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भर्तहरि नाटक के मंचन में चलता है सिंहासन, घूमता है स्टेज, 106 साल से हो रहा है मंचन - भर्तहरि नाटक

अलवर में 106 साल से मंचित हो रहा भर्तहरि नाटक का मंचन दशहरे के दो दिन बाद होता (Bhartrihari Drama in Alwar on Dussehra) है. पारसी शैली पर आधारित इस नाटक में चलने वाला सिंहासन और घूमता स्टेज आकर्षण का केंद्र होता है. लगातार 16 दिनों तक चलने वाले इस नाटक को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं.

Bhartrihari Drama in Parsai style is the only drama staged in country
भर्तहरि नाटक के मंचन में चलता है सिंहासन, घूमता है स्टेज, 106 साल से हो रहा है मंचन
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Published : Oct 24, 2022, 12:53 PM IST

Updated : Oct 24, 2022, 3:54 PM IST

अलवर. जिले में पारसी शैली पर आधारित यह भर्तहरि नाटक शुरू हो चुका है. यह नाटक 106 साल से मंचित किया जा रहा है. नाटक के दौरान सिंहासन मंच पर चलता है, तो मंच घूमता है. इसके अलावा शीश महल सहित कई विशेष आकर्षण नाटक के दौरान होते हैं. पूरे देश में केवल अलवर में भर्तहरि नाटक का मंचन होता है. यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. प्रतिदिन एक जैसे नाटक का मंचन होता है. नाटक देखने के लिए राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित देश के अलग-अलग शहरों से लोग यहां आते हैं.

राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर आयोजित किया जाने वाला महाराजा भर्तृहरि नाटक पूरे भारत में पारसी शैली को जीवित रखे हुए है. एक ही मंच पर लगातार यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. पारसी शैली के इस नाटक में कलाकारों के भारी भरकम मेकअप, भारी श्रृंगार, कलाकारों का तेज आवाज में डायलॉग बोलना, पर्दों का ऊपर नीचे चढ़ना एवं महिलाओं का अभिनय पुरुषों की ओर से किया जाता है. लेकिन अब समय के साथ कुछ बदलाव होने लगा है और महिला पात्र भी देर रात तक अभिनय करती हैं. इस रंगमंच पर नाटक के 1000 से ज्यादा मंचन हो चुके हैं. रोज एक जैसा नाटक 7 घंटे तक देखकर लोग न तो थकते हैं और न ही बोर होते हैं. खासियत है कि हर दिन वो नए रूप में दिखाई देता है.

106 साल से मंचित हो रहा भर्तहरि नाटक...

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: अलवर का 62 साल पुराना भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू, 7 घंटे तक देखकर भी नहीं होगें बोर

उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर ही तपस्या की थी और यहीं समाधि ली थी. उन्हीं के जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के दो दिन बाद शुरू होता (Bhartrihari Drama in Alwar on Dussehra) है. देश में पारसियों की यह शैली खुद पारसी भूल गए हैं. कहीं भी इस शैली के थियेटर नहीं हैं और न ही इस शैली में नाटक मंचित हो रहे हैं. देश का राजर्षि अभय समाज एकमात्र रंगमंच है जो इस शैली को जीवित रखे हुए है. इसी शैली के कारण इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं, जो ऊपरी से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है, जिन्हें खाेलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है.

पढ़ें: जयपुर में हुई रावण के तीये की बैठक, अस्थि विसर्जन के लिए दल हरिद्वार रवाना, ताकि समाज को रावण रूपी बुराइयों से मिल सके मुक्ति

राजर्षि अभय समाज व नाटक के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने बताया कि मंच पर लगे पर्दों को तैयार करने में कई-कई माह लगते हैं. इसके लिए विशेष कलाकार, प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर डिजाइन तैयार करते हैं. ये पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छिपाते हैं, बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य क्रियेट करते हैं. पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास थ्री-डी का ही होता है. अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि ये पर्दे हैं या वास्तविक सीन है.

