बूंदी. हर साल राजस्थान में मानसून जमकर बरसता है और किसानों को पैदावार अच्छी मिल जाती है, लेकिन इस बार मानसून 1 सप्ताह की देरी से चलने के कारण किसान चिंतित है. पिछले साल 25 जून को ही मानसून की बारिश राजस्थान में शुरू हो गई थी, लेकिन इस बार जुलाई माह शुरू होने के बाद भी बारिश होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में किसान मानसून की आस लगाए बैठे हैं और दिन भर आसमान की ओर देखते हैं और मानसून का इंतजार करते हैं.
कुछ किसान अभी भी धान की रोपाई और बुवाई करने में जुटे हुए हैं, लेकिन वक्त बिल्कुल कम रह गया है और इंतजार सिर्फ आसमान से पानी का है. इस 1 सप्ताह की देरी का खामियाजा किसानों को फसल की पूरी उपज होने के बाद उठाना पड़ेगा. क्योंकि देर से पानी मिलेगा तो फसल की चमक पूरी तरह से खत्म हो जाएगी और चमक खत्म होने के साथ ही किसानों को उपज का कम दाम मिलेगा तो उसका नुकसान उठाना पड़ेगा.
कृषि विभाग ने रखा 2 लाख 33 हजार हेक्टेयर बुवाई का लक्ष्य
इन दिनों मानसून की बरसात के इंतजार में खेतों में किसानों की हलचल तेज हो गई है. बूंदी कृषि विभाग ने भी बुवाई के इस साल के लक्ष्य को निर्धारित कर दिया है. कुछ स्थानों पर काश्तकारों ने धान की रोपाई शुरू कर दी है और कुछ अभी भी रोपाई करने में जुटे हुए हैं. जैसे ही बरसात तेज होगी और मानसून की झड़ी लग जाएगी तो रोपाई में और तेजी बढ़ जाएगी.
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बीते साल के मुकाबले बुवाई का लक्ष्य करीब 20 हजार हेक्टेयर कम आंका गया है. हालांकि कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो बारिश अच्छी रहेगी तो लक्ष्य और भी बढ़ सकता है. साल 2019 में विभाग की ओर से 2 लाख 51 हजार 187 हेक्टेयर बुवाई की गई थी, जबकि इस बार विभाग ने 2 लाख 33 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य प्रस्तावित रखा है. बुवाई का लक्ष्य 15 जुलाई तक पूरा कर लिया जाना है. बूंदी जिले में हर साल धान से 1 हजार करोड़ से ऊपर का टर्नओवर मिलता है.
इस बार घटा धान का रकबा, मजदूर भी बने कारण
जिस बूंदी को धान का कटोरा कहा जाता है, उस बूंदी में इस बार धान का रकबा घट गया है. यहां हर साल बाहर से बिहारी मजदूर धान की रोपाई करने के लिए आते हैं, लेकिन लॉकडाउन और कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते इस बार बिहार के मजदूर कम आ रहे हैं. जिसके चलते जिले के किसानों ने धान के रकबे को कम करना शुरू कर दिया है. पिछले साल की बात की जाए तो पिछले साल 57 हजार 825 हेक्टेयर धान की बुवाई की गई थी, जबकि इस बार केवल 47 हजार ही धान का लक्ष्य किसानों की ओर से रखने का अनुमान विभाग की ओर से बताया गया है. जबकि सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता धान की फसल को ही होती है, जिसको लेकर किसान सबसे ज्यादा चिंतित हो रहे हैं. धान की फसल में भी आधा दर्जन प्रकार की किस्में हो ही जाती है.
किसानों ने कहा बस अब मानसून का है इंतजार
बूंदी जिले का करीब एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है. यहां हर साल बड़ी तादात में गेहूं और चावल की अच्छी पैदावार होती है और मंडी में किसानों का अंबार देखा जाता है और लाखों की तादात में बोरियां जमा हो जाती है. खरीफ की फसल का दौर चल रहा है और किसानों को इन दिनों मानसून को लेकर चिंता सताने लगी है.
किसानों की फसलें मानसून पर निर्भर
जिले के अधिकतर जगहों पर कुएं-बावड़ी और ट्यूबवेल से किसान जैसे तैसे करके अपने खेतों में धान, उड़द, सोयाबीन और मक्का की फसल की उपज कर रहे हैं. जबकि जिले के अधिकतर किसानों के पास पानी के कोई स्रोत नहीं है. वो केवल मानसून पर ही निर्भर है तो उनकी बुवाई और रोपाई में संकट आ पड़ा है. उन्होंने जैसे-तैसे कर कर पानी के टैंकरों से अपने खेतों को बीज के लिए तो तैयार कर लिया, लेकिन आगे फसल को तैयार करने के लिए पानी का इंतजार करना पड़ रहा है तो केवल उनके पास अब इंद्रदेव ही बचे हैं जो मानसून में अच्छी बारिश कर दें और उन्हें अच्छी फसल की पैदावार हो जाए.
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किसानों का कहना है कि जिले के सबसे ज्यादा किसान धान की फसल की ही उपज करते हैं. जबकि अधिकतर किसान, उड़द, सोयाबीन मक्का की फसलों की पैदावार करते हैं, यहां पानी की कमी रहती है, लेकिन धान की फसल मुनाफे दार होती है तो किसानों का हर साल रुझान इधर ही रहता है. 1 सप्ताह की देरी से चल रहे मानसून ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा.
इंद्रदेव को मनाने में जुटे किसान
बूंदी जिले के किसान इंद्रदेव को मनाने में जुटे हुए हैं और तरह-तरह के जतन भी कर रहे हैं, लेकिन रोज बूंदी में तेज हवाएं चलती है और शाम होते ही मौसम बिगड़ जाता है, लेकिन बारिश नहीं हो रही है. ऐसा ही हाल पूरे प्रदेश के किसानों का है. ऐसे में किसानों का कहना है कि जल्द से जल्द बरसात हो ताकि बूंदी जिले के किसान अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएं, देरी हुई तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा.