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यात्रियों के लिए बुरी खबर, रोडवेज रोड से उतरने के कगार पर - rajasthan roadways news

प्रदेश में रोडवेज बसों के हालात खराब होते जा रहे हैं. जानकारी के अनुसार रोडवेज बेड़े में नई बसों का आना लगभग बंद सा हो गया है. साथ ही आवश्यक कलपुर्जों की भी कमी देखी जा रही है. जिसके कारण रोडवेज प्रबंधन पूरी तरह से पुरानी बसों पर निर्भर होकर रह गया है.

lack of roadways buses, रोडवेज बसों की कमी
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Published : Oct 12, 2019, 3:04 PM IST

बांसवाड़ा. राजस्थान रोडवेज की बसें प्रदेश के करोड़ों लोगों की यात्रा का प्रमुख आधार है. पिछले लंबे समय से रोडवेज बेड़े में नई बसों का आना लगभग बंद हो गया है. जिसके कारण रोडवेज प्रबंधन पूरी तरह से पुरानी बसों पर निर्भर होकर रह गया है. हालत यह है कि रोडवेज की लगभग आधी बसों की समयावधि खत्म हो चुकी हैं. जिसके चलते रोडवेज प्रबंधन अगले कुछ माह में इन्हें रोड से बाहर कर देगा.

रोडवेज में नई बसों के साथ आवश्यक कलपुर्जों की कमी

वहीं कर्मचारियों की मानें तो लंबे समय से नई बसों के साथ ही आवश्यक कल पुर्जों की भी कमी महसूस की जा रही है. रोड पर चलती किसी भी बस का भरोसा नहीं की, कब रास्ते में ही बंद हो जाए. ऐसे में ब्रेकडाउन होना मुख्य समस्या बन चुका है.

वहीं रोडवेज कर्मचारियों की मानें तो प्रदेश भर में वर्तमान समय में 3900 बसें संचालित हैं. जिनमें से उन्नीस सौ बसें की अगले कुछ माह में नकारा होने की आशंका है. नियमानुसार एक बस की अवधि अधिकतम 80,0000 किलोमीटर या 8 साल का संचालन माना जाता है. अब देखने वाली बात यह है कि वर्तमान में संचालित बसों में से करीब 40 से 45 फ़ीसदी बसें यह मापदंड पूरा कर चुकी हैं. जिसके कारण अगले कुछ माह में इन्हें बंद करना रोडवेज की मजबूरी बन जाएगी.

पढ़ें: अजमेर के अरुण का इनोवेशन : इजरायली तकनीक से घर की छत पर उगा दी शुद्ध सब्जी, अब ड्राइंग रूम में सब्जियां उगाने की तैयारी

बता दें कि, नाकारा बसों को हटाने की स्थिति में रोडवेज प्रशासन को अपने कई रूट बंद करने पड़ सकते हैं. जिसका खामियाजा प्रदेश के लाखों यात्रियों को भुगतना पड़ सकता है. कर्मचारियों की मानें तो वर्तमान में संचालित बसों में से भी कई बसें कल पुर्जों के अभाव में कबाड़ होती जा रही हैं. रोडवेज कर्मचारी संघर्ष समिति के समन्वयक आमिर खान के अनुसार रोडवेज को लेकर सरकार की नियत पूर्व सरकार की भांति साफ नहीं है. विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस की ओर से नई बसों की सप्लाई का आश्वासन दिया गया था, लेकिन सत्ता में आने के साथ सरकार अपने वादे को भूल गई. यही स्थिति रही तो रोडवेज के रोड से उतरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

आपको बता दें कि, अकेले बांसवाड़ा डिपो में वर्ष 2018 तक रोडवेज की 82 बसों का संचालन हो रहा था. जिनमें इस साल 19 बसों को नकारा होने पर सेंट्रल डिपो अजमेर भेज दिया गया है. वहीं 6 ऑफ रूट हैं. इस प्रकार 82 में से कुल 25 बसे रोड से बाहर हो गई हैं. अगले कुछ माह में संचालित बसों में से भी कई संचालन के मापदंड पूरे होने के कगार पर होगी. चीफ मैनेजर रवि कुमार मेहरा से इस संबंध में जानकारी चाही तो पता चला कि, बांसवाड़ा डिपो से बसों की संख्या निरंतर कम हो रही है.

