अजमेर. भारत को सोने की चिड़िया बनाने में मसालों का विशेष (India calls golden bird again) योगदान रहा है. विदेशों से यहां मसालों के बदले कीमती धातु आती रही है. इसी कारण कई गुप्तचर और लुटेरे भी तत्कालीन समय में देश को लूटने के मकसद से यहां आए. आजादी के बाद भी मसालों की डिमांड कम नहीं हुई और आज भी भारत को सोने की चिड़िया बनाने में मसालों का विशेष योगदान हो सकता है. अजमेर में देश का एकमात्र राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (National Research Centre on Seed Spices) 20 वर्षों से देश में मसाला खेती के लिए क्षेत्रफल और उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. विश्व में गिने चुने ऐसे बड़े अनुसंधान केंद्रों में से एक इस केंद्र ने 25 से अधिक मसालों की प्रजातियां तैयार की है, जो आज मसाला खेती करने वाले किसानों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के साथ ही उत्पादन बढ़ाने में भी अहम योगदान दे रहा है.
राष्ट्रीय बीजीय मसाला केंद्र की स्थापना अजमेर में साल 2000 में हुई थी. इससे पहले कालीकट में बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र हुआ करता था. वर्तमान में केंद्र में 10 बीजीय मसालों पर अनुसंधान का काम किया जाता है. केंद्र का प्रयास है कि तीन और मसाले उनके अनुसंधान के कार्य में जुड़ सके. केंद्र के निदेशक डॉ. शैलेंद्र नाथ सक्सेना ने बताया कि विश्व मसाला मानकीकरण ब्यूरो में 109 मसाले सूचीबद्ध हैं. इनमें से 75 प्रकार के मसालों का भारत में उत्पादन हो रहा है. इनमें से 20 बीजीय मसाले हैं. राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र 10 बीजीय मसालों को लेकर काम कर रहा है. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र सबसे बड़ा केंद्र है, जो अजमेर में स्थापित है. विश्व स्तर पर गिने चुने केंद्र ही है, जहां 10 से अधिक फसलों को लेकर अनुसंधान किए जाते हैं. उनमें से एक अजमेर का यह केंद्र है.
20 वर्ष में 25 से ज्यादा मसालों की प्रजातियां हुई तैयार: केंद्र के निदेशक डॉ. शैलेंद्र नाथ सक्सेना ने बताया कि मसाला हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है. मसालों का उपयोग भोजन में किया जाता है. वहीं, कई मसालों के औषधीय गुण भी हैं, जिनका उपयोग आयुर्वेद में दवा बनाने के लिए किया जाता है. इनमें जीरा, धनिया, सौंफ, मेथी, कलौंजी, अजवाइन, विलायती सौफ, सोवा, अजमोद, कैरावे (काला जीरा) मसालों की 25 से ज्यादा प्रजातियां विगत 20 वर्ष में तैयार की है. उन्होंने बताया कि नागौरी पान मेथी, राई और तिल को भी शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है.
डॉ. सक्सेना ने बताया कि देश में शुष्क और अर्ध शुष्क ( कम बारिश वाले क्षेत्र ) इलाकों में बीजीय मसाला की रबी में खेती होती है. उन्होंने बताया कि राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बीजीय मसाले की खेती होती है. उन्होंने बताया कि जीरा उत्पादन में राजस्थान, गुजरात, धनिया उत्पादन में मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, सौफ उत्पादन में राजस्थान और गुजरात, मेथी, कलौंजी और अजवाइन का उत्पादन राजस्थान में अधिक होता है.
20 से 25 प्रतिशत मसालों का होता है निर्यात: निदेशक ने बताया कि वर्ष 2000 तक मसालों के निर्यात में 235 करोड़ रुपए देश को रेवेन्यू मिलती थी, जो बढ़कर अब 5600 करोड़ रुपए हो गई है. आज भारत विश्व में 50 फीसदी मसालों का निर्यात करता है. उन्होंने कहा कि साल 2000 तक .4 लाख टन बीजीय मसालों का उत्पादन यहां होता था. बीजीय मसालों की नई प्रजातियां विकसित होने के बाद उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. वर्तमान में 4.33 लाख टन मसालों का निर्यात हो रहा है.
मसालों का विशेष योगदान: उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र ने 2030 के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है. जिसमें 4 बिलियन ट्रेड को बढ़ाकर 10 बिलियन पर ले जाना है. उन्होंने बताया कि घरेलू आवश्यकता के बाद इस स्थिति पर भारत को आना है. केंद्र के निदेशक डॉ. शैलेंद्र नाथ सक्सेना ने बताया कि साल 2050 तक का लक्ष्य निर्धारित कर केंद्र अपने उद्देश्यों की पूर्ति में जुटा हुआ है.
उन्होंने कहा कि वियतनाम, श्रीलंका, चीन, इराक, ईरान, टर्की, इजिप्ट और सीरिया में भी मसाले की खेती होती है. घरेलू जरूरत को पूरा करने के बाद विश्व में 50 फीसदी बाजार को भारत मसाला आपूर्ति करता है. शेष 50 प्रतिशत बाजार पर भी भारत अपना कब्जा कर सकता है. इसके लिए उत्पादन में तकनीक का उपयोग, फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड का सही अनुपात में उपयोग और उन्नत बीजो के प्रयोग के अलावा मसाला खेती के लिए क्षेत्रफल बढ़ाने से भारत फिर से सोने की चिड़िया बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है.
बदला कसूरी मेथी का नाम: बातचीत में केंद्र के निदेशक ने बताया कि कसूरी पाकिस्तान में है, जबकि मेथी का उत्पादन नागौर में वर्षों से हो रहा है. भारतीय होने के नाते कसूरी मेथी का नाम बदलकर नागौर पान मेथी रखा गया है. हमारे देश में मेथी का उत्पादन हो रहा है तो उसे कसूरी मेथी कहा जाना उचित नहीं है.