बालोतरा (बाड़मेर). निसंतानों को संतान, अविवाहितों को योग्य सुंदर वधू मिलने की कामना से मारवाड़ के इस अंचल में होली पर्व पर ईलोजी की पूजा अर्चना करने का प्रचलन बरकरार है. ग्राम देवता के नाम से जाने जाने ईलोजी हर बड़े शहर में विराजमान है और होली पर्व आते ही उनकी पूजा का दौर शुरू हो जाता है.
औद्योगिक नगरी बालोतरा में भी ईलोजी की प्रतिमा स्थापित हैं. जहां होली के अवसर पर उनकी पूजा की जाती है. होली का डाडा लगने के साथ होली का दहन तक पूजा अर्चना का सिलसिला निरंतर चलता रहता है. शादीशुदा लोग संतान प्राप्ति के लिए और अविवाहित युवक सुंदर वधू पाने की मनोकामना के साथ ईलोजी की आदमकद प्रतिमा के सामने नारियल और पतासे का प्रसाद चढ़ाकर माला पहनाकर धोक लगाते है.
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वहीं मुख्य बाजार के व्यापारी ईलोजी की प्रतिमा को नए वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित करते है. किवंदती के अनुसार ईलोजी भक्त प्रहलाद की बुआ और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के मंगेतर थे. अग्नि में भक्त प्रहलाद बच गए, लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई. इससे दुखी ईलोजी ने भस्म अपने शरीर पर मल ली और होलिका की याद में कुंवारे ही रहे. इसी कथा के संदर्भ में उनकी पूजा का प्रचलन हो गया.
होली के दूसरे दिन धुलंडी मनाई जाएगी
मान्यता के अनुसार होलिका दहन भक्त प्रहलाद की बुआ के रूप में कुरीतियों को मिटाने का संदेश देती है. होलिका दहन पर बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए गोबर से चांद, सूरज व तारे के बड़कुलिए बनाती है. जिसके बाद अपने भाइयों के सिर पर सात बार उसारती हैंय इसके बाद उन बड़कुलियों को होलिका दहन से पूर्व होलिका थाम पर लगाती है. शुभ मुहूर्त में होलिका की पूजा अर्चना के बाद उसका दहन किया जाता है. दहन के समय गेहूं की बाली के दानों को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. होली के दूसरे दिन अल सवेरे महिलाएं होलिका भस्म लेकर उससे 16 पिंडलियां बनाती है. 16 दिन तक उन पिंडलियों की पूजा-अर्चना की जाती है. ये पूजा अर्चना गणगौर पूजन करने वाली महिलाएं करती है. होली के 16वें दिन गणगौर की धूमधाम से पूजा की जाती है.
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रंगों से नहीं, आप भी गुलाल व अबीर से खेलें होली
पानी की समस्या से आमजन परेशान है, लेकिन इसके बावजूद अब भी पानी का दुरुपयोग बदस्तूर हो रहा है. गर्मी की दस्तक के साथ ही पेयजल संकट की स्थिति बन जाती है. जरुरी है कि हम पानी के मोल को पहचाने. होली पर काफी मात्रा में पानी का दुरुपयोग होता है. बाड़मेर जिला डार्क जोन में है. इस स्थिति में यह और भी जरुरी हो जाता है कि रंगों की बजाय हम सभी गुलाल से सूखी होली खेलें. भूजल विभाग के आंकड़ों पर गौर करें, जिसके अनुसार अभी जो भूजल बचा है वह केवल 20 साल तक ही हमें पानी मुहैया करवा पाएगा. जो पानी हमें मिल रहा है वह भी फ्लोराइड युक्त है.