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स्वच्छता मिशन के तहत बने शौचालयों में तकनीकी खामियां, सर्वे के बाद दोबारा होगा काम

बूंदी में स्वच्छता मिशन के तहत बने शौचालयों में तकनीकी खामियां मिली हैं. इनसे लोगों के स्वास्थ्य को भारी खतरा पैदा होने की संभावना है इसलिए इन पर दोबारा काम किया जाएगा.

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Published : May 8, 2019, 8:43 PM IST

बूंदी के शौचालयों में तकनीकी खामियां

बूंदी. जिले में स्वच्छता मिशन के तहत सरकारी अनुदान से बनाए गए शौचालयों पर दोबारा काम किया जाएगा. दरअसल, तकनीकी खामियों के चलते इन शौचालयों से पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को भारी खतरा पैदा हो सकता है.

बताया जा रहा है कि ज्यादातर शौचालयों के तकनीकी मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण आने वाले समय में लोगों के लिए बड़ा खतरा हो सकता है. इसलिए देशभर में स्वच्छता मिशन में बने शौचालयों का सर्वे कराकर उनकी खामियां दुरुस्त की जाएंगी. इसके लिए एक टीम बनाई जाएगी, जो सर्वे में फेल शौचालयों की खामियां दूर करेंगे. इसके लिए वर्ल्ड बैंक फंडिंग करेगा.

बूंदी जिले की ही बात करें तो साल 2002 से अब तक अलग-अलग स्वच्छता मिशनों में 2 लाख 42 हजार 566 शौचालय बनाए जा चुके हैं. इनमें साल 2014 से शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन में अब तक बने 1 लाख 91 हजार 169 शौचालय भी शामिल हैं.

देश में 1986 से शुरू हुए राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन से लेकर अभी तक चल रहे स्वच्छ भारत मिशन में अरबों रुपए के सरकारी अनुदान पर देशभर में करोड़ों शौचालय बनाए गए. सरकारें अनुदान देती रहीं और लोग अपने हिसाब से शौचालय बनवाते गए. अब सरकार को पता चला कि शौचालय तो गलत बन गए हैं और आनेवाले वक्त में ये पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनने वाले हैं. इन शौचालयों ने ड्रिंकिंग वाटर सोर्सेज दूषित होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है, जिसका असर आने वाले सालों में लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा. हैजा और पेचिश जैसी कई बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ जाएगा.

सरकारी अनुदान पर लोगों ने अपने स्तर पर शौचालय बनवा लिए, लेकिन तकनीकी लिहाज से ये पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं. शौचालय का पानी किसी सूरत में बाहर नहीं निकलना चाहिए. लेकिन ज्यादातर शौचालयों में ऐसा ही हो रहा है. गलत चैंबर अथवा पाइप लगाए गए, जिनसे पानी का बहाव सही नहीं होता है. सेप्टिक टैंक के साथ सोखने वाले गड्ढे नहीं बनाए गए. पानी के पाइप खुले में छोड़ दिए गए. चैंबर नहीं बनाए गए या गड्‌ढ़ों पर ढक्कन नहीं लगाया गया. केवल एक गड्ढा बनाया गया. पेयजल स्त्रोत के पास शौचालय या उसका गड्ढा बना दिया. टूटी शीट लगा दी या फिर पायदान ठीक नहीं बैठाया गया. चैंबर या पाइप सही तकनीक से नहीं बनाए-लगाए गए. मुर्गा-पीट्रेप नहीं लगाया.

बूंदी के शौचालयों में तकनीकी खामियां

बता दें कि साल 1986 से देश में स्वच्छता कार्यक्रम शुरू हुआ था. साल 2012 में निर्मल भारत अभियान के तहत अनुदान राशि 3200 रुपये थी. साल 2014 में इसका नाम बदलकर स्वच्छ भारत मिशन कर दिया गया और अनुदान राशि बढ़ाकर 12 हजार रुपये कर दी गई.