बांसवाड़ा. राजस्थान रोडवेज की बसें प्रदेश के करोड़ों लोगों की यात्रा का प्रमुख आधार है. पिछले लंबे समय से रोडवेज बेड़े में नई बसों का आना लगभग बंद हो गया है. जिसके कारण रोडवेज प्रबंधन पूरी तरह से पुरानी बसों पर निर्भर होकर रह गया है. हालत यह है कि रोडवेज की लगभग आधी बसों की समयावधि खत्म हो चुकी हैं. जिसके चलते रोडवेज प्रबंधन अगले कुछ माह में इन्हें रोड से बाहर कर देगा.

रोडवेज में नई बसों के साथ आवश्यक कलपुर्जों की कमी

वहीं कर्मचारियों की मानें तो लंबे समय से नई बसों के साथ ही आवश्यक कल पुर्जों की भी कमी महसूस की जा रही है. रोड पर चलती किसी भी बस का भरोसा नहीं की, कब रास्ते में ही बंद हो जाए. ऐसे में ब्रेकडाउन होना मुख्य समस्या बन चुका है.

वहीं रोडवेज कर्मचारियों की मानें तो प्रदेश भर में वर्तमान समय में 3900 बसें संचालित हैं. जिनमें से उन्नीस सौ बसें की अगले कुछ माह में नकारा होने की आशंका है. नियमानुसार एक बस की अवधि अधिकतम 80,0000 किलोमीटर या 8 साल का संचालन माना जाता है. अब देखने वाली बात यह है कि वर्तमान में संचालित बसों में से करीब 40 से 45 फ़ीसदी बसें यह मापदंड पूरा कर चुकी हैं. जिसके कारण अगले कुछ माह में इन्हें बंद करना रोडवेज की मजबूरी बन जाएगी.

पढ़ें: अजमेर के अरुण का इनोवेशन : इजरायली तकनीक से घर की छत पर उगा दी शुद्ध सब्जी, अब ड्राइंग रूम में सब्जियां उगाने की तैयारी

बता दें कि, नाकारा बसों को हटाने की स्थिति में रोडवेज प्रशासन को अपने कई रूट बंद करने पड़ सकते हैं. जिसका खामियाजा प्रदेश के लाखों यात्रियों को भुगतना पड़ सकता है. कर्मचारियों की मानें तो वर्तमान में संचालित बसों में से भी कई बसें कल पुर्जों के अभाव में कबाड़ होती जा रही हैं. रोडवेज कर्मचारी संघर्ष समिति के समन्वयक आमिर खान के अनुसार रोडवेज को लेकर सरकार की नियत पूर्व सरकार की भांति साफ नहीं है. विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस की ओर से नई बसों की सप्लाई का आश्वासन दिया गया था, लेकिन सत्ता में आने के साथ सरकार अपने वादे को भूल गई. यही स्थिति रही तो रोडवेज के रोड से उतरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

आपको बता दें कि, अकेले बांसवाड़ा डिपो में वर्ष 2018 तक रोडवेज की 82 बसों का संचालन हो रहा था. जिनमें इस साल 19 बसों को नकारा होने पर सेंट्रल डिपो अजमेर भेज दिया गया है. वहीं 6 ऑफ रूट हैं. इस प्रकार 82 में से कुल 25 बसे रोड से बाहर हो गई हैं. अगले कुछ माह में संचालित बसों में से भी कई संचालन के मापदंड पूरे होने के कगार पर होगी. चीफ मैनेजर रवि कुमार मेहरा से इस संबंध में जानकारी चाही तो पता चला कि, बांसवाड़ा डिपो से बसों की संख्या निरंतर कम हो रही है.

