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SPECIAL : भरतपुर में खेतों पर 'जंगली' घात...सर्द रातों में रखवाली को मजबूर किसान

विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के चारों तरफ बसे 19 गांव के किसान परेशान हैं. उनके खेतों पर मुसीबत का ऐसा साया है जिसने किसानों की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दिया है. मजबूरी ये है कि सर्दी हो या गर्मी, दिन-रात इन किसानों को खेतों की रखवाली करनी पड़ती है. पढ़िए यह खास रिपोर्ट...

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फसलों को चौपट कर रहे हैं केवलादेव नेशनल पार्क के जंगली जानवर
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Published : Dec 10, 2020, 10:54 PM IST

भरतपुर. जिले के केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान से सटे गांवों के किसान परेशान हैं. जंगली जानवर उनकी फसलों को चौपट कर देते हैं. किसानों को सर्द रातों में भी खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है. इलाके के 19 गांवों का यही हाल है. रात दिन पहरा देने के बावजूद वन्यजीव फसलों में भारी नुकसान पहुंचा देते हैं. नुकसान झेल रहे किसानों को न तो वन विभाग की ओर से कभी कोई मुआवजा दिया जाता है और न ही वन्यजीवों को केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की परिधि में सीमित रखने की कोशिश की जाती है.

फसलों को चौपट कर रहे हैं केवलादेव नेशनल पार्क के जंगली जानवर

24 घंटे करते हैं रखवाली

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की तारबंदी से सटे बरसो गांव में रहने वाले किसान विशंभर ने बताया कि उद्यान से निकलने वाले वन्यजीव जिनमें नीलगाय, रोज, बंदर आदि फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. हालात ये हैं कि दिन-रात फसलों की रखवाली करनी पड़ती है. तब जाकर कुछ पैदावार हो पाती है. बावजूद इसके फसलों में नुकसान झेलना पड़ता है.

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दिनभर किसान जंगली जानवरों को भगाते हैं

कभी नहीं मिला मुआवजा

वहीं किसान दरब सिंह ने बताया कि फसलों की रखवाली के लिए रात भर अलाव जलाकर चौकीदारी करनी पड़ती है. फिर भी मौका पाकर वन्यजीव फसलों में नुकसान पहुंचा जाते हैं. फसलों में होने वाले नुकसान के लिए कभी भी वन विभाग या सरकार की ओर से किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया.

पढ़ें- सवाई माधोपुर : खेत पर रखवाली कर रहा था युवक...झाड़ियों में छुपे बघेरे ने अचानक किया हमला

छोटी पड़ रही दीवार, जुर्माने का भी डर

किसान हरिओम ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की दीवार वन्यजीवों के हिसाब से नीची है. ऐसे में वन्यजीव आसानी से दीवार फांद कर खेतों तक पहुंच जाते हैं. किसान जब भी वन्यजीवों को भगाते हैं या उन्हें खेतों में आने से रोकने का प्रयास करते हैं तो वन विभाग के अधिकारियों की ओर से किसानों को जुर्माने का डर भी दिखाया जाता है. वहीं विभाग की ओर से मुआवजा तो कभी दिया ही नहीं गया. हरिओम ने बताया कि वन्यजीवों का आतंक इतना है कि किसान 24 घंटे अपने खेतों की रखवाली करते हैं. साथ ही खेतों के चारों तरफ तारबंदी भी करवा रखी है. लेकिन कई बार वन्यजीव उनको तोड़कर भी खेतों में पहुंचा जाते हैं. कुछ किसानों ने अपने खेतों के चारों तरफ तारबंदी के साथ ही चमकीले प्लास्टिक के थैले भी लगा दिए हैं, कभी कभी ये जुड़ाग काम कर जाता है लेकिन हमेशा यह कारगर नहीं होता.

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खेतों की तारबंदी से भी नहीं हो रहा कोई फायदा

घना के आस-पास के 19 गांव प्रभावित

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान के चारों तरफ करीब 29 वर्ग किलोमीटर में चारदीवारी है. जिसके आसपास करीब 19 गांव बसे हुए हैं. इन गांवों में जाटौली घना, बरसो, घासोल, खोरी का नगला, बहनेरा, दारापुर, हगापुर, रामनगर, चकरामनागर, बंजारे का नगला आदि गांव शामिल हैं. इन 19 गांवों में करीब 40 हजार बीघा कृषि भूमि है.

