बीकानेर. शारदीय नवरात्रि में पांचवां दिन जगतजननी मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की आराधना होती है. मां स्कंदमाता सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करने वाली हैं. मां की पूजा से हर क्षेत्र में विजय मिलती है और जीवन में आई हताशा को दूर कर खुशियों का संचार होता है. जो लोग निःसंतान होते हैं और संतान की कामना करते हैं, उन्हें मां स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए.
मां पार्वती का स्वरूप है मां स्कंदमाता : पांचागकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि भगवान कार्तिकेय का नाम स्कंद है और मां को अपने बेटे के नाम से पुकारा जाना प्रिय है. इसलिए इनका नाम स्कंदमाता के रूप में प्रचलित हुआ. प्रथम दिन माता शैलपुत्री का पूजन होता है और उन्हें पार्वती का स्वरूप माना जाता है. पांचवें दिन स्कंदमाता का पूजन होता है और वह भी पार्वती का ही स्वरूप है.
मां को कुमुद पुष्प पसंद : पंडित किराडू कहते हैं कि वैसे तो पूजन में प्रयुक्त होने वाले सभी प्रकार के पुष्पों का अपना महत्व है. देवी को सभी प्रकार के पुष्प अर्पित किए जाते हैं, लेकिन यदि शास्त्र सम्मत बात करें तो स्कंदमाता के पूजन में कुमुद के पुष्प से पूजन-अर्चन और मंत्र-अर्चन करना उत्तम होता है. कुमुद पुष्प देवी को अति प्रिय है.
ऋतुफल में केला चढ़ाएं : पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि शुद्ध मन से और अपने सामर्थ्य अनुसार देवी को लगाए गए भोग का फल मिलता है. देवी को भी वो भोग स्वीकार होता है. पसंद अनुसार भोग में देवी को खीर, मालपुआ का भोग लगाना श्रेयस्कर होता है. इसका उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी मिलता है. वहीं, ऋतुफल में मां स्कंदमाता को केला ऋतुफल के रूप में अर्पित करना चाहि. साधक को भी पूजा करते समय इन बातों का विशेष तौर पर ख्याल रखना चाहिए.