पढ़ें: झुंझुनूं: कठपुतली नाटक के माध्यम से युवाओं को सनातन धर्म के प्रति किया गया जागरूक

इसके अलावा की नाटक के दौरान सिंहासन अचानक चलने लगता है. कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है. इसके अलावा सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें से राजा प्रकट हो जाते हैं. यह किसी प्रकार का जादू नहीं, बल्कि मंच की बनावट कुुछ इसी तरह की है कि यह सब वास्तविकता जैसा लगता है. नाटक के बीच में संगीत व भजन का आयोजन भी साथ चलता है. इसके अलावा रंग बिरंगी लाइट इफेक्ट भी नाटक के दौरान दिखाई जाते हैं.

अलवर. जिले में पारसी शैली पर आधारित यह भर्तहरि नाटक शुरू हो चुका है. यह नाटक 106 साल से मंचित किया जा रहा है. नाटक के दौरान सिंहासन मंच पर चलता है, तो मंच घूमता है. इसके अलावा शीश महल सहित कई विशेष आकर्षण नाटक के दौरान होते हैं. पूरे देश में केवल अलवर में भर्तहरि नाटक का मंचन होता है. यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. प्रतिदिन एक जैसे नाटक का मंचन होता है. नाटक देखने के लिए राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित देश के अलग-अलग शहरों से लोग यहां आते हैं.

राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर आयोजित किया जाने वाला महाराजा भर्तृहरि नाटक पूरे भारत में पारसी शैली को जीवित रखे हुए है. एक ही मंच पर लगातार यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. पारसी शैली के इस नाटक में कलाकारों के भारी भरकम मेकअप, भारी श्रृंगार, कलाकारों का तेज आवाज में डायलॉग बोलना, पर्दों का ऊपर नीचे चढ़ना एवं महिलाओं का अभिनय पुरुषों की ओर से किया जाता है. लेकिन अब समय के साथ कुछ बदलाव होने लगा है और महिला पात्र भी देर रात तक अभिनय करती हैं. इस रंगमंच पर नाटक के 1000 से ज्यादा मंचन हो चुके हैं. रोज एक जैसा नाटक 7 घंटे तक देखकर लोग न तो थकते हैं और न ही बोर होते हैं. खासियत है कि हर दिन वो नए रूप में दिखाई देता है.

106 साल से मंचित हो रहा भर्तहरि नाटक...

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उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर ही तपस्या की थी और यहीं समाधि ली थी. उन्हीं के जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के दो दिन बाद शुरू होता (Bhartrihari Drama in Alwar on Dussehra) है. देश में पारसियों की यह शैली खुद पारसी भूल गए हैं. कहीं भी इस शैली के थियेटर नहीं हैं और न ही इस शैली में नाटक मंचित हो रहे हैं. देश का राजर्षि अभय समाज एकमात्र रंगमंच है जो इस शैली को जीवित रखे हुए है. इसी शैली के कारण इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं, जो ऊपरी से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है, जिन्हें खाेलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है.

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राजर्षि अभय समाज व नाटक के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने बताया कि मंच पर लगे पर्दों को तैयार करने में कई-कई माह लगते हैं. इसके लिए विशेष कलाकार, प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर डिजाइन तैयार करते हैं. ये पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छिपाते हैं, बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य क्रियेट करते हैं. पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास थ्री-डी का ही होता है. अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि ये पर्दे हैं या वास्तविक सीन है.

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इसके अलावा की नाटक के दौरान सिंहासन अचानक चलने लगता है. कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है. इसके अलावा सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें से राजा प्रकट हो जाते हैं. यह किसी प्रकार का जादू नहीं, बल्कि मंच की बनावट कुुछ इसी तरह की है कि यह सब वास्तविकता जैसा लगता है. नाटक के बीच में संगीत व भजन का आयोजन भी साथ चलता है. इसके अलावा रंग बिरंगी लाइट इफेक्ट भी नाटक के दौरान दिखाई जाते हैं.

Last Updated : Oct 24, 2022, 3:54 PM IST
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