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फसलों को चौपट कर रहे हैं केवलादेव नेशनल पार्क के जंगली जानवर

सरकार किसानों को दे मुआवजा

भरतपुर के आरडी गर्ल्स कॉलेज के प्राणी शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एमएम त्रिगुणायत का कहना है कि केवलादेव घना नेशनल पार्क से जंगली सूअर और नीलगाय जैसे जंगली जानवरों का आस-पास के खेतों में आना लाजिमी है, यहां डैम का कैचमेंट एरिया करीब 36 मील का है, सितंबर में डैम खाली हो जाता है और रबी की फसलों में मोठ-मटर बोया जाता है. वन्य जीवों को चरने के लिए यह भाता है इसलिए वे अपने इलाके से निकलकर खेतों की तरफ आ जाते हैं. उन्होंने कहा कि वन्यजीवों से होने वाले नुकसान की भरपाई के नियम तो बने हुए हैं, अगर नहीं हैं तो सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए.

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घना के आसपास के खेतों में बंदर मचाते हैं उत्पात

पढ़ें- अलवर: सरिस्का में गांवों के विस्थापन को लेकर संभागीय आयुक्त ने दिए निर्देश

ये हो सकता है समाधान

पर्यावरणविद सत्यप्रकाश मेहरा का कहना है कि केवलादेव घना नेशनल पार्क की दीवार को ऊंचा किया जाना चाहिए. कहीं कहीं यह दीवार इतनी नीची है कि जानवर आराम से छलांग मारकर इसे पार कर जाते हैं. कहीं कहीं यह तारबंदी टूटी हुई भी है, जिससे वन्यजीव निकलकर खेतों पर धावा बोल देते हैं. सत्यप्रकाश ने कहा कि वन विभाग को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए और शाकाहारी वन्यजीवों के लिए पार्क एरिया में भी चारे-पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे अपना इलाका छोड़कर बाहर न आएं.

यूं तो मानव और जानवर एक ही पर्यावरण का हिस्सा हैं. लेकिन कभी कभी मैन और वाइल्ड लाइफ के बीच टकराव देखने को मिलता है. जंगली जानवर नियम कानून कायदे नहीं समझ सकते. जंगल के जानवर सरहदों को भी नहीं समझते हैं. इसीलिए इंसानी बस्तियों को अभ्यारण्य से दूर शिफ्ट करने की योजनाएं भी चलाई जाती हैं. लेकिन किसानों की परेशानी से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. सरकार को इन किसानों की सुध लेनी चाहिए.

भरतपुर. जिले के केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान से सटे गांवों के किसान परेशान हैं. जंगली जानवर उनकी फसलों को चौपट कर देते हैं. किसानों को सर्द रातों में भी खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है. इलाके के 19 गांवों का यही हाल है. रात दिन पहरा देने के बावजूद वन्यजीव फसलों में भारी नुकसान पहुंचा देते हैं. नुकसान झेल रहे किसानों को न तो वन विभाग की ओर से कभी कोई मुआवजा दिया जाता है और न ही वन्यजीवों को केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की परिधि में सीमित रखने की कोशिश की जाती है.

फसलों को चौपट कर रहे हैं केवलादेव नेशनल पार्क के जंगली जानवर

24 घंटे करते हैं रखवाली

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की तारबंदी से सटे बरसो गांव में रहने वाले किसान विशंभर ने बताया कि उद्यान से निकलने वाले वन्यजीव जिनमें नीलगाय, रोज, बंदर आदि फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. हालात ये हैं कि दिन-रात फसलों की रखवाली करनी पड़ती है. तब जाकर कुछ पैदावार हो पाती है. बावजूद इसके फसलों में नुकसान झेलना पड़ता है.

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दिनभर किसान जंगली जानवरों को भगाते हैं

कभी नहीं मिला मुआवजा

वहीं किसान दरब सिंह ने बताया कि फसलों की रखवाली के लिए रात भर अलाव जलाकर चौकीदारी करनी पड़ती है. फिर भी मौका पाकर वन्यजीव फसलों में नुकसान पहुंचा जाते हैं. फसलों में होने वाले नुकसान के लिए कभी भी वन विभाग या सरकार की ओर से किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया.

