अजमेर. जिले के चाचियावास इलाके में स्थित राजस्थान महिला कल्याण मंडल (Director Rajasthan Women Welfare Board) अब गरीब बकरी पालकों के लिए मदगार बन रही है. संस्था की ओर से जिले के 90 गांव में बकरी पालन (goat farmers) को ना केवल बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि गोट एंड गिफ्ट जैसे नवाचार के माध्यम से गरीब बकरी पालकों के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश की जा रही है. बकरी पालकों को लोन (loan for goat farmers) देकर संस्था उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है.
सदियों से राजस्थान अकाल और सूखे की मार झेलता आया है. इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए यहां के लोगों ने जीना सीख लिया. अकाल के समय में जब भोजन और पानी का अभाव (water scarcity in rajasthan) और आर्थिक तंगी रहती थी उस वक्त पशु ही एकमात्र लोगों के जीने का सहारा हुआ करते थे.
लेकिन अब वक्त के साथ हालात काफी बदल चुके हैं. अब गांव गांव ढाणी ढाणी पेयजल पहुंच रहा है. लेकिन इस बदलाव में सदियों पहले अकाल से लड़ने का एकमात्र सहारा पशुपालन (animal husbandry) पीछे छूटता जा रहा है. खासकर बकरी पालन पहले की अपेक्षा काफी कम हो गया है. बकरी पालन का अच्छा खासा अनुभव रखने वाले कई लोगों ने बकरियां रखना बंद कर दिया है. इनमें ज्यादात्तर संख्या गरीब परिवारों की है.
राजस्थान महिला कल्याण मंडल की निदेशक शमा राकेश कौशिक (Director Shama Rakesh Kaushik) ने ईटीवी से बात करते हुए कहा- राजस्थान महिला कल्याण मंडल 40 वर्षो से विभिन्न मुद्दों को लेकर काम कर रही है. संस्था अजमेर जिले के 90 गांव में बकरी पालन को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है. इनमें सिलोरा, जवाजा, पीसांगन पंचायत समिति के गांव और सलेमाबाद में काम कर रहे हैं. गांवों में कार्य करते हुए एक सूची तैयार की गई है जिसमें ऐसे परिवारों को चिन्हिंत किया गया है.
गांव के सरपंच और संस्था के वालियंटर्स के माध्यम से ऐसे परिवारों को चुना गया जिन्हें सबसे ज्यादा सहयोग की जरूरत है. ऐसे परिवारों को शामिल किया गया है जिन्हें पहले से पीढ़ी दर पीढ़ी बकरी पालन का अनुभव है और उनके पास अब बकरिया नहीं है.
तीन चरणों में शुरू हुआ काम-
उन्होंने बताया कि राजस्थान महिला कल्याण मंडल ने तीन चरण में अपना कार्य शुरू किया. प्रथम चरण में 10 परिवारों को चिन्हित किया था. इन 10 परिवारों को 8-8 बकरियों का यूनिट दिया गया था. इसका उद्देश्य था कि यह परिवार बकरी पालन के माध्यम से अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें. इसके बाद संस्था ने गिफ्ट एंड गोट का नवाचार शुरू किया.
इसके तहत एक परिवार को एक बकरी गिफ्ट की जाती है. 2 वर्ष के लिए बकरी की देखरेख करता है है परिवार. इस दौरान उन्हें सिखाया भी जाता है कि कैसे बकरी की देखभाल करते हैं. साथ ही बकरी के मेडिकल संबंधी व्यवस्था भी की जाती है. 2 वर्ष के दौरान बकरी के बच्चे होते हैं वह बच्चे परिवार रखता है उनमें से एक बच्चा संस्था उनसे वापस लेती है और उसे किसी दूसरे गरीब परिवार को देती है.
इस आदान-प्रदान के दौरान सामंजस्य स्थापित होता है. लोगों को पता होता है कि इसके बाद अब मुझे बकरी मिलने वाली है. एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कुछ सुधरती है तो दूसरे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के बकरी दी जाती है.
तीसरे चरण में संस्था की ओर से ऐसे लोगों को बकरियां खरीदने के लिए लोन दिया जाता है जो बकरी पालन करना चाहते हैं लेकिन बकरियां खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं है. ऐसे लोग वर्ष भर में छोटी-छोटी किस्तों में बिना ब्याज के पैसा संस्था को वापस करते हैं.
लोन प्राप्त करने वाले लोग उस राशि से अच्छे नस्ल की बकरियां खरीदते हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थान में बकरी पालन एटीएम के रूप में काम आता है एटीएम का मतलब है ऑल टाइम मनी. ऐसा माना जाता है कि जिस परिवार में बकरी है उसे लोन देने लायक माना जाता है. यानी एक बकरी भी है तो उसके पास 15 से 20 हजार रुपए उसके पास हैं.
बकरियों का कैसे ध्यान रखेंगे ?
शमा राकेश कौशिक आगे कहती है कि यह ऐसे परिवार हैं जो सिर्फ एक रोजगार पर निर्भर नहीं होते हैं. इनमें ज्यादातर लेबर क्लास होते हैं जो आसपास के क्षेत्र में काम करते हैं. इनमें कोई खेतों में काम करता है कोई निर्माण कार्य में काम करता है. लॉकडाउन अवधि में रोजगार कम हो गया. दिहाड़ी मजदूरी नहीं मिलने से परिवार का गुजारा नहीं हो पा रहा था. ऐसे समय में वह अपनी बकरियों का कैसे ध्यान रखेंगे ? जबकि उनके खुद के पास खाने पीने के लिए पैसे नहीं है.
इस दौरान यदि कोई बकरी मर गई तो उन्हें नुकसान होगा. इस स्थिति से निपटने के लिए संस्था ने 300 परिवारों को चिन्हित किया है. इन परिवारों को संस्था की ओर से निशुल्क पशु आहार उपलब्ध करवाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि दक्ष फाउंडेशन विकलांग व्यक्तियों और बच्चों के लिए काम करता है. फाउंडेशन से जुड़े विकलांग व्यक्तियों को कच्ची सामग्री उपलब्ध करवाई जाती है. उनके द्वारा बनाया गया पशु आहार चिन्हित परिवारों को निशुल्क उनके घर पहुंचाया जाता है.
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कोरोना संक्रमण के समय में वह जितना कम बाहर निकले उतना उनके लिए भी और समाज के लिए भी अच्छा है. पशु आहार से बकरियों के स्वास्थ्य में काफी फर्क आया है उनकी हाइट बड़ी है. साथ ही बकरियों का दूध भी बड़ा है जिससे ना केवल बकरियों के बच्चों को पर्याप्त दूध मिल रहा है बल्कि बकरियां पालने वाले लोगों के बच्चों को भी बकरी का दूध उपलब्ध हो रहा है जिससे उनका भी पोषण हो रहा है.
शमा आगे कहती है- बकरी का दूध कभी भी निकाला जा सकता है. यह दूध स्वास्थ्यवर्धक भी होता है. इतना ही नहीं पशु आहार से बकरी का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है जिससे अगर बकरी पालक बकरी बेचता भी है तो उसे अच्छे पैसे मिलते हैं.