भरतपुर. उत्तर भारत के प्रमुख ज्ञान के भंडार के रूप में पहचान रखने वाली भरतपुर की 112 साल पुरानी हिंदी साहित्य समिति पर अब एक बार फिर नीलामी की तलवार लटक रही है. एक तरफ तो सरकार हिंदी को बढ़ावा देने की बात करती है. वहीं, सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से हिंदी साहित्य समिति वर्षों से बजट की तंगी झेल रही है.समिति में 450 वर्ष से भी पुरानी बेशकीमती 1500 पांडुलिपियां और तमाम साहित्य सुरक्षित है. आजादी की लड़ाई के समय भी समिति का महत्वपूर्ण योगदान रहा था. समिति के कर्मचारियों को वर्षों से वेतन नहीं मिलने की वजह से अब न्यायालय ने नीलामी के लिए नोटिस भेजा है. अब देखना यह है कि वर्तमान सरकार इस ज्ञान के भंडार को बचाएगी या नीलाम होने देगी.
हिंदी साहित्य समिति के क्लर्क त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि न्यायालय की ओर से नीलामी का नोटिस चस्पा किया गया है. कोर्ट ने नीलामी की तारीख 16 जनवरी तय की है. यदि उससे पहले 1 करोड़ 11 लाख, 94,942 रुपए अदा नहीं किए गए तो हिंदी साहित्य समिति की नीलामी कर दी जाएगी.
इसलिए नीलामी का नोटिस: त्रिलोकीनाथ ने बताया कि हिंदी साहित्य समिति में कल 6 कर्मचारी कार्यरत थे, जिनमें से चार कर्मचारी सेवानिवृत्ति हो चुके हैं. वर्तमान में दो कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनको वर्ष 2003 से वेतन नहीं दिया गया था, जिसकी वजह से कर्मचारियों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी. पिछली कांग्रेस सरकार ने हिंदी साहित्य समिति के लिए 5 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की थी, लेकिन वो बजट भी नहीं मिला. हालांकि, कांग्रेस सरकार ने दो कर्मचारियों को वर्ष 2003 से अगस्त 2019 तक का आंशिक वेतन न्यायालय के माध्यम से दे दिया था. समिति को अब राज्य सरकार ने अपने अधीन ले लिया है, लेकिन फिर भी अभी तक कर्मचारियों का बकाया वेतन व अन्य कार्यों/जिम्मेदारियों के लिए बजट उपलब्ध नहीं कराया गया है, जिसकी वजह से न्यायालय ने नीलामी के लिए नोटिस जारी किया है.
450 वर्ष पुरानी पांडुलिपियां: हिंदी साहित्य समिति की स्थापना 13 अगस्त 1912 को पूर्व राजमाता मांजी गिर्राज कौर की प्रेरणा से की गई थी. समिति की जिस समय शुरूआत की गई , उस समय शहर के ही लोगों ने अपने घरों से पांच पुस्तक लाकर यहां पर रखी थी. बाद में धीरे धीरे समिति का विस्तार होता गया और उत्तर भारत का प्रमुख पुस्तकालय बन गया. हिंदी साहित्य समिति पुस्तकालय में फिलहाल 44 विषयों की 33,363 पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक बेशकीमती पांडुलिपियां शामिल हैं. समिति में 44 विषयों की पुस्तक हैं, जिनमें वेद, संस्कृत, ज्ञान, उपनिषद, कर्मकांड, दर्शन शास्त्र, तंत्र मंत्र, पुराण, प्रवचन, रामायण, महाभारत, ज्योतिष, राजनीति शास्त्र, भूदान, अर्थशास्त्र, प्रश्न शास्त्र, पर्यावरण, ऋतिक ग्रंथ, काव्य, भूगोल, विदेशी इतिहास और भारतीय इतिहास समेत तमाम विषय शामिल हैं.
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त्रिलोकीनाथ ने बताया कि वर्ष 1927 में हिंदी साहित्य समिति में प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ था. उसमें राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर भी यहां पर आए थे. इतना ही नहीं यहां पर राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर के अलावा मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मोरारजी देसाई, डॉ राममनोहर लोहिया, रूस के हिंदी विद्वान बारान्निकोव और पाकिस्तानी नाटककार अली अहमद भी आ चुके हैं. गौरतलब है कि वर्षों से हिंदी साहित्य समिति आर्थिक तंगी झेल रही है. समिति की बेहतरी के लिए वर्षों से कोई बजट नहीं मिला. सरकार की ओर से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं की गई. ऐसे में अब यह हिंदी साहित्य समिति अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है. कांग्रेस सरकार ने इसके लिए 5 करोड़ रुपए की घोषणा भी की थी लेकिन वो बजट भी नहीं मिला.