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Digital India से कोसो दूर हैं अलवर के सैकड़ों गांव, पेड़ पर चढ़कर करते हैं बात

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Published : Sep 10, 2020, 2:37 PM IST

देश एक ओर डिजिटल इंडिया की ओर अग्रसर हो रहा है. वहीं, अलवर में करीब 220 गांव ऐसे हैं, जहां नेटवर्क के लिए कभी लोगों को पेड़ों पर चढ़ना पड़ता है तो कभी पहाड़ियों पर. ऐसे में अलवर के ये गांव विकास की गति में बहुत पीछे छूट रहे हैं.

डिजिटल इंडिया, low network in Alwar
अलवर के सैंकड़ों गांव में low internet connection

अलवर. एक तरफ केंद्र सरकार ने भारत को डिजीटल इंडिया बनाने की मुहिम छेड़ी है. दूसरी तरफ कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोग 4G का लाभ उठाना तो दूर वहां बात करने के लिए नेटवर्क तक नहीं मिलता है. अलवर के अरावली की तलहटी में बसे 220 गांव ऐसे ही हैं, जहां लो नेटवर्क की वजह से यहां के लोग बदलते समय में पीछे छूट गए हैं.

अलवर के सैंकड़ों गांव में नहीं पहुंचा है नेटवर्क

डिजिटल इंडिया के युग में जहां में एक क्लिक में फौरन हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से जुड़ सकते हैं. वहीं अलवर के इन गांवों में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है. यहां नेटवर्क पहुंच ही नहीं पाता है. इस कारण ग्रामीणों को कभी पेड़ पर तो कभी पहाड़ियों पर नेटवर्क के लिए चढ़ना पड़ता है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए इंटरनेट किसी सपने से कम नहीं है.

ये हालात शहर से कुछ दूरी पर ही शुरू हो जाते हैं. जयपुर रोड स्थित पहाड़ी के आसपास बसे गांव में इसी तरह के हालात हैं. इसके अलावा थानागाजी, बानसूर, टहला, लक्ष्मणगढ़, राजगढ़, अलवर शहर का बफर जोन, विजय मंदिर क्षेत्र और आसपास के ऐसे क्षेत्र जहां से प्रतिदिन लोग रोजगार के लिए अलवर शहर में आते हैं लेकिन इन क्षेत्रों में आज भी मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता है. मोबाइल का नेटवर्क नहीं आने के कारण इन क्षेत्रों में ई-मित्र और छोटे बैंकों की भी सुविधा नहीं है. वहीं डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकारें भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने अलवर शहर के आसपास क्षेत्र के इन गांव के हालात जाने गांव में रहने वाले लोगों से बातचीत की.

इमरजेंसी के समय नहीं मिलती मदद...

ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं. अगर किसी को इमरजेंसी जैसे प्रसव पीड़ा के दौरान भी एंबुलेंस गांव में नहीं आ पाती है. एंबुलेंस को लो नेटवर्क के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं. वहीं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के खाने की घटनाएं भी ज्यादा होती है. इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा झगड़ा व अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है.

लोग बता चुके हैं अपनी समस्या...

अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिंहित कर लिया है. वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं. ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है. लोगों ने कहा कि तमाम अधिकारियों और नेताओं के सामने अपनी समस्या रख चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का आज तक समाधान नहीं हुआ है. यही हालात रहे तो उनकी आने वाली पीढ़ी समाज और तेजी से बदलते समय से पिछड़ जाएगी.

यह भी पढ़ें. SPECIAL: Online क्लास के जमाने में Offline पढ़ाई भी हो रही मुश्किल, कैसे संवरेगा इन कच्ची बस्ती के बच्चों का भविष्य

गांव में रहने वाले लोगों ने कहा कि वह नेता व अधिकारियों के सामने कई बार मोबाइल नेटवर्क की व्यवस्था करने मोबाइल टावर लगवाने सहित सभी मुद्दे रख चुके हैं लेकिन उनकी सुनवाई आज तक नहीं हुई. यही हालात रहे तो आने वाले चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

ऑनलाइन पढ़ाई तो दूर की कौड़ी...

इन गांव में चलने वाली स्कूल का कामकाज भी मोबाइल नेटवर्क नहीं होने के कारण खासा प्रभावित होता है. स्कूल के स्टाफ को प्रतिदिन ऑनलाइन हाजरी भेजनी पड़ती है तो वहीं कंप्यूटर लैब सहित कई ऐसी चीजें हैं. जिनका काम ऑनलाइन होता है लेकिन गांव में नेटवर्क पर इंटरनेट सुविधा नहीं होने के कारण सभी काम पूरी तरह से ठप है. ऐसे में यहां ऑनलाइन पढ़ाई होना नामुमकिन है.

नहीं है ई-मित्र की सुविधा...

इन गांव में रहने वाले लोगों को ई-मित्र की सुविधा नहीं मिल पाती है. ई-मित्र व इंटरनेट से जुड़े हुए कार्यों के लिए इनको आसपास के कस्बों व शहरों में जाना पड़ता है तो वहीं ई-मित्र व अन्य इंटरनेट की सुविधा नहीं होने के कारण इन लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी भी नहीं मिल पाती है.

