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राजस्थान में निजी स्कूलों को 100 फीसदी फीस दिए जाने वाले SC के फैसले पर अभिभावकों में रोष, आदेश बदलने की अपील

राजस्थान में निजी विद्यालयों में फीस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट स्कूल को 100 फीसदी फीस देने की इजाजत दी है, जिसके कारण प्रदेशभर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर अभिभावकों में रोष व्याप्त हो गया है. निजी स्कूलों में फीस को लेकर हमेशा अभिभावक और स्कूल प्रशासन आमने-सामने हुआ है, लेकिन कोरोना काल के दौरान बंद रहे स्कूलों में फीस को लेकर चल रहे विवाद के चलते कपड़ा नगरी भीलवाड़ा में भी अभिभावकों ने अपना विरोध जताया. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए अभिभावकों का दर्द छलक पड़ा. अभिभावकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूल के लिए जो 100 फीसदी फीस देने का जो फैसला लिया है, वह एक तरफा है, इसमें अभिभावक की ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया गया है.

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Published : Feb 12, 2021, 11:54 AM IST

Recovery of fees of private school, राजस्थान समाचार
SC के फैसले पर अभिभावकों में रोष

भीलवाड़ा. राजस्थान में निजी विद्यालयों में फीस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट स्कूल को 100 फीसदी फीस देने की इजाजत दी है, जिसके कारण प्रदेशभर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर अभिभावकों में रोष व्याप्त हो गया है. निजी स्कूलों में फीस को लेकर हमेशा अभिभावक और स्कूल प्रशासन आमने-सामने हुआ है, लेकिन कोरोना काल के दौरान बंद रहे स्कूलों में फीस को लेकर चल रहे विवाद के चलते कपड़ा नगरी भीलवाड़ा में भी अभिभावकों ने अपना विरोध जताया.

निजी स्कूलों के 100 फीसदी फीस वसूलने के आदेश पर क्या बोले अभिभावक

अभिभावक संघ के जिलाध्यक्ष सुनील कोठारी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश हाल ही में आया है, वह सरासर गलत है. कोरोना काल के बाद अभी भी अभिभावक आर्थिक बोझ के तले दबा हुआ है, अभी तक अभिभावक इस आर्थिक तंगी से उबर नहीं पाया है. उन्होंने कहा कि लॉक डाउन के समय अनावश्यक खर्चा हुआ है, ऑनलाइन क्लासेस में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर जैसे ऑनलाइन गैजेट खरीदना और उनका इंटरनेट बिल के साथ ही विभिन्न प्रोजेक्ट में जो खर्चा हुआ है, जो अभी तक अभिभावक उबर नहीं पाया है. इसी के बाद अब स्कूल शुरू होने के साथ अभिभावक को दोबारा खर्चा करके स्कूल को पूरी फीस चुकानी होगी.

यह भी पढ़ेंः सदन में फीस बिल लाकर अभिभावकों को राहत दे सरकार: वासुदेव देवनानी

उन्होंने सवाल किया कि जहां एक तरफ केंद्र और राज्य सरकार ने कोरोना काल के बाद हर क्षेत्र में राहत पहुंचाई है, तो शिक्षा की ओर अभिभावक को कोई राहत क्यों नहीं दी गई? जब निजी स्कूल को मान्यता राज्य सरकार ही देती है तो फीस का निर्धारण भी राज्य सरकार को ही करना है. हाईकोर्ट ने भी कोविड 19 पीरियड के दौरान इसमें राहत देते हुए 60 से 70 फीसदी स्कूल फीस देने का आदेश दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तो पूरे 100 फीसदी ही फीस देने का आदेश दे दिया है. ऐसे में अब अभिभावक स्कूल की फीस कैसे चुकाये. हमारा तो यह मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक पक्ष की ओर देखते हुए आदेश फरमाया है.

वहीं, दूसरी ओर अभिभावकों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हमारे लिए चौंकाने वाला है, क्योंकि ऑनलाइन क्लासेस में ही हमारा बहुत खर्चा हो गया है, तो अब अभिभावक कहां से रुपए जुटाकर पूरी फीस देगा. हमारी सुप्रीम कोर्ट से यही अपील है कि 100 फीसदी फीस का आदेश बदलकर 50 फीसदी करके अभिभावक को राहत प्रदान की जाए.

अभिभावक शिक्षक महिला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया हुआ है, यह एक पक्ष को सुनते हुए फैसला लिया गया है, क्योंकि मैं खुद एक निजी स्कूल की शिक्षिका हूं और मैं पिछले मार्च महीने से विद्यालय में नहीं गई हूं. हमे स्कूल से निकाल दिया गया था. यहां तक कि निजी स्कूलों ने भी स्टाफ को आधा कर दिया है और बचे हुए शिक्षक की सैलरी (भुगतान) भी 30 फीसदी कर दिया है, जब स्कूल में स्टाफ पूरा नहीं गया, ना स्कूल की बसें चलीं, ना ही स्कूलों में कोई मेंटेनेंस जैसा कार्य हुआ तो ऐसे में 100 फीसदी फीस देने का औचित्य क्या रहेगा?