स्वच्छता मिशनों में अब तक बने सभी शौचालयों का सर्वे कर उनके सेप्टिक टैंक-जंक्शन चैंबर बदले जाएंगे. इसे रेट्रोफिटिंग यानी शौचालय तकनीकी सुधार नाम दिया गया है. रिट्रोफिटिंग के लिए तीन बैच में ट्रेनिंग होगी. स्टेट लेवल पर जेईएन और जेटीए की ट्रेनिंग हो चुकी है, अब जिला स्तर पर और फिर कारीगरों को ट्रेनिंग दी जाएगी. अब जल्द सर्वे कर कार्य शुरू किया जाना है.

बूंदी. जिले में स्वच्छता मिशन के तहत सरकारी अनुदान से बनाए गए शौचालयों पर दोबारा काम किया जाएगा. दरअसल, तकनीकी खामियों के चलते इन शौचालयों से पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को भारी खतरा पैदा हो सकता है.

बताया जा रहा है कि ज्यादातर शौचालयों के तकनीकी मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण आने वाले समय में लोगों के लिए बड़ा खतरा हो सकता है. इसलिए देशभर में स्वच्छता मिशन में बने शौचालयों का सर्वे कराकर उनकी खामियां दुरुस्त की जाएंगी. इसके लिए एक टीम बनाई जाएगी, जो सर्वे में फेल शौचालयों की खामियां दूर करेंगे. इसके लिए वर्ल्ड बैंक फंडिंग करेगा.

बूंदी जिले की ही बात करें तो साल 2002 से अब तक अलग-अलग स्वच्छता मिशनों में 2 लाख 42 हजार 566 शौचालय बनाए जा चुके हैं. इनमें साल 2014 से शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन में अब तक बने 1 लाख 91 हजार 169 शौचालय भी शामिल हैं.

देश में 1986 से शुरू हुए राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन से लेकर अभी तक चल रहे स्वच्छ भारत मिशन में अरबों रुपए के सरकारी अनुदान पर देशभर में करोड़ों शौचालय बनाए गए. सरकारें अनुदान देती रहीं और लोग अपने हिसाब से शौचालय बनवाते गए. अब सरकार को पता चला कि शौचालय तो गलत बन गए हैं और आनेवाले वक्त में ये पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनने वाले हैं. इन शौचालयों ने ड्रिंकिंग वाटर सोर्सेज दूषित होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है, जिसका असर आने वाले सालों में लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा. हैजा और पेचिश जैसी कई बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ जाएगा.

सरकारी अनुदान पर लोगों ने अपने स्तर पर शौचालय बनवा लिए, लेकिन तकनीकी लिहाज से ये पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं. शौचालय का पानी किसी सूरत में बाहर नहीं निकलना चाहिए. लेकिन ज्यादातर शौचालयों में ऐसा ही हो रहा है. गलत चैंबर अथवा पाइप लगाए गए, जिनसे पानी का बहाव सही नहीं होता है. सेप्टिक टैंक के साथ सोखने वाले गड्ढे नहीं बनाए गए. पानी के पाइप खुले में छोड़ दिए गए. चैंबर नहीं बनाए गए या गड्‌ढ़ों पर ढक्कन नहीं लगाया गया. केवल एक गड्ढा बनाया गया. पेयजल स्त्रोत के पास शौचालय या उसका गड्ढा बना दिया. टूटी शीट लगा दी या फिर पायदान ठीक नहीं बैठाया गया. चैंबर या पाइप सही तकनीक से नहीं बनाए-लगाए गए. मुर्गा-पीट्रेप नहीं लगाया.

बूंदी के शौचालयों में तकनीकी खामियां

बता दें कि साल 1986 से देश में स्वच्छता कार्यक्रम शुरू हुआ था. साल 2012 में निर्मल भारत अभियान के तहत अनुदान राशि 3200 रुपये थी. साल 2014 में इसका नाम बदलकर स्वच्छ भारत मिशन कर दिया गया और अनुदान राशि बढ़ाकर 12 हजार रुपये कर दी गई.

स्वच्छता मिशनों में अब तक बने सभी शौचालयों का सर्वे कर उनके सेप्टिक टैंक-जंक्शन चैंबर बदले जाएंगे. इसे रेट्रोफिटिंग यानी शौचालय तकनीकी सुधार नाम दिया गया है. रिट्रोफिटिंग के लिए तीन बैच में ट्रेनिंग होगी. स्टेट लेवल पर जेईएन और जेटीए की ट्रेनिंग हो चुकी है, अब जिला स्तर पर और फिर कारीगरों को ट्रेनिंग दी जाएगी. अब जल्द सर्वे कर कार्य शुरू किया जाना है.