Intro:बांसवाड़ाl प्रदेश मैं जिन लोगों की यात्रा रोडवेज पर ही निर्भर है उनके लिए बुरी खबर कई जा सकती हैl रोडवेज बेड़े में नाकारा बसों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और यही स्थिति रही तो अगले कुछ माह में रोड पर आदि बसे ही देखने को मिलेगीl


Body:राजस्थान रोडवेज प्रदेश के करोड़ों लोगों की यात्रा का प्रमुख आधार है जो धीरे-धीरे खिसकता जा रहा है। पिछले लंबे समय से रोडवेज बेड़े में नई बसों का आना लगभग बंद हो गया है और रोडवेज प्रबंधन पूरी तरह से पुरानी बसों पर निर्भर होकर रह गया। हालत यह है कि रोडवेज की आधी बसें लगभग नाकारा हो चुकी है या अगले कुछ माह में इन्हें रोड से बाहर करना रोडवेज प्रबंधन की व्यवस्था बन जाएगी। कर्मचारियों की माने तो लंबे समय से नई बसों के साथ ही आवश्यक कल पुर्जों की भी कमी महसूस की जा रही है। रोड पर चलती किसी भी बस का भरोसा नहीं की कब रास्ते में ही बंद हो जाए। ब्रेकडाउन होना मुख्य समस्या बन चुका है। रास्ते में यात्रियों को अपने बच्चों का सहारा लेना पड़ता है जिससे उनका विश्वास रोडवेज से उठता जा रहा है।


Conclusion:रोडवेज कर्मचारियों की माने तो प्रदेश में वर्तमान में 3900 बसें संचालित है जिनमें से उन्नीस सौ बसें अगले कुछ माह में नाकारा होने की आशंका हैl नियमानुसार एक बस की अवधि अधिकतम 800000 किलोमीटर या 8 साल का संचालन माना जाता हैl अब देखने वाली बात यह है कि वर्तमान में संचालित बसों में से करीब 40 से 45 फ़ीसदी बसें यह मापदंड पूरा कर चुकी है और अगले कुछ माह में इन्हें बंद करना रोडवेज की मजबूरी बन जाएगीl पता चला है कि इनमें आधी से अधिक बसें तो यह मापदंड कब का ही पूरा कर चुकी हैl इस प्रकार कंडम बसों का संचालन यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक माना जा सकता हैl ना करा बसों को हटाने की स्थिति में रोडवेज प्रशासन को अपने कई रूट बंद करने पड़ सकते हैं जिसका खामियाजा प्रदेश के लाखों यात्रियों को भुगतना पड़ सकता हैl कर्मचारियों की माने तो वर्तमान में संचालित बसों में से भी कई बसें गर्ल पुरुषों के अभाव में कबाड़ होती जा रही हैl लंबे समय से आवश्यक कल पुर्जों की सप्लाई नहीं हो रही हैl रोडवेज कर्मचारी संघर्ष समिति के समन्वयक आमिर खान के अनुसार रोडवेज को लेकर सरकार की नियत पूर्व सरकार की भांति साफ नहीं हैl विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस द्वारा नई बसों की सप्लाई का आश्वासन दिया था लेकिन सत्ता में आने के साथ सरकार अपने वायदे को भूल गई आज आधी बसें बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैl लंबे समय से कल पुर्जे तक नहीं मिल रहे हैंl यही स्थिति रही तो रोडवेज के रोड से उतरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकताl

1 साल में 30% बसे नाकारा

प्रदेश में रोडवेज के हालात पर नजर डालें तो चिंताजनक कहे जा सकते हैंl अकेले बांसवाड़ा डिपो की बसों पर नजर डाले तो वर्ष 2018 तक अकेले रोडवेज की 82 बसों का संचालन हो रहा था जिनमें से अक्टूबर 2019 तक 19 बसें नाकारा होकर अजमेर डिपो भेज दी गई है वहीं छह बसें वर्कशॉप में अपने हालात पर आंसू बहा रही हैl इस प्रकार 82 में से कुल 25 बसे रोड से बाहर हो गई हैl अगले कुछ माह में संचालित बसों में से भी कई संचालन के मापदंड पूरे होने के कगार पर होगीl चीफ मैनेजर रवि कुमार मेहरा से इस संबंध में जानकारी चाही तो पता चला कि बांसवाड़ा डिपो से बसों की संख्या निरंतर कम हो रही हैl इस साल 19 बसों को नकारा होने पर सेंट्रल डिपो अजमेर भेज दिया गया वही 6 ऑफ रूट हैl

बाइट....1. हमीद खान समन्वयक राजस्थान रोडवेज कर्मचारी संघर्ष समिति
....2.. रवि कुमार मेहरा चीफ मैनेजर राजस्थान रोडवेज डिपो बांसवाड़ा
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