ETV Bharat / state

महुआ से महका वागड़ अंचल का जंगल, गुजर-बसर करने का एकमात्र सहारा

राजस्थान के जिले बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ को अपने आंचल में समेटने वाले वागड़ अंचल का जलवायु प्रदेश के अन्य हिस्सों के मुकाबले काफी अच्छा माना जाता है. सके पीछे मुख्य वजह बड़े-बड़े जंगल का होना है. इन जिलों की बड़ी आबादी इन जंगलों में ही निवास करती है अर्थात वन उपज इन लोगों की आजीविका का मुख्य आधार है, इनमें एक महुआ भी शामिल है.

बांसवाड़ा समाचार, banswara news
महुला से महका वागड़ अंचल का जंगल
author img

By

Published : May 29, 2020, 1:59 PM IST

बांसवाड़ा. राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल कहलाता है, जो कि घने वनों से घिरा हुआ है. बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले को अपने आंचल में समेटने वाले वागड़ अंचल का जलवायु प्रदेश के अन्य हिस्सों के मुकाबले काफी अच्छा माना जाता है. इसके पीछे मुख्य वजह बड़े-बड़े जंगल का होना है. इन जिलों की बड़ी आबादी इन जंगलों में ही निवास करती है अर्थात वन उपज इन लोगों की आजीविका का मुख्य आधार है, इनमें एक महुआ भी शामिल है.

महुला से महका वागड़ अंचल का जंगल

इन दिनों अंचल के जंगलों में महुआ की महक महसूस की जा सकती है. इस बीच बड़ी संख्या में महुआ के पेड़ों पर फूल खिले नजर आते हैं. यह न केवल हथकढ़ शराब बनाने के काम आता है, बल्कि सैकड़ों आदिवासी परिवार इससे अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं. इन दिनों महुआ इन लोगों के लिए इनकम का एक प्रमुख स्त्रोत माना जा सकता है. हालांकि, यह एक सीजनली उत्पाद है लेकिन यह बहुत से परिवारों की हर छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा कर रहा है.

पढ़ें- बांसवाड़ाः क्वॉरेंटाइन से बचने के लिए प्रवासी दे रहे थे गलत पता, पुलिस ने अपनाया वेरिफिकेशन का रास्ता...

बता दें कि घने जंगलों के साथ-साथ आबादी वाले इलाके में भी महुआ के बड़े-बड़े कई पेड़ है. प्रतापगढ़ से लेकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर क्षेत्र में आने वाले जंगलों में महुआ के इन पेड़ों को देखा जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार इन तीनों जिलों में करीब 5000 से अधिक महुआ के बड़े-बड़े पेड़ है. अप्रैल के बाद से ही इन पेड़ों पर फूल खिलने लग जाते हैं, जो मई तक पककर तैयार हो जाते हैं और स्वत: ही गिरने लगते हैं. फूलों की भीनी-भीनी महक इन घने जंगलों में इनका आभास करा देती है.

सूरज निकलने के साथ ही बिनाई

दरअसल, मई के पहले पखवाड़े से ही महुआ के फूल पीली पड़ने के साथ गिरने लग जाते हैं. इन फूलों को आसपास के लोग एकत्र करने के लिए सूरज निकलने के साथ ही पहुंच जाते हैं. इसके लिए शाम को ही पेड़ के आसपास जमीन को साफ कर दिया जाता है. ताकि सुबह होते ही इन फूलों को एकत्र किया जा सके. महुआ के हर फूल को बिनना होता है, ऐसे में पूरे परिवार के लोग फूल इकट्ठे करने में लग जाते हैं. इसके बाद शाम को फिर फूल बिनाई में जुट जाते हैं.

एक पेड़ से 50 से 60 किलो तक फूल

ग्रामीणों का कहना है कि एक अच्छे खासे से पेड़ से करीब 50 से लेकर 60 किलोग्राम तक फूल मिल जाता है और जंगल में इस प्रकार के सैकड़ों पेड़ है, जिन घरों के पास कितने पेड़ होते हैं. उन पर उन्हीं लोगों का अधिकार रहता है. कई परिवारों के खेतों पर भी महुआ के पेड़ है, जिनसे उन्हें खांसी आम अदमी हो जाती है. यहां तक कि कई परिवारों की रोजी-रोटी का यह मुख्य आधार बन चुका है. जोकि एक माह में 5 से 6 क्विंटल तक महुआ भी लेते हैं.

फूल के बदले लेते हैं घर का आवश्यक सामान

हालांकि, मार्केट में महुआ के फूल की कीमत 40 से 50 रुपए प्रति किलो तक है. लेकिन यहां के लोग अपने आसपास की दुकानों पर 20 से लेकर 25 रुपए किलो तक में बेच देते हैं और अपने घर के लिए जरूरी सामग्री अर्थात तेल मिर्च नमक दाल आदि आवश्यक सामग्री की खरीदारी कर लेते हैं. यदि परिवार बड़ा हो तो फूल को एकत्र कर मार्केट में ऊंचे दामों पर बेच दिया जाता है, लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम हैं.

पढ़ें- बांसवाड़ाः जून के पहले सप्ताह में लगेगी CORONA जांच की हाईटेक मशीन, ढाई से 3 घंटे के अंदर हाथ में होगी REPORT

इस बारे में उप वन संरक्षक डॉ. सुगनाराम जाट ने बताया कि यह एक लघु वन उपज है और स्थानीय लोग इसका संग्रहण करते हैं. कई लोग इसे मार्केट में भेज देते हैं तो कई किराना दुकानदार को बेचकर अपनी जरूरी चीजों की खरीदारी कर लेते हैं. इन पेड़ों की जंगलों में खासी संख्या हैं, जिससे आदिवासी परिवारों को अच्छी खासी इनकम हो जाती है. फूल के साथ-साथ फल भी आता है, जिसे स्थानीय भाषा में डोलमा कहा जाता है और इसका खाद्य तेल बनता है, जिसका स्थानीय लोग खाने में इस्तेमाल करते हैं. महुआ का फल और फूल अंचल के लोगों की इनकम का एक अच्छा खासा स्रोत माना जा सकता है.