Intro:बूंदी में स्वच्छता मिशन के तहत सरकारी अनुदान से बनाए गए शौचालयों को दोबारा खोदा जाएगा। क्योंकि इन शौचालयों से पर्यावरण और स्वास्थ्य को आने वाले समय में भारी खतरा पैदा हो सकता है। तकनीकी खामियों के चलते ज्यादातर शौचालय मापदंडों पर खरे नही उतरे है । देशभर में स्वच्छता मिशन में बने शौचालयों का सर्वे कराकर उनकी खामियां दुरुस्त की जाएंगी। इसके लिए एक टीम बनाई जाएगी जो सर्वे में फेल शौचालयों की खामियां दूर करेंगे। इसके लिए वर्ल्ड बैंक फंडिंग करेगा। बूंदी जिले की ही बात करें तो वर्ष 2002 से अब तक अलग-अलग स्वच्छता मिशनों में 2 लाख, 42 हजार 566 शौचालय बनाए गए। इनमें वर्ष 2014 से शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन में अब तक बने 1 लाख 91 हजार 169 शौचालय भी शामिल हैं। 




Body:देश में 1986 से शुरू हुए राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन से लेकर अभी चल रहे स्वच्छ भारत मिशन में अरबों रुपए के सरकारी अनुदान पर देशभर में करोड़ों शौचालय बनाए गए। सरकारें अनुदान देती रहीं और लोग अपने हिसाब से शौचालय बनवाते गए। अब जाकर सरकार को पता चला कि शौचालय तो गलत बन गए और आनेवाले वक्त में ये पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनने वाले हैं। वजह इनमें तकनीकी खामियां। इन शौचालयों ने ड्रिंकिंग वाटर सोर्सेज दूषित होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। जिसका असर आने वाले सालों में लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा, हैजा, पेचिश कई बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ जाएगा

सरकारी अनुदान पर लोगों ने अपने स्तर पर शौचालय बनवा लिए, पर तकनीकी लिहाज से ये पर्यावरण के अनुकूल नहीं। शौचालय का पानी किसी सूरत में बाहर नहीं निकलना चाहिए, पर ज्यादातर शौचालयों में ऐसा ही हो रहा है। गलत चैंबर अथवा पाइप लगाए गए, जिनसे पानी का बहाव सहीं नहीं होता, सेप्टिक टैंक के साथ सोखते गड्‌ढ़े नहीं बनाए गए, पानी के पाइप खुले में छोड़ दिए गए, चैंबर नहीं बनाए गए या गड्‌ढ़ों पर ढक्कन नहीं लगाया गया। केवल एक गड्‌ढ़ा बनाया गया। पेयजल स्त्रोत के पास शौचालय या उसका गड्‌ढ़ा बना दिया। टूटी सीट लगा दी या पायदान ठीक नहीं बैठाया गया। चैंबर या पाइप सही तकनीक से नहीं बनाए-लगाए गए। मुर्गा -पीट्रेप नहीं लगाया। 




Conclusion:सन् 1986 से देश में स्वच्छता कार्यक्रम शुरू हुआ था। वर्ष 2012 में निर्मल भारत अभियान और अनुदान राशि 3200 रुपए, वर्ष 2014 में इसका नाम बदलकर स्वच्छ भारत मिशन कर दिया गया और अनुदान राशि बढ़ाकर 12 हजार रुपए कर दी गई। स्वच्छता मिशनों में अब तक बने सभी शौचालयों का सर्वे कर उनके सेप्टिक टैंक-जंक्शन चैंबर बदले जाएंगे। इसे रेट्रोफिटिंग यानी शौचालय तकनीकी सुधार नाम दिया गया है। रिट्रोफिटिंग के लिए 3 बैच में ट्रेनिंग होगी। स्टेट लेवल पर जेईएन, जेटीए की ट्रेनिंग हो चुकी है, अब जिलास्तर पर और फिर कारीगरों को ट्रेनिंग दी जाएगी। अब जल्द सर्वे कर कार्य शुरू किया जाना है। 

बाईट - निज़ाम अंसारी , प्रभारी स्वच्छता मिशन
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