भरतपुर. भरतपुर जिले के 22 गांव वर्षों पहले मीठे पानी के लिए दर-दर भटकते थे. इन गांव के आसपास कहीं भी मीठा पानी का स्रोत नहीं था. हर तरफ खारा पानी था. लेकिन 'बूंद-नीर' प्रोजेक्ट के तहत इन गांव में तैयार किए गए रेन वाटर हार्वेस्टिंग मॉडल्स ने आज इन गांव की तस्वीर बदल दी है.
अब ना केवल इन गांव के लोगों को बल्कि इनके पालतू मवेशियों को भी मीठा पानी आसानी से उपलब्ध हो पा रहा है. सोसायटी का दावा है कि इन 22 गांव में हर वर्ष रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से 131 मिलियन लीटर वर्षाजल संग्रहित किया जा रहा है.
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इन गांवों में तैयार किए रेन वाटर हार्वेस्टिंग मॉडल
भारत पेट्रोलियम कॉ. लि. के 'बूंद-नीर' प्रोजेक्ट के तहत भरतपुर जिले के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के आसपास बसे 22 गांव में रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर काम किया गया. सबसे पहले चकरामनगर गांव में वाटर हार्वेस्टिंग के तहत पोखर और एक कुआं का निर्माण कराया गया. राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री की डॉ. सरिता मेहरा ने बताया कि आज मीठे पानी का यह कुआं पूरे गांव के लिए जीवनदाई बना हुआ है. इसी तरह क्षेत्र के कुम्हा, खोखर, सिंघी तोड़ा, नाटो का नगला, रामनगर, नगला बंजारा चोखा, नसवारिया, ऊंचा गांव, बंजी, नगला सह, बंजारा नगला समेत कुल 22 गांव में वाटर हार्वेस्टिंग के तहत मीठे पानी के स्रोत तैयार किए गए.
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25 हजार लोग, 32 हजार पशु हो रहे लाभान्वित
डॉ. सरिता मेहरा ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के तहत 22 गांव में तैयार किए गए पोखर, कुएं और नलकूपों के माध्यम से गांव के करीब 25 हजार लोगों को मीठा पानी मिल रहा है. साथ ही करीब 30 हजार पालतू मवेशियों को भी मीठा पानी आसानी से उपलब्ध हो पा रहा है. साथ ही हर वर्ष 131 मिलियन लीटर वर्षा जल भी बचा रहे हैं.
चंबल की पाइप लाइन से घट गया कुआं का उपयोग
कई वर्ष पहले गांव में दूर-दूर तक मीठा पानी नहीं था. लेकिन जब से वाटर हार्वेस्टिंग के तहत गांव में पोखर और कुआं का निर्माण किया गया. तब से पूरे गांव को पीने के लिए मीठा पानी उपलब्ध होने लगा है. साथ ही गांव के मवेशियों के लिए भी मीठे पानी की समस्या से निजात मिल गई है. चक रामनगर निवासी सुरजीत सिंह ने बताया कि पिछले साल सरकार की ओर से गांव में चंबल पानी की पाइप लाइन भी डाल दी गई है. इससे अब लोग कुएं के पानी का इस्तेमाल कम करने लगे हैं. हालांकि, अभी भी गांव का बहुत बड़ा वर्ग कुएं के पानी से ही प्यास बुझा रहा है.
गौरतलब है कि भरतपुर जिले के कई गांव में मीठे पेय जल की समस्या बनी हुई है. इसी को देखते हुए सोसायटी की ओर से भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रोजेक्ट के तहत 22 गांवों में वर्षा जल को बचाकर मीठे पानी के स्रोत विकसित किए गए. यह सोसायटी भरतपुर जिले के सेवर ब्लॉक में बीते करीब 10 वर्षों से वाटर हार्वेस्टिंग पर लगातार काम कर रही है.