बूंदी. कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने बूंदी के मूर्ति कलाकरों की हालत खराब कर दी है. जिले के बड़ा नया गांव में मूर्ति का काम करने वाले मजदूरों के हाल बेहद दयनीय हो गए हैं. यहां पर मजदूर पत्थर से मूर्ति बनाने का कार्य तो कर रहे हैं, लेकिन उनकी मूर्तियों को कोई भी खरीदने के लिए नहीं आ पा रहा है.
पहले जहां उन्हें 500 रुपए से अधिक की मजदूरी मिला करती थी, वो आज 150 से 200 रुपए पर ही सिमट गई है. जिसके चलते उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है. मजदूरों ने कहा है कि सरकार हम मूर्ति कलाकारों के लिए कुछ घोषणा करें और कोई योजना लेकर आए ताकि जब भी कभी इस तरीके की आपदा देश में आए तो हम सरकार की उस योजना का लाभ उठा ले.
इस गांव में बनती हैं हजारों मूर्तियां
बता दें कि बूंदी शहर से 20 किलोमीटर दूर बड़ा नयागांव है. जहां पर बड़ी मात्रा में पत्थर की मूर्ति बनाने का कार्य किया जाता है. यहां पर लाल पत्थर और मकराना के पत्थर से मूर्ति को आकार दिया जाता है. भगवान की प्रतिमा से लेकर इंसानी रूपी प्रतिमा तक बनाया जाता है.
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इसके साथ विभिन्न तरीके के पशुओं की मूर्ति, बड़े-बड़े दरवाजे, मेराफ, गुंबद सहित कई प्रकार की कलाकृतियों को यह मजदूर 10 से 15 दिनों में बनाकर बेच देते हैं. यहां पर हजारों मजदूर सुबह शाम पत्थरों पर शिल्पी बनाने का काम करते हैं और इसी मजदूरी से उनका घर का चलता है.
दिनभर करते है ग्राहक का इंतजार
दिनभर पत्थरों के बीच रहने वाले मजदूरों की हालत सबसे ज्यादा खराब हो जाती है. यहां पर मजदूरों का धंधा पहले ही आधुनिकता में फीका पड़ रहा था और जैसे ही लॉकडाउन लगा तो मूर्तियों की बिक्री कम हो गई और ऐसा वक्त आ गया कि आज कोई मूर्ति खरीदने वाला यहां नहीं पहुंच रहा है.
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मजदूर बताते हैं कि किसी समय यहां पर रोज कई ग्राहक मूर्तियों का ऑर्डर देने के लिए आते थे, लेकिन वर्तमान में इनकी आंखें ग्राहकों को देखने के लिए तरस गई है. कोई भी ग्राहक ना तो ऑर्डर देने के लिए आता है ना ही इनके पास रखी हुई मूर्ति को खरीदने के लिए, ऐसे में यह मजदूर जिन मालिकों के पास काम करते हैं उन मालिकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. मजदूर मांग करते हैं कि एक ऐसी योजना हमारे लिए बनाई जाए जिससे ऐसे काल में हमारी रोजी रोटी पर संकट नहीं आए और हम हमारे घर का खर्च चला सके.
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कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन में हर कोई परेशान रहा, लेकिन मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा परेशान दिखा. यह मजदूर पहले ही परेशान थे और लॉकडाउन ने उनके जख्म में नमक डालने का काम कर दिया. बूंदी नहीं देश के मूर्ति कलाकार लंबे समय से विभिन्न प्रकार की मांग सरकार से करते हुए आए हैं लेकिन आज दिन तक उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया.