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कोरोना ने रोकी 700 साल पुरानी परम्परा, निरस्त किया गया विख्यात मल्लीनाथ पशु मेला - मल्लीनाथ पशु माला

बाड़मेर के बालोतरा में कोरेना वायरस के चलते निरस्त किये गए मल्लीनाथ तिलवाड़ा पशु मेले में दुकानदारों और पशुपालकों का मेला निर्देशक और जिला कलेक्टर के खिलाफ गुस्सा देखने को मिल रहा है.

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कोरोना ने रोकी 700 साल पुरानी परम्परा
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Published : Mar 18, 2020, 8:53 AM IST

बालोतरा (बाड़मेर). कोरेना वायरस के चलते निरस्त हुए विश्व विख्यात मल्लीनाथ तिलवाड़ा पशु मेले में पहुंचे दुकानदारों और पशुपालकों का मेला निर्देशक और जिला कलेक्टर के खिलाफ गुस्सा देखने को मिल रहा है. पशु पालन विभाग की लापरवाही के चलते बड़ा नुकसान उठा रहे पशुपालक और दुकानदार मेले में प्रशासन के खिलाफ अपनी नाराजगी जता रहे हैं.

कोरोना ने रोकी 700 साल पुरानी परम्परा

मेले में पहुंचे दुकानदारों का कहना है कि पिछले एक महीने से कोरोना वायरस को लेकर प्रशासनिक इंतजाम किए जा रहे हैं. इंटरनेट के माध्यम से लोगों को सन्देश दिए जा रहे हैं. प्रशासन को वायरस की जानकारी होने के बाद भी मल्लीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध मेले में सजने वाली दुकानों की नीलामी नहीं करनी थी. नीलामी से हमारे लाखों रुपए जमा हुए हैं, अब हमें पैसे कब और कैसे मिलेंगे.

पढ़ें. Exclusive: राज्यसभा चुनाव में नाम वापसी को लेकर भाजपा के 'दांव', लेकिन कटारिया के संकेत कुछ और...

जोधपुर से पहुंचे अश्व पालक किशोर सिंह का कहना है कि हम मेले से किसी भी स्थिति से हटने वाले नहीं हैं. हम खर्चा करके पहुंचे हैं, हमें नुकसान हो रहा है, प्रशासन ने मजबूरन हमारे लगे टेंट हटवाए तो भी हम मेले से जाने वाले नहीं हैं.

जानें मल्लीनाथ मेले का इतिहास..

जानकर बताते हैं कि तिलवाड़ा में लूनी नदी के तलहटी क्षेत्र में लगने वाले मल्लीनाथ पशु मेला घोड़ों और ऊँटों के लिए विश्व विख्यात माना जाता है. 1431 में मल्लीनाथ मेले की शुरुआत हुई थी. आजादी के बाद 1957 से पशुपालन विभाग इस मेले का आयोजक करता आ रहा था.

बालोतरा (बाड़मेर). कोरेना वायरस के चलते निरस्त हुए विश्व विख्यात मल्लीनाथ तिलवाड़ा पशु मेले में पहुंचे दुकानदारों और पशुपालकों का मेला निर्देशक और जिला कलेक्टर के खिलाफ गुस्सा देखने को मिल रहा है. पशु पालन विभाग की लापरवाही के चलते बड़ा नुकसान उठा रहे पशुपालक और दुकानदार मेले में प्रशासन के खिलाफ अपनी नाराजगी जता रहे हैं.

कोरोना ने रोकी 700 साल पुरानी परम्परा

मेले में पहुंचे दुकानदारों का कहना है कि पिछले एक महीने से कोरोना वायरस को लेकर प्रशासनिक इंतजाम किए जा रहे हैं. इंटरनेट के माध्यम से लोगों को सन्देश दिए जा रहे हैं. प्रशासन को वायरस की जानकारी होने के बाद भी मल्लीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध मेले में सजने वाली दुकानों की नीलामी नहीं करनी थी. नीलामी से हमारे लाखों रुपए जमा हुए हैं, अब हमें पैसे कब और कैसे मिलेंगे.

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जोधपुर से पहुंचे अश्व पालक किशोर सिंह का कहना है कि हम मेले से किसी भी स्थिति से हटने वाले नहीं हैं. हम खर्चा करके पहुंचे हैं, हमें नुकसान हो रहा है, प्रशासन ने मजबूरन हमारे लगे टेंट हटवाए तो भी हम मेले से जाने वाले नहीं हैं.

जानें मल्लीनाथ मेले का इतिहास..

जानकर बताते हैं कि तिलवाड़ा में लूनी नदी के तलहटी क्षेत्र में लगने वाले मल्लीनाथ पशु मेला घोड़ों और ऊँटों के लिए विश्व विख्यात माना जाता है. 1431 में मल्लीनाथ मेले की शुरुआत हुई थी. आजादी के बाद 1957 से पशुपालन विभाग इस मेले का आयोजक करता आ रहा था.

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