह पर पुलिया बनाने की मांग की है. ग्रामीणों का कहना है 'हमें डर लगता है, हमारे लिए पुलिया बना दो साहब...वरना हम भी किसी दिन इस पानी में समा जाएंगे.' सरकार लाख दावे करें कि आज ग्रामीण एरिया में विकास हो रहा है, लेकिन बूंदी का बरूंधन गांव इस पुलिया का निर्माण नहीं होने से विकास के पथ में पिछड़ता जा रहा है.

पढ़ें: SPECIAL: सालों से पानी निकासी की समस्या जस की तस, महज चुनावी मुद्दा बनकर रहा गया सरदारशहर का ड्रेनेज सिस्टम

ग्रामीणों का कहना है कि पुल के अभाव में स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर बीमार लोगों को भी नाव में ही नदी पार करके जाना पड़ता है. ऐसे में बरसात के समय नदी में पानी का बहाव तेज हो जाने से नाव का संचालन भी बंद हो जाता है और गांव टापू में तब्दील हो जाता है. जिससे बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है.

बरूंधन गांव में सालों ने नहीं बनी पुलिया,  bridge did not built in Barundhan village
बोट पर बैठी महिलाएं

ग्रामीणों ने कई बार एसडीएम, कलेक्टर, विधायक और सांसदों से गुहार लगाई, लेकिन आज दिन तक स्थिति जस की तस बनी हुई है. हालांकि अभी कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से स्कूल बंद हैं. ग्रामीण बताते हैं कि एक नाव में करीब 20 से 30 लोग सवार होते हैं. ऐसे में सभी की जान जोखिम में बनी रहती है.

पढ़ें- चंबल नदी हादसा: पुलिस ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 5 लोगों को किया गिरफ्तार

लकड़ी की नाव पर अटकी जिंदगी.. क्या करें कोई और रास्ता नहीं

कोटा में चंबल नदी पर बने टापू पर लकड़ी की नाव के सहारे भगवान के दर्शन करने जा रहे 50 से अधिक ग्रामीणों को पानी ने निगल लिया. इसमें 13 लोगों की मौत हो गई. वहीं लकड़ी की नाव थी. जिसमें 50 लोग सवार थे और करीब 15 बाइकें थी. ऐसी ही लकड़ी की नाव बरूंधन गांव में भी है.

नदी की गहराई कम से कम 50 से 100 फीट है और नदी हमेशा उफान पर रहती है. ऐसे में यहां के ग्रामीणों ने एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक एक तार को बांधा हुआ है. जिसके माध्यम से नाव को जोड़ा गया है. यहां बिना चप्पू के ग्रामीण नाव चलाते हैं और तार को खींचते हुए अगले छोर तक पहुंच जाते हैं.

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कई बार तो यह नाव पानी में उफान के चलते बह भी गई और कई बार तो यह नाव पानी में पलट भी चुकी है. लेकिन गनीमत यह रही कि पानी में डुबे लोगों को समय रहते बचा लिया गया, लेकिन हादसे का डर लोगों को आज भी है. चंबल नदी पर हुए हादसे के बाद गांव के लोगों ने भी प्रशासन और सरकार से मांग की है कि हादसा हमारे गांव में भी ना हो जाए, इसलिए इस गांव में जल्द ही पुलिया बना दें.

सरकार लाख दावा करे कि ग्रामीण क्षेत्रो में विकास की योजना लेकर आ रहे हैं, लेकिन बूंदी का बरूंधन गांव विकास के पथ पर अभी तक भी आगे नहीं बढ़ पाया है. एक पुलिया ना होने की वजह से यहां के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं. जरूरत है कि प्रशासन जल्द से जल्द पुलिया का निर्माण करवाएं, ताकि चंबल नदी में हुआ हादसा फिर से ना हो जाए.

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