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Shardiya Navratri 2023 : यहां रावण नहीं, बल्कि दहन होता है महिषासुर का पुतला, जानें इसके पीछे की वजह

आपने दशहरे में रावण के पुतला दहन के बारे में तो सुना होगा, लेकिन आज हम आपको महिषासुर दहन के उस परंपरा के बारे में बताएंगे, जिसका बीते 22 सालों से राजस्थान के बिजयनगर में निर्वहन हो रहा है.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 22, 2023, 9:33 AM IST

Shardiya Navratri 2023
Shardiya Navratri 2023
यहां दहन होता है महिषासुर का पुतला

बिजयनगर (ब्यावर). एक ओर पूरे देश व प्रदेश में बुराई पर अच्छाई के प्रतीक दशहरा के मौके पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. वहीं, बिजयनगर स्थित बाड़ी माता मंदिर में अष्टमी यानी आज मां दुर्गा महिषासुर के पुतले का दहन करेंगी. यहां इस परंपरा का पिछले 22 वर्षों से निर्वहन हो रहा है. इस बार मंदिर परिसर में दहन के लिए 41 फीट का महिषासुर तैयार किया गया है, जिसका तय मुहूर्त में दहन होगा.

जानें क्यों होता है महिषासुर के पुतले का दहन : बिजयनगर स्थित प्रमुख शक्तिपीठ श्री बाड़ी माता मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया कि महिषासुर एक राक्षस था, जिसका वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु व भगवान महेश के साथ ही अन्य सभी देवी-देवताओं ने मां भगवती को अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट किए थे, जिसके उपरांत भगवती सिंह पर सवार होकर महिषासुर से युद्ध के लिए निकली थी और उसका वध की थी. यही वजह है कि यहां आष्टमी के दिन महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है.

इसे भी पढ़ें - खास है बिजयनगर का दशहरा...यहां रावण नहीं, महिषासुर का होता है पुतला दहन

पिछले 22 सालों से यहां हो रहा महिषासुर दहन कार्यक्रम : मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया कि बाड़ी माता तीर्थ धाम पर बीते 22 सालों से महिषासुर दहन का कार्यक्रम होता आ रहा है. उन्होंने कहा कि दशहरे पर जगह-जगह रावण दहन होता है, लेकिन यहां बुराई के प्रतीक के रूप में महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है. साथ ही बिजयनगर देश व प्रदेश में एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां महिषासुर का दहन होता है.

हालांकि, यहां महिषासुर के दहन का कोई विशेष कारण नहीं है, बल्कि वर्षों पहले मां के एक परम भक्त स्मृतिशेष चुन्नीलाल टांक ने इस परंपरा को शुरू किया था, जो समय के साथ आज भी जारी है. कृष्णा टांक ने बताया कि इस दहन कार्यक्रम के दौरान मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द मेला लगता है. साथ ही भव्य झांकियां भी सजती हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से माता के भक्त आते हैं.

यहां दहन होता है महिषासुर का पुतला

बिजयनगर (ब्यावर). एक ओर पूरे देश व प्रदेश में बुराई पर अच्छाई के प्रतीक दशहरा के मौके पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. वहीं, बिजयनगर स्थित बाड़ी माता मंदिर में अष्टमी यानी आज मां दुर्गा महिषासुर के पुतले का दहन करेंगी. यहां इस परंपरा का पिछले 22 वर्षों से निर्वहन हो रहा है. इस बार मंदिर परिसर में दहन के लिए 41 फीट का महिषासुर तैयार किया गया है, जिसका तय मुहूर्त में दहन होगा.

जानें क्यों होता है महिषासुर के पुतले का दहन : बिजयनगर स्थित प्रमुख शक्तिपीठ श्री बाड़ी माता मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया कि महिषासुर एक राक्षस था, जिसका वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु व भगवान महेश के साथ ही अन्य सभी देवी-देवताओं ने मां भगवती को अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट किए थे, जिसके उपरांत भगवती सिंह पर सवार होकर महिषासुर से युद्ध के लिए निकली थी और उसका वध की थी. यही वजह है कि यहां आष्टमी के दिन महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है.

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पिछले 22 सालों से यहां हो रहा महिषासुर दहन कार्यक्रम : मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया कि बाड़ी माता तीर्थ धाम पर बीते 22 सालों से महिषासुर दहन का कार्यक्रम होता आ रहा है. उन्होंने कहा कि दशहरे पर जगह-जगह रावण दहन होता है, लेकिन यहां बुराई के प्रतीक के रूप में महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है. साथ ही बिजयनगर देश व प्रदेश में एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां महिषासुर का दहन होता है.

हालांकि, यहां महिषासुर के दहन का कोई विशेष कारण नहीं है, बल्कि वर्षों पहले मां के एक परम भक्त स्मृतिशेष चुन्नीलाल टांक ने इस परंपरा को शुरू किया था, जो समय के साथ आज भी जारी है. कृष्णा टांक ने बताया कि इस दहन कार्यक्रम के दौरान मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द मेला लगता है. साथ ही भव्य झांकियां भी सजती हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से माता के भक्त आते हैं.

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