बीकानेर. भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को वैष्णव भक्त भगवान श्रीकृष्ण की बल्लभा राधिका का जन्मोत्सव मनाते हैं. प्रात:काल स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेने के बाद श्री राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति का विधिवत् षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. श्रीविग्रही का सब प्रकार से श्रृंगार करके उनके सम्मुख भजन-कीर्तन किया जाता है. रात्रि में भी राधाजी की कथा का श्रवण तथा वाचन किया जाना चाहिए. इसमें श्री राधिकाजी का गुणगान व कीर्तन करने का विधान है. सम्पूर्ण दिन उपवास तथा रात में फलाहार करना चाहिए.
श्रीमहालक्ष्मी व्रत की शुरुआत : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू बताते है कि राधाष्टमी के अलावा इस दिन का एक और महत्व है. इस दिन से श्रीमहालक्ष्मी व्रत की शुरुआत होती है. 16 दिनों तक चलने वाला ये व्रत अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक होता है.
जानिए विधान और महत्व : भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से आश्विन कृष्ण अष्टमी तक महालक्ष्मी का व्रत भाद्र शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक पूरे सोलह दिनों का होता है. शास्त्रों, पुराणों में इस व्रत का अधिक महत्त्व है. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू बताते है कि इसका अनुष्ठान करने वाले अपनी कामनाओं को ही नहीं, किन्तु धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तक प्राप्त कर लेते हैं. जिस प्रकार तीर्थों में प्रयाग, नदियों में गंगा नदी है उसी प्रकार सब व्रतों में यह सर्वश्रेष्ठ व्रत माना गया है.
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इस विधान से करें ये व्रत : किराडू कहते हैं कि इसका नियम यह है कि भाद्र शुक्ल अष्टमी को प्रातः काल उठकर सोलह बार हाथ मुंह धोकर स्नान करने के बाद ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकशर्मा (वर्मा गुप्तो) वाहं ममोपरि श्रीमहालक्ष्मीदेवीप्रसवर्ष षोडशग्रन्थि-युक्तंदोरकपूजनं धारणञ्च करिष्ये. ऐसा संकल्प कर सोलह धागों वाला एक सूत लेकर उसमें सोलह गाँठ लगावें. फिर इसे महालक्ष्मीजी के पास रख कर धूप-दीप आदि से ॐ महालक्ष्म्यै नमः इस नाम मन्त्र द्वारा षोडशोपचार पूजन करने के बाद अपने दाहिने हाथ में बांध लें. इसके बाद लक्ष्मीजी की पवित्र कथा सुनें या सुनाएं. इसी प्रकार सोलह दिनों तक लक्ष्मी जी की कथा सुनें और एक बार फलाहार करके सोलह दिन व्यतीत करें. इसके बाद सोलहवें दिन लक्ष्मीजी के चित्र या मूर्ति की पूजा करें और हाथ में बाँधे हुए धागे को खोलकर लक्ष्मीजी के पास रख दें. पुनः आटे के सोलह दीपक बना कर दक्षिणा के साथ बाह्मणों को दान कर दें. अन्तिम दिन रात्रि में जागरण करें और व्रत को पूर्ण करें.
पौराणिक कथा : एक राजा की दो रानियाँ थीं. बड़ी रानी को अनेक और छोटी रानी को एक ही पुत्र था. बड़ी रानी ने एक दिन माटी का हाथी बनाकर पूजन किया, किन्तु छोटी रानी इससे वंचित रहने के कारण उदास हो गई. उसके लड़के ने मां को उदास देखकर इन्द्र से ऐरावत हाथी मांग लिया और अपनी मां से कहा कि तुम वास्तविक हाथी की पूजा तुम करो. रानी ने ऐरावत की पूजा की, जिसके प्रभाव से उसका पुत्र बड़ा विख्यात राजा हुआ. इस कथा के अनुसार कई लोग हाथी की पूजा करते हैं. इस व्रत का उद्यापन सोलहवें वर्ष में होता है.