बांसवाड़ा. राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल कहलाता है, जो कि घने वनों से घिरा हुआ है. बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले को अपने आंचल में समेटने वाले वागड़ अंचल का जलवायु प्रदेश के अन्य हिस्सों के मुकाबले काफी अच्छा माना जाता है. इसके पीछे मुख्य वजह बड़े-बड़े जंगल का होना है. इन जिलों की बड़ी आबादी इन जंगलों में ही निवास करती है अर्थात वन उपज इन लोगों की आजीविका का मुख्य आधार है, इनमें एक महुआ भी शामिल है.

महुला से महका वागड़ अंचल का जंगल

इन दिनों अंचल के जंगलों में महुआ की महक महसूस की जा सकती है. इस बीच बड़ी संख्या में महुआ के पेड़ों पर फूल खिले नजर आते हैं. यह न केवल हथकढ़ शराब बनाने के काम आता है, बल्कि सैकड़ों आदिवासी परिवार इससे अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं. इन दिनों महुआ इन लोगों के लिए इनकम का एक प्रमुख स्त्रोत माना जा सकता है. हालांकि, यह एक सीजनली उत्पाद है लेकिन यह बहुत से परिवारों की हर छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा कर रहा है.

पढ़ें- बांसवाड़ाः क्वॉरेंटाइन से बचने के लिए प्रवासी दे रहे थे गलत पता, पुलिस ने अपनाया वेरिफिकेशन का रास्ता...

बता दें कि घने जंगलों के साथ-साथ आबादी वाले इलाके में भी महुआ के बड़े-बड़े कई पेड़ है. प्रतापगढ़ से लेकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर क्षेत्र में आने वाले जंगलों में महुआ के इन पेड़ों को देखा जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार इन तीनों जिलों में करीब 5000 से अधिक महुआ के बड़े-बड़े पेड़ है. अप्रैल के बाद से ही इन पेड़ों पर फूल खिलने लग जाते हैं, जो मई तक पककर तैयार हो जाते हैं और स्वत: ही गिरने लगते हैं. फूलों की भीनी-भीनी महक इन घने जंगलों में इनका आभास करा देती है.

सूरज निकलने के साथ ही बिनाई

दरअसल, मई के पहले पखवाड़े से ही महुआ के फूल पीली पड़ने के साथ गिरने लग जाते हैं. इन फूलों को आसपास के लोग एकत्र करने के लिए सूरज निकलने के साथ ही पहुंच जाते हैं. इसके लिए शाम को ही पेड़ के आसपास जमीन को साफ कर दिया जाता है. ताकि सुबह होते ही इन फूलों को एकत्र किया जा सके. महुआ के हर फूल को बिनना होता है, ऐसे में पूरे परिवार के लोग फूल इकट्ठे करने में लग जाते हैं. इसके बाद शाम को फिर फूल बिनाई में जुट जाते हैं.

एक पेड़ से 50 से 60 किलो तक फूल

ग्रामीणों का कहना है कि एक अच्छे खासे से पेड़ से करीब 50 से लेकर 60 किलोग्राम तक फूल मिल जाता है और जंगल में इस प्रकार के सैकड़ों पेड़ है, जिन घरों के पास कितने पेड़ होते हैं. उन पर उन्हीं लोगों का अधिकार रहता है. कई परिवारों के खेतों पर भी महुआ के पेड़ है, जिनसे उन्हें खांसी आम अदमी हो जाती है. यहां तक कि कई परिवारों की रोजी-रोटी का यह मुख्य आधार बन चुका है. जोकि एक माह में 5 से 6 क्विंटल तक महुआ भी लेते हैं.

फूल के बदले लेते हैं घर का आवश्यक सामान

हालांकि, मार्केट में महुआ के फूल की कीमत 40 से 50 रुपए प्रति किलो तक है. लेकिन यहां के लोग अपने आसपास की दुकानों पर 20 से लेकर 25 रुपए किलो तक में बेच देते हैं और अपने घर के लिए जरूरी सामग्री अर्थात तेल मिर्च नमक दाल आदि आवश्यक सामग्री की खरीदारी कर लेते हैं. यदि परिवार बड़ा हो तो फूल को एकत्र कर मार्केट में ऊंचे दामों पर बेच दिया जाता है, लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम हैं.

पढ़ें- बांसवाड़ाः जून के पहले सप्ताह में लगेगी CORONA जांच की हाईटेक मशीन, ढाई से 3 घंटे के अंदर हाथ में होगी REPORT

इस बारे में उप वन संरक्षक डॉ. सुगनाराम जाट ने बताया कि यह एक लघु वन उपज है और स्थानीय लोग इसका संग्रहण करते हैं. कई लोग इसे मार्केट में भेज देते हैं तो कई किराना दुकानदार को बेचकर अपनी जरूरी चीजों की खरीदारी कर लेते हैं. इन पेड़ों की जंगलों में खासी संख्या हैं, जिससे आदिवासी परिवारों को अच्छी खासी इनकम हो जाती है. फूल के साथ-साथ फल भी आता है, जिसे स्थानीय भाषा में डोलमा कहा जाता है और इसका खाद्य तेल बनता है, जिसका स्थानीय लोग खाने में इस्तेमाल करते हैं. महुआ का फल और फूल अंचल के लोगों की इनकम का एक अच्छा खासा स्रोत माना जा सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.