बीकानेर. भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी पर्व मनाया जाता है. ऋषि पंचमी जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि इस दिन ऋषियों से जुड़ा महत्व है. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू इस दिन की महत्व बनाते हुए कहते हैं कि पूरे साल में हुई किसी भी प्रकार की जाने अनजाने की गलती और पाप से छुटकारा पाने के लिए भी इस दिन पूजन करना चाहिए.
नदी तालाब में पूजा : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि इस दिन तालाब में पानी में खड़े रहकर और बाद में किनारे पर आकर कई घंटे तक अलग-अलग प्रकार से पूजा अर्चना की जाती है और इस दिन भगवान सूर्य नारायण की भी पूजा करने का विधान है. भगवान सूर्यनारायण की पूजा मध्यान में की जाती है. किराडू कहते हैं कि पवित्र नदी या तालाब में मां गंगा का पूजन होता है और उसके बाद हिमाद्रि संकल्प होता है. कहते हैं कि यह संकल्प किसी भी प्रकार की ज्ञात और अज्ञात गलती और पाप की निवृति के लिए किया जाता है और उसके बाद दसविध स्नान होता है.
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सप्तऋषि पूजा : किराडू कहते हैं कि यह दिन सप्तऋषियों को समर्पित है. ऋषि मुनि वशिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र, अत्रि, जमदग्नि, गौतम और भारद्वाज हैं. इनका स्मरण करते हुए ऋषि पंचमी को भगवान वेद नारायण की पूजा की जाती है. पूजा के दौरान सप्तर्षियों की पूजन के साथ ही तर्पण किया जाता है और यज्ञोपवित की पूजा होती है. फिर पूरे वर्ष भर उपयोग में ली जाने वाली यज्ञोपवित कि आज पूजा करनी चाहिए.
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रक्षाबंधन पर्व भी आज : वैसे तो रक्षाबंधन का पर्व सावन माह के अंतिम दिन ही मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज की साथ ही पारीक समाज और श्रीमाली समाज कुछ जातियों में ऋषि पंचमी को ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है. उस दिन ऋषियों को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है.