बूंदी. रियासत काल में बूंदी समृद्ध क्षेत्र रहा है, लेकिन आजादी के बाद से ही बूंदी जिला विकास को तरस रहा है. यहां हर क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं होने के बाद भी धरातल पर विकास नहीं हो पाया है. स्थानीय लोग आरोप लगाते रहे है कि चुने गए जनप्रतिनिधि विकास को महत्व नहीं देकर स्वयं के विकास पर फोकस करते रहे है, जिसके चलते बूंदी विकास के मामले में पिछड़ गया.
बूंदी में औद्योगिक इकाइयों की कमी, टूटी सड़कें, रोजगार के अवसरों की कमी, जगह-जगह हो रहे अतिक्रमण, बिना किसी योजना के हो रहे कार्य पिछड़े क्षेत्र की गाथा को बयां करते है. राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो बूंदी विधानसभा क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाए होने के बावजूद कोई विकास नहीं हो पाया है. उद्योगों की स्थापना करने में यहां के जनप्रतिनिधियों ने कभी रुचि नहीं दिखाई, या यूं कहें कि विकास को लेकर कभी इच्छा शक्ति ही नहीं रही. इसी कारण यह क्षेत्र पिछड़ता ही चला गया.
विधानसभा क्षेत्र का काफी बड़ा हिस्सा ग्रामीण है. गांवों में आज भी बिजली, पानी, सड़कों, विद्यालय, कॉलेज जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी नजर आती है. पर्यटन नगरी होने के बाद भी यहां पर्यटकों के लिए कोई सुविधा नहीं है. अच्छे होटलों की कमी, पैलेस ऑफ व्हील का ठहराव नहीं होना, उच्च स्तरीय सुविधा युक्त पर्यटन सूचना केंद्र का नहीं होना, आरटीडीसी होटल का बंद होना आदि वो कारक है जो बताते है कि पर्यटन के क्षेत्र में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. साथ ही विकास के प्रति यहां की जनता की उपेक्षा भी विकास नहीं होने का बहुत बड़ा कारण है.
ऐतिहासिक व वाइल्ड लाइफ पर्यटन को पंख लगने की उम्मीद : बूंदी ऐतिहासिक नगर होने के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है. यहां पर्यटन में विकास जिले के विकास का आधार बन सकता है. इस छोटे से खूबसूरत शहर में ऐतिहासिक विरासतों को देखने के लिए विश्व भर से देशी व विदेशी पर्यटकों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है. पर्यटन विकास की कड़ी में वर्ष 2022 में रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व की घोषणा की गई, जिसने वाइल्ड लाइफ पर्यटन के रूप में भी अपनी दस्तक दे दी. इस तरह वाइल्ड लाइफ पर्यटन के रूप में जिले के विकास की नई अवधारणा लिखी गई है, लेकिन यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जिले की मूलभूत आवश्यकताओं और सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है. यदि यहां पर्यटकों के अनुरूप सुविधाओं में वृद्धि हो और शहर का सुनियोजित विकास हो तो रणथंभौर से ज्यादा राजस्व जिले को प्राप्त होगा.
इस तरह बदल सकती है बूंदी की सूरत : 16 ऐसे बिंदु हैं, जिन पर काम किया जाए तो बूंदी के विकास में चार चांद लग सकते हैं. बेहतर सड़कें, अच्छी सफाई, अतिक्रमण से मुक्ति के अलावा कुछ ऐसे प्रोजेक्ट बनाए जा सकते हैं, जिन पर काम किया जाए तो बहुत कुछ बदल जाएगा. पर्यटन, हेरिटेज और इतिहास से जुड़े लोगों की राय में कुछ ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम किया जाए तो ना केवल पर्यटन बढ़ेगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और बूंदी की गिनती फिर से हेरिटेज सिटी के रूप में होने लगेगी. जिला प्रशासन और नगरपरिषद के साथ ही इस काम के लिए पूर्व राजपरिवार से जुड़े सदस्यों को भी साथ जोड़ना होगा.
- कोटा के सेवन वंडर्स की तर्ज पर बूंदी के जैतसागर या नवलसागर के लिए भी ऐसा ही कोई प्रोजेक्ट बने.
- पुरनी बाइपास को अवैध निर्माण और अतिक्रमण से मुक्त करवा कर शानदार सिटी व्यूह पॉइंट तैयार करवाया जाए.
- भीम बुर्ज से टाइगर हिल तक रोप-वे बनाया जाए.
- पैलेस ऑन व्हील्स का ठहराव बूंदी में भी किया जाए.
- सूरज छतरी तक जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाएं.
- चित्रशाला का रिनोवेशन किया जाए.
- मोतीमहल में बंद म्यूजियम को फिर से खोला जाए.
- गढ़ पैलेस, सुखमहल, रानीजी की बावड़ी, चौरासी खंबों की छतरी पर रात में रोशनी हो.
- प्रमुख चौराहों पर फव्वारे, महापुरुषों की प्रतिमाएं या जयपुर और कोटा की तर्ज पर कला-संस्कृति की झलक देती प्रतिमाएं लगे.