यह भी पढ़ें. Special: Lockdown में चल रही School, यूनिफॉर्म पहनकर बच्चे Online ले रहे क्लासेस

चुनाव आते ही नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं. गांव में सड़क, पानी और बिजली सहित देश का चौतरफा विकास की बातें होती हैं. ग्रामीण क्षेत्र को शहरी क्षेत्र से जोड़ने के लिए कई योजनाएं लाई जाती हैं, लेकिन जिले के हजारों लोगों का जीवन किसी पुरानी सदी में जीने जैसा है.

अलवर. एक तरफ केंद्र सरकार ने भारत को डिजीटल इंडिया बनाने की मुहिम छेड़ी है. दूसरी तरफ कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोग 4G का लाभ उठाना तो दूर वहां बात करने के लिए नेटवर्क तक नहीं मिलता है. अलवर के अरावली की तलहटी में बसे 220 गांव ऐसे ही हैं, जहां लो नेटवर्क की वजह से यहां के लोग बदलते समय में पीछे छूट गए हैं.

अलवर के सैंकड़ों गांव में नहीं पहुंचा है नेटवर्क

डिजिटल इंडिया के युग में जहां में एक क्लिक में फौरन हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से जुड़ सकते हैं. वहीं अलवर के इन गांवों में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है. यहां नेटवर्क पहुंच ही नहीं पाता है. इस कारण ग्रामीणों को कभी पेड़ पर तो कभी पहाड़ियों पर नेटवर्क के लिए चढ़ना पड़ता है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए इंटरनेट किसी सपने से कम नहीं है.

ये हालात शहर से कुछ दूरी पर ही शुरू हो जाते हैं. जयपुर रोड स्थित पहाड़ी के आसपास बसे गांव में इसी तरह के हालात हैं. इसके अलावा थानागाजी, बानसूर, टहला, लक्ष्मणगढ़, राजगढ़, अलवर शहर का बफर जोन, विजय मंदिर क्षेत्र और आसपास के ऐसे क्षेत्र जहां से प्रतिदिन लोग रोजगार के लिए अलवर शहर में आते हैं लेकिन इन क्षेत्रों में आज भी मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता है. मोबाइल का नेटवर्क नहीं आने के कारण इन क्षेत्रों में ई-मित्र और छोटे बैंकों की भी सुविधा नहीं है. वहीं डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकारें भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने अलवर शहर के आसपास क्षेत्र के इन गांव के हालात जाने गांव में रहने वाले लोगों से बातचीत की.

इमरजेंसी के समय नहीं मिलती मदद...

ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं. अगर किसी को इमरजेंसी जैसे प्रसव पीड़ा के दौरान भी एंबुलेंस गांव में नहीं आ पाती है. एंबुलेंस को लो नेटवर्क के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं. वहीं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के खाने की घटनाएं भी ज्यादा होती है. इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा झगड़ा व अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है.

लोग बता चुके हैं अपनी समस्या...

अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिंहित कर लिया है. वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं. ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है. लोगों ने कहा कि तमाम अधिकारियों और नेताओं के सामने अपनी समस्या रख चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का आज तक समाधान नहीं हुआ है. यही हालात रहे तो उनकी आने वाली पीढ़ी समाज और तेजी से बदलते समय से पिछड़ जाएगी.

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गांव में रहने वाले लोगों ने कहा कि वह नेता व अधिकारियों के सामने कई बार मोबाइल नेटवर्क की व्यवस्था करने मोबाइल टावर लगवाने सहित सभी मुद्दे रख चुके हैं लेकिन उनकी सुनवाई आज तक नहीं हुई. यही हालात रहे तो आने वाले चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

ऑनलाइन पढ़ाई तो दूर की कौड़ी...

इन गांव में चलने वाली स्कूल का कामकाज भी मोबाइल नेटवर्क नहीं होने के कारण खासा प्रभावित होता है. स्कूल के स्टाफ को प्रतिदिन ऑनलाइन हाजरी भेजनी पड़ती है तो वहीं कंप्यूटर लैब सहित कई ऐसी चीजें हैं. जिनका काम ऑनलाइन होता है लेकिन गांव में नेटवर्क पर इंटरनेट सुविधा नहीं होने के कारण सभी काम पूरी तरह से ठप है. ऐसे में यहां ऑनलाइन पढ़ाई होना नामुमकिन है.

नहीं है ई-मित्र की सुविधा...

इन गांव में रहने वाले लोगों को ई-मित्र की सुविधा नहीं मिल पाती है. ई-मित्र व इंटरनेट से जुड़े हुए कार्यों के लिए इनको आसपास के कस्बों व शहरों में जाना पड़ता है तो वहीं ई-मित्र व अन्य इंटरनेट की सुविधा नहीं होने के कारण इन लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी भी नहीं मिल पाती है.

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चुनाव आते ही नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं. गांव में सड़क, पानी और बिजली सहित देश का चौतरफा विकास की बातें होती हैं. ग्रामीण क्षेत्र को शहरी क्षेत्र से जोड़ने के लिए कई योजनाएं लाई जाती हैं, लेकिन जिले के हजारों लोगों का जीवन किसी पुरानी सदी में जीने जैसा है.

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