बांसवाड़ा. ग्राम पंचायत चुनाव के करीब 10 महीने बाद पंचायती राज की अन्य संस्थाओं के चुनाव होने जा रहे हैं. पिछले 20 साल से कांग्रेस जिला प्रमुख पद पर काबिज है. पहले कद्दावर नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय लगातार 10 साल तक कुर्सी संभाले रहे. इसके बाद अब पिछले 10 साल से उनकी पत्नी रेशम मालवीय जिला प्रमुख रहने के बाद तीसरी बार चुनावी मैदान में है. लेकिन इस बार जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया के पुत्र विकास बामनिया ने भी ताल ठोक दी है. इस बार जिला प्रमुख पद को लेकर कांग्रेस ही नहीं बल्कि मालवीय परिवार का वर्चस्व दांव पर दिखाई दे रहा है.
रेशम मालवीय के साथ-साथ अब विकास बामनिया को भी जिला प्रमुख पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. ऐसे में बामनिया और मालवीय के बीच दूरियां और भी बढ़ सकती है. वैसे भी भारतीय ट्राईबल पार्टी अधिकांश वार्डों में अपने प्रत्याशी मैदान में उतार रही है. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है. भाजपा किसी तरह अपने 20 साल के सूखे को खत्म करने के प्रयास में हैं. इसके लिए भाजपा ने अपने सभी कद्दावर नेताओं को मैदान में उतार दिया है.
बामनिया और मालवीय के बीच मतभेद पुराना
हालांकि, नगर परिषद चुनाव के बाद बामनिया और मालवीय कुछ स्थानों पर एक मंच पर भी नजर आए, लेकिन दोनों के बीच पुराना मतभेद किसी से छुपा नहीं है और गाहे-बगाहे उनके बीच की दूरियां सामने भी आती रहती है. जिला प्रमुख पद को लेकर रस्साकशी कायम रहने की स्थिति में भाजपा की लॉटरी खुलने की संभावना बलवती होती जा रही है. इन दोनों की लड़ाई में भाजपा में एक नई उम्मीद जगी है जो कि पिछले दो दशक से मालवीय परिवार के दबदबे को खत्म नहीं कर पाई है.
दो दशक से प्रमुख की चाबी मालवीय के पास...
वर्ष 2000 के बाद भाजपा का प्रभाव जिले में बढ़ता जा रहा है, लेकिन पार्टी के तमाम प्रयासों के बावजूद जिला प्रमुख का ताज पिछले दो दशक से पार्टी हासिल नहीं कर पाई. वर्ष 2009 के पंचायती राज चुनाव में बागीदौरा विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय की पत्नी रेशम मालवीय जिला प्रमुख चुनी गई. 5 साल बाद 2014 में रेशम फिर से जिला प्रमुख पद की कमान संभालने में कामयाब रही.
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बता दें, 2009 से पहले लगातार 10 साल तक महेंद्रजीत सिंह मालवीय जिला प्रमुख पद पर रहे. 10 साल जिला प्रमुख रहने के बाद रेशम वार्ड क्रमांक 13 से फिर मैदान में है. उनके नामांकन पत्र भरने के दौरान खुद जनजाति मंत्री बामनिया मौजूद थे. फॉर्म भरे जाने तक कांग्रेस की ओर से जिला प्रमुख पद के लिए रेशम को ही दावेदार माना जा रहा था, लेकिन अगले ही दिन जनजाति मंत्री के पुत्र विकास बामनिया ने वार्ड 27 से ताल ठोक कर पार्टी को चौंका दिया है.
दो की लड़ाई में तीसरे चेहरे को मौका...
वहीं, मंत्री बामनिया ने मालवीय को अपना नेता और रेशम मालवीय के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही है. लेकिन जानकारों का कहना है कि दोनों ही नेताओं के बीच सालों से जो अदावत चल रही है, यह पिछले 2 साल में कम होने के बजाय दोनों के बीच की दूरियां और भी बढ़ी है. अपने पुत्र को मैदान में उतारकर उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया कि इस बार जिला प्रमुख पद के लिए और भी मजबूत दावेदार हैं.
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के बहुमत में आने की स्थिति में प्रमुख पद को लेकर मालवीय और बामनिया खेमे के बीच खींचतान और भी बढ़ने की संभावना है. बामनिया गुट किसी भी स्थिति में मालवीय परिवार के हाथ में जिला परिषद का जाना मंजूर नहीं करेगा. इसके लिए परिवारवाद के मामले को भी आगे लाया जा सकता है. ऐसी स्थिति में पार्टी किसी तीसरे चेहरे के विकल्प पर विचार करने को विवश हो सकती है.
विकास की राह में अपनों का कांटे
सूत्रों का कहना है कि नामांकन पत्र दाखिल होने के साथ ही दोनों ही गुट अपने दावेदारों की जीत सुनिश्चित करने में जुट गए हैं. बागीदौरा विधानसभा क्षेत्र में मालवीय का दबदबा किसी से छुपा नहीं है. वे लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर जयपुर पहुंचे हैं. ऐसे में रेशम मालवीय की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है, लेकिन मंत्री पुत्र विकास पहली बार चुनावी मैदान में है और मालवीय का बांसवाड़ा ही नहीं डूंगरपुर में भी खासा प्रभाव है. ऐसे में विकास को अपने वार्ड में भाजपा प्रत्याशी ही नहीं मालवीय समर्थकों के साथ भी दो-दो हाथ करने पड़ सकते हैं.
भाजपा की बल्ले-बल्ले
राजसमंद में सभी प्रयासों के बाबजूद भी जिला कांग्रेस में खेमेबाजी अभी भी दूर नहीं हो पाई है. ऐसे में विरोधी खेमे के लोग उनको उनके वार्डों में ही मात देने के प्रयासों से भी बाज नहीं आएंगे. इसका भाजपा के उम्मीदवारों को सीधा-सीधा फायदा मिल सकता है. वैसे भी हार-जीत का अंतराल बहुत कम रहने की संभावना है क्योंकि भारतीय ट्राइबल पार्टी भी अधिकांश वार्डों में मैदान में नजर आ रही है.
भारतीय ट्राइबल पार्टी का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होना माना जा रहा है. कांग्रेस की गुटबाजी को भांपते हुए भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के परिवारवाद को चुनाव प्रचार-प्रसार के दौरान प्रमुखता से मुद्दा बनाकर उछाल रही है. पार्टी कांग्रेस की फूट को देखते हुए इस बार आपने सारे दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारने जा रही है.
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हालांकि, पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा तो नहीं की गई लेकिन अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष और गत विधानसभा चुनाव में बांसवाड़ा से पार्टी प्रत्याशी रहे हकरू मईडा, नगर परिषद की पूर्व सभापति कृष्णा कटारा, राजेंद्र पंचाल, धर्मेंद्र राठौड़, प्रभु लाल निनामा, प्रेम शंकर कटारा और निवर्तमान प्रधान राजेश कटारा जैसे कई दिग्गज नेताओं के टिकट करीब-करीब फाइनल माने जा रहे हैं और इन लोगों ने अपने नामांकन पत्र भी पेश कर दिए हैं.