अलवर. सरिस्का के जंगल क्षेत्र में बसे गांवों में अब भी लोग रहते हैं. ग्रामीण जंगल छोड़ने को तैयार नहीं हैं, तो जंगल में रहने वाले बाघ, पैंथर व अन्य वन्यजीव जंगल से बाहर निकल रहे (Tigers coming out from Sariska Tiger Reserve) हैं. सरिस्का के घने जंगल में 10 में से 5 गांव पूरी तरह से खाली हुए हैं, जबकि अन्य गांवों में लोग रहते हैं. हाल ही में एक गांव की विस्थान प्रकिया चल रही है.
सरिस्का का जंगल 1632 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है. इसमें 29 गांव बसे हुए हैं. जबकि घने जंगल में 10 गांव आते हैं. बाघ, पैंथर व वन्यजीवों की बढ़ती संख्या के चलते गांवों का विस्थापन जरूरी है. जंगल में मानव के दखल से जंगली जानवर को परेशानी होती है. 10 साल में केवल 5 गांवों का पूरी तरह विस्थापन हो सका है.
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बाघ परियोजना क्षेत्र में बसे गांवों का विस्थापन नहीं हो पाने से बाघ एवं अन्य वन्यजीवों के लिए टैरिटरी का संकट खड़ा होने लगा है. आए दिन बाघ व पेंथर आबादी एरिया में पहुंच रहे हैं. बीते कुछ दिनों में चार से ज्यादा बाघ सरिस्का का जंगल छोड़ आसपास के दूसरे वन क्षेत्रों में जा चुके हैं. एक बाघ एवं एक बाघिन राजगढ़ वन क्षेत्र, दो बाघ अजबगढ़ वन क्षेत्र में पहुंच चुके हैं. पिछले दिनों टैरिटरी की तलाश में एक शावक नलदेश्वर एरिया के जंगल में अलवर-जयपुर सड़क मार्ग के किनारे पहुंच गया था.
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बाघों के बढ़ रहा है कुनबा: सरिस्का में बाघों का कुनबा 27 तक पहुंच गया है. इनमें एक बाघ एसटी-13 अभी गायब है. गांवों के आबादी के कारण नए बाघों को समस्या हो रही है. पिछले चार साल में सरिस्का में 13 नए शावकों ने जन्म लिया है. इनमें वर्ष 2019 से 21 के बीच ही 9 शावकों ने जन्म लिया. इनमें से ज्यादातर शावक बड़े होकर अपनी मां से अलग हो चुके हैं और नई टैरिटरी की तलाश में हैं. जिन गांवों का विस्थान हुआ है, वहां बाघिन ने नए शावकों को जन्म दिया है. गांवों का विस्थापन नहीं होने से बाघों को आसपास के एरिया में निकलना पड़ रहा है.