यह भी पढ़ेंः निजी स्कूल फीस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजस्थान सरकार अध्ययन करवा रही है: डोटासरा

एक अभिभावक का कहना था कि कोरोना महामारी के दौरान जहां कई लोगों की नौकरी चली गई और कई लोग बेरोजगार हो गए और बहुत लोगों का तो बिजनेस ठप हो गया, ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के बाद अब 100 फीसदी फीस देना एक बेरोजगार व्यक्ति के लिए कैसे संभव होगा. केंद्र सरकार और राज्य सरकार जहां बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का स्लोगन चला रही हैं, तो एक आम आदमी निजी स्कूल की 100 फीसदी फीस कैसे भर पाएगा. हमारी सुप्रीम कोर्ट से यही अपील है कि अभिभावक को राहत प्रदान करते हुए नया आदेश जारी किया जाए.

भीलवाड़ा. राजस्थान में निजी विद्यालयों में फीस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट स्कूल को 100 फीसदी फीस देने की इजाजत दी है, जिसके कारण प्रदेशभर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर अभिभावकों में रोष व्याप्त हो गया है. निजी स्कूलों में फीस को लेकर हमेशा अभिभावक और स्कूल प्रशासन आमने-सामने हुआ है, लेकिन कोरोना काल के दौरान बंद रहे स्कूलों में फीस को लेकर चल रहे विवाद के चलते कपड़ा नगरी भीलवाड़ा में भी अभिभावकों ने अपना विरोध जताया.

निजी स्कूलों के 100 फीसदी फीस वसूलने के आदेश पर क्या बोले अभिभावक

अभिभावक संघ के जिलाध्यक्ष सुनील कोठारी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश हाल ही में आया है, वह सरासर गलत है. कोरोना काल के बाद अभी भी अभिभावक आर्थिक बोझ के तले दबा हुआ है, अभी तक अभिभावक इस आर्थिक तंगी से उबर नहीं पाया है. उन्होंने कहा कि लॉक डाउन के समय अनावश्यक खर्चा हुआ है, ऑनलाइन क्लासेस में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर जैसे ऑनलाइन गैजेट खरीदना और उनका इंटरनेट बिल के साथ ही विभिन्न प्रोजेक्ट में जो खर्चा हुआ है, जो अभी तक अभिभावक उबर नहीं पाया है. इसी के बाद अब स्कूल शुरू होने के साथ अभिभावक को दोबारा खर्चा करके स्कूल को पूरी फीस चुकानी होगी.

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उन्होंने सवाल किया कि जहां एक तरफ केंद्र और राज्य सरकार ने कोरोना काल के बाद हर क्षेत्र में राहत पहुंचाई है, तो शिक्षा की ओर अभिभावक को कोई राहत क्यों नहीं दी गई? जब निजी स्कूल को मान्यता राज्य सरकार ही देती है तो फीस का निर्धारण भी राज्य सरकार को ही करना है. हाईकोर्ट ने भी कोविड 19 पीरियड के दौरान इसमें राहत देते हुए 60 से 70 फीसदी स्कूल फीस देने का आदेश दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तो पूरे 100 फीसदी ही फीस देने का आदेश दे दिया है. ऐसे में अब अभिभावक स्कूल की फीस कैसे चुकाये. हमारा तो यह मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक पक्ष की ओर देखते हुए आदेश फरमाया है.

वहीं, दूसरी ओर अभिभावकों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हमारे लिए चौंकाने वाला है, क्योंकि ऑनलाइन क्लासेस में ही हमारा बहुत खर्चा हो गया है, तो अब अभिभावक कहां से रुपए जुटाकर पूरी फीस देगा. हमारी सुप्रीम कोर्ट से यही अपील है कि 100 फीसदी फीस का आदेश बदलकर 50 फीसदी करके अभिभावक को राहत प्रदान की जाए.

अभिभावक शिक्षक महिला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया हुआ है, यह एक पक्ष को सुनते हुए फैसला लिया गया है, क्योंकि मैं खुद एक निजी स्कूल की शिक्षिका हूं और मैं पिछले मार्च महीने से विद्यालय में नहीं गई हूं. हमे स्कूल से निकाल दिया गया था. यहां तक कि निजी स्कूलों ने भी स्टाफ को आधा कर दिया है और बचे हुए शिक्षक की सैलरी (भुगतान) भी 30 फीसदी कर दिया है, जब स्कूल में स्टाफ पूरा नहीं गया, ना स्कूल की बसें चलीं, ना ही स्कूलों में कोई मेंटेनेंस जैसा कार्य हुआ तो ऐसे में 100 फीसदी फीस देने का औचित्य क्या रहेगा?

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एक अभिभावक का कहना था कि कोरोना महामारी के दौरान जहां कई लोगों की नौकरी चली गई और कई लोग बेरोजगार हो गए और बहुत लोगों का तो बिजनेस ठप हो गया, ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के बाद अब 100 फीसदी फीस देना एक बेरोजगार व्यक्ति के लिए कैसे संभव होगा. केंद्र सरकार और राज्य सरकार जहां बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का स्लोगन चला रही हैं, तो एक आम आदमी निजी स्कूल की 100 फीसदी फीस कैसे भर पाएगा. हमारी सुप्रीम कोर्ट से यही अपील है कि अभिभावक को राहत प्रदान करते हुए नया आदेश जारी किया जाए.

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