- रॉक पेंटिंग्स और जिले के रमणीय स्थलों के लिए पर्यटन विभाग बस चलाएं.
- गढ़ पैलेस सहित विरासतों के संरक्षण और रिनोवेशन पर काम किया जाए.
- नवलसागर, जैतसागर और प्रमुख बावड़ियों-कुंडों की सफाई पर लगातार काम हो.
- जैतसागर झील में फिर से बोटिंग और वाटर स्पोर्ट्स शुरू हो.
- शहर के पार्कों को फिर से संवारा जाए, आधुनिक बस स्टैंड बने.
- बूंदी को हेरिटेज सिटी घोषित कराया जाए.
- ऐतिहासिक स्थल नागर सागर कुंड, रानी जी की बावड़ी व अन्य पर्यटन स्थलों के आसपास से अतिक्रमण हटाया जाए.
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रोजगार सृजन हेतु औद्योगिक इकाइयों की हो स्थापना : जिलें में औधोगिक विकास की अपार संभावनाएं छिपी हुई है, इसके बावजूद इन व्यवसायियों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिल पाने से औद्योगिक इकाइयों की स्थापना नहीं हो पाई. जो इकाइयां स्थापित है, वो भी उत्तरोत्तर प्रगति पर नहीं पहुंच पाने से बंद होने की कगार पर हैं या बंद हो चुकी हैं. ऐसे में नई सरकार से आशा है कि सर्वप्रथम तो धान के कटोरा कहे जाने वाले इस क्षेत्र में राइस मिलर्स को प्रोत्साहन दिया जाए. नई राइस मिलें स्थापित करने में प्राथमिकता दी जाएं.
दूसरी ओर बरड़ क्षेत्र में निकलने वाले एक्सपोर्ट क्वालिटी सेंड स्टोन को प्रोत्साहित किया जाए. क्षेत्र में लाइमस्टोन भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, ऐसे में यहां सीमेंट इकाइयों की स्थापना की व्यापक संभावना है. पहले भी कई बार यहां सीमेंट इकाई स्थापित किए जाने की चर्चाएं चली, लेकिन इच्छाशक्ति और क्षेत्र की उपेक्षा के चलते स्थापित नहीं हो पाई. नई सरकार और नए मुख्यमंत्री से बूंदी की एक आस सीमेंट इकाई की स्थापना भी है, ताकि यहां के लाइम स्टोन का उपयोग यहीं हो सके और रोजगार भी सृजित हो सके.
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राज्य में सहकारिता क्षेत्र की पहली शुगर मिल का दर्जा प्राप्त केशवराय पाटन की शुगर मिल केवल सरकार की उदासीनता का शिकार होकर बंद हो गई, जिसके कारण जिले में गन्ने को रकबा बिल्कुल समाप्त हो गया. नई सरकार अपनी इच्छा शक्ति दिखाते हुए इस शुगर मिल को शुरू करवाएं तो रोजगार सृजन के साथ क्षेत्र में वापस गन्ने का रकबा तैयार हो सकेगा.
उच्च शिक्षण संस्थान की स्थापना : जिले में अभी मेडिकल कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज सहित गर्ल्स और बॉयज के लिए पीजी कॉलेज संचालित हो रहे हैं. साथ ही निजी क्षेत्र में नर्सिंग व शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान संचालित है, फिर भी यहां के अधिकांश छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के लिए अन्य शहरों की ओर पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं, जिसका कारण यहां के इन सस्थानों में मूलभूत संसाधनों व सुविधाओं का अभाव है. ऐसे में नई सरकार जिले के इन संसाधनों की मूलभूत आवश्यकताओं व सुविधाओं की पूर्ति करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना करवाएं ताकि यहां के छात्र-छात्राएं अन्य शहरों की ओर जाने को मजबूर नहीं हो.
रेल मार्ग का हो विकास : मुख्यालय पर कहने को रेलवे लाइन 1989 में स्थापित हो गई, लेकिन क्षेत्र में रेलवे का विकास नाम मात्र तक सीमित रहा. वर्तमान में कोटा से चित्तौड़गढ़ तक रेलवे लाइन होने से रेलवे का ज्यादा उपयोग नहीं हो पा रहा है. यदि पूर्व में करवाए गए रेलवे सर्वे के अनुरूप बूंदी से अजमेर सीधी रेलवे लाइन शुरू करवाई जाए तो यातायात भार में भी वृद्धि होगी, वहीं आवागमन के साधन भी बढ़ने के साथ देशी-विदेशी पर्यटकों की राह भी आसान होगी. वहीं रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधाओं के विकास के साथ लंबी दूरी की यात्री गाड़ियों का संचालन भी हो. साथ ही जो यात्री गाड़ियां कोटा जंक्शन पर रात्रि विश्राम के बाद रवाना होती है, उनका विश्राम बूंदी में करवा कर यहां से संचालित करवाया जाए.