अलवर. क्राइम के लिहाज से अलवर बदनाम है तो वहीं देश-विदेश में भगवान गणेश जी की प्रतिमा ने अलवर को एक विशेष पहचान दिलाई है. यहां की मिट्टी से बने गणपति जी की पूजा विदेशों में होती है. हर साल 10 से 15 हजार गणेश जी की मूर्तियां ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा और मलेशिया सहित दुनिया के कोने-कोने में जाती हैं. समय के साथ इनकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है.
जन्माष्टमी के बाद अलवर सहित देश-विदेश में गणेश चतुर्थी की तैयारी शुरू हो चुकी है. 2 सितंबर को देश-विदेश में गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी. इस मौके पर अलवर की मिट्टी से तैयार हुई गणेश प्रतिमा की विदेशों में पूजा होगी. अलवर में गणेश प्रतिमा बनाने वाले रामकिशोर प्रजापत ने बताया कि जब वो दस साल के थे. उस समय से गणेश जी की मूर्ति बना रहे हैं. पहले वो अपने चाचा के साथ दिल्ली में रहकर गणेश मूर्ति बनाते थे. लेकिन किसी कारणवश उनको वापस अपने घर आना पड़ा. यहां उन्होंने मूर्ति बनाने का कारोबार शुरू किया. शुरुआत में तीन से चार मूर्ति बनाकर बाजार में बेचते थे. लेकिन धीरे-धीरे इसकी डिमांड बढ़ी और रामकिशन अब साल भर में 10 से 15 हजार गणेश जी की मूर्ति बनाते हैं.
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रामकिशन ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई मूर्ति ऑस्ट्रेलिया अमेरिका कनाडा मलेशिया सहित देश विदेश में जाती है. विदेशों में मूर्ति सप्लाई करने वाले लोग उनको डिजाइन दिखाते हैं और उस आधार पर रामकिशन मूर्ति बनाकर उनको देते हैं. 4 इंच से लेकर 6 फुट तक रामकिशन मूर्ति बनाते हैं. रामकिशन का पूरा परिवार इस कारोबार में जुटा हुआ है. उन्होंने कहा कि गणेश जी की मूर्ति ने देश विदेश में अलवर को एक विशेष पहचान दिलवाई है. विदेशों के साथ अलवर में भी गणेश जी की मूर्ति के डिमांड बढ़ी है. अब हर घर में लोग गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करते हैं.
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रामकिशन ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि अलवर के आसपास क्षेत्र में चिकनी मिट्टी मिलती है. उस मिट्टी से इन मूर्तियों का निर्माण किया जाता है. यह मूर्ति पानी में मिलकर पूरी तरह से घुल जाती है. दरसअल देश के अन्य हिस्सों में प्लास्टिक ऑफ पेरिस की मूर्ति बनाई जाती है. उससे पानी और पानी में रहने वाले जीवो को नुकसान होता है. इसलिए उनकी डिमांड बाजार में कम हो रही है. जबकि लोग मिट्टी से बनी हुई मूर्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं. इन मूर्तियों में किसी भी तरह का केमिकल नहीं होता है. पानी में मिलने के बाद कुछ ही मिनटों में मूर्ति पूरी तरीके से पानी में घुल जाती है.
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वहीं अलवर की चिकनी मिट्टी से बनी मूर्तियां खासी सुंदर और आकर्षित होती है. उन्होंने कहा कि साल भर गणेश जी की मूर्ति बनाने का काम चलता है. उसके बाद मूर्ति पर पेंट किया जाता है. इसके बाद जरूरत और डिमांड के हिसाब से उसको सजाया जाता है. उन्होंने कहा कि समय के साथ इन मूर्तियों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. इन मूर्तियों ने अलवर को विदेशों में एक अलग पहचान दिलवाई है.