पढ़ें- सवाई माधोपुर : खेत पर रखवाली कर रहा था युवक...झाड़ियों में छुपे बघेरे ने अचानक किया हमला

छोटी पड़ रही दीवार, जुर्माने का भी डर

किसान हरिओम ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की दीवार वन्यजीवों के हिसाब से नीची है. ऐसे में वन्यजीव आसानी से दीवार फांद कर खेतों तक पहुंच जाते हैं. किसान जब भी वन्यजीवों को भगाते हैं या उन्हें खेतों में आने से रोकने का प्रयास करते हैं तो वन विभाग के अधिकारियों की ओर से किसानों को जुर्माने का डर भी दिखाया जाता है. वहीं विभाग की ओर से मुआवजा तो कभी दिया ही नहीं गया. हरिओम ने बताया कि वन्यजीवों का आतंक इतना है कि किसान 24 घंटे अपने खेतों की रखवाली करते हैं. साथ ही खेतों के चारों तरफ तारबंदी भी करवा रखी है. लेकिन कई बार वन्यजीव उनको तोड़कर भी खेतों में पहुंचा जाते हैं. कुछ किसानों ने अपने खेतों के चारों तरफ तारबंदी के साथ ही चमकीले प्लास्टिक के थैले भी लगा दिए हैं, कभी कभी ये जुड़ाग काम कर जाता है लेकिन हमेशा यह कारगर नहीं होता.

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घना के आस-पास के 19 गांव प्रभावित

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान के चारों तरफ करीब 29 वर्ग किलोमीटर में चारदीवारी है. जिसके आसपास करीब 19 गांव बसे हुए हैं. इन गांवों में जाटौली घना, बरसो, घासोल, खोरी का नगला, बहनेरा, दारापुर, हगापुर, रामनगर, चकरामनागर, बंजारे का नगला आदि गांव शामिल हैं. इन 19 गांवों में करीब 40 हजार बीघा कृषि भूमि है.

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भरतपुर के आरडी गर्ल्स कॉलेज के प्राणी शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एमएम त्रिगुणायत का कहना है कि केवलादेव घना नेशनल पार्क से जंगली सूअर और नीलगाय जैसे जंगली जानवरों का आस-पास के खेतों में आना लाजिमी है, यहां डैम का कैचमेंट एरिया करीब 36 मील का है, सितंबर में डैम खाली हो जाता है और रबी की फसलों में मोठ-मटर बोया जाता है. वन्य जीवों को चरने के लिए यह भाता है इसलिए वे अपने इलाके से निकलकर खेतों की तरफ आ जाते हैं. उन्होंने कहा कि वन्यजीवों से होने वाले नुकसान की भरपाई के नियम तो बने हुए हैं, अगर नहीं हैं तो सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए.

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ये हो सकता है समाधान

पर्यावरणविद सत्यप्रकाश मेहरा का कहना है कि केवलादेव घना नेशनल पार्क की दीवार को ऊंचा किया जाना चाहिए. कहीं कहीं यह दीवार इतनी नीची है कि जानवर आराम से छलांग मारकर इसे पार कर जाते हैं. कहीं कहीं यह तारबंदी टूटी हुई भी है, जिससे वन्यजीव निकलकर खेतों पर धावा बोल देते हैं. सत्यप्रकाश ने कहा कि वन विभाग को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए और शाकाहारी वन्यजीवों के लिए पार्क एरिया में भी चारे-पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे अपना इलाका छोड़कर बाहर न आएं.

यूं तो मानव और जानवर एक ही पर्यावरण का हिस्सा हैं. लेकिन कभी कभी मैन और वाइल्ड लाइफ के बीच टकराव देखने को मिलता है. जंगली जानवर नियम कानून कायदे नहीं समझ सकते. जंगल के जानवर सरहदों को भी नहीं समझते हैं. इसीलिए इंसानी बस्तियों को अभ्यारण्य से दूर शिफ्ट करने की योजनाएं भी चलाई जाती हैं. लेकिन किसानों की परेशानी से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. सरकार को इन किसानों की सुध लेनी चाहिए.

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