बीकानेर. सनातन धर्म में आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या गुरु पूजन दिवस के रूप में मनाने की परंपरा रही है. यह दिवस भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा और उसके महत्व को दर्शाता है. गुरु मानव जीवन में शिक्षा और उपदेश के माध्यम से अध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करता है. यह दिवस महर्षि वेदव्यास के जन्मस्मृति में व्यास पूर्णिमा भी कहलाता है. महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु माना जाता है. उन्हें श्रीमद्भागवतगीता, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा और पुराणों का रचियता माना जाता है. गुरु पूर्णिमा का बौद्ध धर्म में भी विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ, उत्तर प्रदेश में पहला धम्म या धार्मिक उपदेश दिया था.
आज है गुरु पूर्णिमा : इस बार पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 2 जुलाई की रात्रि 8:21 से होगा लेकिन 3 जुलाई को उदया तिथि होने के चलते यह तीन जुलाई को ही मानी जाएगी. इस दिन विशेष आयोजन होंगे और गुरु शिष्य परंपरा को मानने वाले अपने गुरुओं का पूजन करेंगे. इसलिए कहा जाता है कि कर्ता करे न कर सके गुरु करे सो होय तीन लोक छह खंड में गुरु से बड़ा ना कोई.
बन रहे हैं विशेष योग : आज सोमवार को गुरु पूर्णिमा में कुछ विशेष योग का भी सहयोग इस बार बनता हुआ नजर आ रहा है. ज्योतिर्विद डॉ आलोक व्यास कहते हैं कि इस बार ब्रह्म, इंद्र व बुधादित्य जैसे विशेष योग भी बन रहे हैं. जो कि नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं.
ऐसे करें पूजन : गुरु पूर्णिमा पर पूजन विधि- गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात अपने गुरु का पूजन करना चाहिए. उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए. यदि कोई गुरू नहीं बनाया है तो महर्षि वेद व्यास जी की स्मृति में या उनकी प्रतिमा के सामने रोली, चंदन, पुष्प, फल और प्रसाद अर्पित कर गुरु मंत्र का जाप करें. इस दिन महर्षि वेदव्यास के अतिरिक्त धार्मिक व शैक्षणिक गुरुओं की उपासना और उनसे आशीर्वाद लेने की परंपरा भी भारतीय संस्कृति में रही है.